Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Fantasy

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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अकाय -पार्ट 18

अकाय -पार्ट 18

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पूरे दिन की निगरानी के बाद देर शाम को रवि और सत्यम विश्राम करने के लिए सत्यम के घर लौट गए। इंस्पेक्टर रवि आश्वस्त था कि कौआ और छिपकिली के माध्यम से राधा के घर की निगरानी की जा रही है। सत्यम भी रवि के तर्कों और मौका-ए - वारदात के अन्वेषण और साक्ष्य से मानने को बाध्य था कि कुछ तो गड़बड़ है। लेकिन उसको यह समझ मे नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव है। उसने अपनी स्वभाविक जिज्ञासा भरी दुविधा को रवि से साझा किया।

रवि ने मुस्कुराते हुए कहा कि तुम जो सोंच रहे हो वह अन्यथा नहीं है। जिसको टेलीपैथी और टेलिपोर्ट के बारे में जानकारी नहीं है वह ऐसा ही सोंचेगा जैसा तुम सोंच रहे हो। लोग ऐसा कहते है कि देवराहा बाबा बैठे बैठे कहीं से कहीं पर भी चले जाते थे। मेरे गाँव का ही किस्सा है। देवराहा बाबा मेरे गाँव मे मुखिया जी के यहाँ ठहरे हुए थे। मेरे चाचा कई दिनों से सोनपुर मेला में बैल खरीदने गए थे। गाँव जवार के कई लोग वापस आ चुके थे लेकिन मेरे चाचा का पता नहीं था। दादा जी चिंतित थे। वो भी देवराहा बाबा के भक्त थे। उन्होंने अपनी चिंता देवराहा बाबा के सामने रखा। उस समय मोबाइल का जमाना तो था नहीं इसलिए लोग अपनो का कुशलक्षेम जानने के लिए भी सगुन कराते थे।

खैर देवराहा बाबा तो सिद्ध पुरुष थे। उन्होंने आँख बंद किया और बोले तुम्हारे बेटे ने बैल खरीद लिया है। बहुत सुंदर उदंत बछड़ा है और अब घर के लिए निकल रहा है। दो तीन दिन में घर पहुँच जाएगा। चिंता की कोई बात नहीं है।उसी दिन शाम को देवराहा बाबा मेरे गाँव से प्रस्थान कर गए। दो दिन बाद जब चाचा घर पर आए तो सबलोग को आश्चर्य हुआ की सचमुच में चाचा ने उदंत बछड़ा खरीदा है। जब वो बताने लगे कि "देखो कितना बढ़िया है , इसके कद काठी पर मत जावो अभी एकदम उदंत है।"

दादा जी ने कहा मालूम है ,देवराहा बाबा ने परसो बताया था कि तुमने बढ़िया उदंत बछड़ा खरीदा है। अब चौंकने की बारी चाचा की थी क्योंकि परसो तो देवराहा बाबा उनको सोनपुर मेला में दोपहर को मिले थे और उनका हालचाल भी पूछा था। लगभग उसी समय उन्होंने दादा जी को बताया था कि "तुम्हारे बेटे ने बछड़ा खरीद लिया है और जल्द घर आ जाएगा। " देवराहा बाबा से जुड़ी ऐसी बहुत सी कहानियां तुमको सुनने को मिल जाएंगी। लोग एक ही समय पर उनको अलग अलग जगह पर देखने का दावा करते थे। वो अस्सी के दशक तक इस धरती पर उपस्थित थे। उनके उम्र का अंदाजा किसी को नहीं था। लेकिन लोग कहते हैं वो लगभग डेढ़ सौ साल तक जिंदा रहे।

इस पर सत्यम ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा "यह बीसवीं सदी में ही घटी घटना है , यकीन नहीं होता है।"

रवि - देखो ,सत्य दो तरह का होता है। एक अनुभूत सत्य और दूसरा श्रुत/वर्णित सत्य। लेकिन कालांतर में प्रमाण के अभाव में अनुभूत सत्य भी किंवदंती बन जाता है। अभी तुम जो देख रहे हो, अनुभव कर रहे हो क्या तुम सकाय होते तो इस बात पर यकीन करते, कदापि नहीं। यही सत्य है, हम अपनी ज्ञानचक्षु से परे की हर बात कोअस्वीकार करते हैं जबतक उसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिल जाता है। और विज्ञान की अपनी सीमा है - वह हर क्या का जबाब तो दे सकता है लेकिन हर क्यों का नहीं।

अभीतक कोई भी मनुष्य बुध ,गुरु और शनि ग्रह पर नहीं गया है। अभी तक शायद नासा ने वहाँ पहुंचने का कोई मिशन भी लांच नहीं किया है। नासा ने जब मून मिशन लांच किया था सतर के दशक में तो यह बहुत बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि माना गया था। उसकी हर तरफ चर्चा थी।उसके पहले तक चाँद केवल कवियों और प्रेमियों को रिझाता था। बच्चों को चंदा मामा के लोरी प्यारे लगते थे। जब यह हुआ कि अपोलो अब चाँद की सतह कि तस्वीर लेगा यह बताएगा कि वहां की धरती कैसी है आदि इत्यादि। उसी समय पुणे के डॉक्टर वर्तक ने अपने दोस्तों से कहा कि मैं भी जरा चाँद पर से घूमकर आता हूँ। वो अपने ध्यानकक्ष में कुछ घंटों तक बंद रहे। फिर बाहर आकर अपने दोस्तों और सहयोगियों को बताया कि चाँद के धरातल पर उन्होंने क्या क्या देखा। उनके सूक्ष्म शरीर के चंद्रयात्रा का वर्णन स्थानीय साप्ताहिक में प्रकाशित हुआ। करीब छह महीने बाद अपोलो द्वारा भेजी गई तस्वीर के विश्लेषण के आधार पर नासा ने जो रिपोर्ट प्रकाशित किया उसमे से दस बातें हु-बहु वही थीं जो डॉक्टर वर्तक ने अपने लेख में लिखा था। इसके बाद उनके समर्थक और अनुयायियों को उनपर और भरोसा बढ़ गया।उनकी बाकी तीन बातों का भी सत्यापन 2004 में नासा ने किया।अभी उनकी कही बातों में से दो बातों का सत्यापन नहीं हुआ है।इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि जब विज्ञान प्रगति कर लेगा तो शायद वो बातें भी सही प्रमाणित हो। नासा के रिपोर्ट के बाद लोगों ने कहा कि आप चाँद पर क्या सचमुच गए थे? उन्होंने अपने लोगों को कहा की मैंने टेलिपोर्ट की क्षमता विकसित की है और ब्रह्मांड में कहीं भी सूक्ष्म शरीर में जा सकता हूँ। फिर अपने अनुयायियों के आग्रह और अपनी जिज्ञासावश मंगल, बुध, वृहस्पत और शनि ग्रह की यात्रा की और अपने अनुभवों को लोगों से साझा किया। उन्होंने कई पुस्तक भी लिखा है। उन्होंने बताया कि मंगल का वायुमंडल लाल, बुध का पिंक और शनि का काला है। अभी तक इसका वैज्ञानिक सत्यापन होना बाकी है। यू ट्यूब पर उनके बहुत सारे वीडियो भी उपलब्ध हैं।


सत्यम - यह भी तो हो सकता है कि वर्तक जी की बातें कोरी कल्पना हो और उसमें कोई सत्यता नहीं हो।


रवि - हो भी सकता है। लेकिन डॉ. वर्तक एक क्वालिफाइड प्रैक्टिसिंग डॉक्टर रहे हैं। वो कोई भभूत लपेटकर और जाटा बढ़ाकर घूमनेवाले ढोंगी बाबा नहीं थे। उनकी आध्यात्मिक समझ बहुत ही ऊंच कोटि की और वैज्ञानिक रही है। वैसे देखा जाए तो आइंस्टीन ने भी बहुत सारी थ्योरी दी है जिसका वैज्ञानिक सत्यापन नहीं हुआ है। लेकिन कोई भी उनको गलत नहीं कहता है क्योंकि उनको गलत कहने के लिए भी साबित करना पड़ेगा। उनके जिस थ्योरी को सिद्ध किया जा सका है वह सब सटीक निकला है। उनका एक सिद्धान्त है कि यदि किसी भी वस्तु को प्रकाश के वेग से फेंक दिया जाए तो वह अपने मूल स्वरूप में परिवर्तित हो जाएगा। आजतक इसका सत्यापन नहीं हुआ है क्योंकि कोई भी ऐसी मशीन नहीं बनी है जो किसी वस्तु को प्रकाश की गति से घूमा सके। यदि आइंस्टीन का यह सिद्धांत सही है और तुम्हारे पास वह मशीन उपलब्ध हो तो उसमे तुम्हारी होने वाली बछिया माँ को घुमाने पर तुम्हारी माँ जिंदा हो जाएगी और आगे घुमाने पर वो जवान होंगी और तुम उनके गर्भ में चले जावोगे। यह तबतक अर्धसत्य है जबतक वैसी मशीन नहीं बन जाती। मशीन बनने के बाद यह सम्भव होगा या आइंस्टीन का सिद्धांत गलत साबित होगा। अतः जबतक मनुष्य उन ग्रहों पर नहीं पहुँच जाता डॉक्टर वर्तक को सही मनना चाहिए।


सत्यम - आपकी बात में दम तो लग रहा है। आप टेलीपैथी का कोई उदाहरण दे सकते हैं?


रवि - रावण के जब सभी योद्धा वीरगति को प्रप्त हो गए तो उसको पाताल लोक में रहनेवाले अहिरावण की याद आयी। उसको बुलाने के लिए अपना दूत भेजना चाहता था। तभी उसको नाना माल्यवान ने कहा तुम उसको टेलीपैथी ( मानस संपर्क) से बुला लो क्योंकि वहाँ जाने में बहुत समय जाएगा। रावण ने वैसा ही किया।  

आजकल अमेरिका में टेलीपैथी पर बहुत गंभीर शोध हो रहा है। हमारे मस्तिष्क की क्षमता असीमित है। हमलोग इसकी क्षमता का अधिकांश भाग का उपयोग नहीं कर पाते हैं। ऐसा रिसर्च करने वालों का कहना है कि ज्ञात इतिहास में आइंस्टीन ने अपने ब्रेन पावर का अधिकतम उपयोग किया था जो लगभग 2.5%था। इससे आप अंदाज लगा सकते हैं कि हम अपनी क्षमता का नगण्य उपयोग कर पाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जब हम अपने ब्रेन को अल्फा लेवल पर साधना सिख लें तो उसके चमत्कारिक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। यह बहुत ही आम बात है कि अपने करीबी के साथ यदि कुछ अचानक बुरा होता है तो मन बेचैन हो जाता है, समझ नहीं पाते हैं लेकिन एक अशांति सी महसूस होती है। वैज्ञानिक का ऐसा मानना है कि संकट की घड़ी में हमारा मन मस्तिष्क अपने करीबी को सूचना भेजता है जिसे हम समझ नहीं पाते हैं लेकिन मन उसको महसूस कर बेचैन हो जाता है। इसको प्रमाणित करने केलिए अमेरिका में शोध किया गया। एक मादा खरगोश और उसके दो बच्चों पर। मादा खरगोश के ऊपर एक यंत्र लगाया गया जो मस्तिष्क में होने वाली हलचल को माप सके। फिर उसको गहरे समंदर में ले जाया गया। इधर उसके एक बच्चे की गर्दन काट दी गयी। उधर उस खरगोश के मस्तिष्क पर लगे यंत्र में डिफ्लेक्शन हुआ। थोड़े समय के अंतराल पर वही प्रक्रिया दूसरे बच्चे पर किया गया। परिणाम बिल्कुल एक जैसा आया। इसका मतलब तो यही हुआ कि खरगोश के बच्चे पर आई संकट का संदेश उसकी माँ के पास पहुँचा। इस शोध को विभिन्न प्रकार से दोहराकर वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि मेन्टल-कनेक्ट होता है और तत्क्षण होता है। इसमें दूरी ,समय ,मौसम आदि कोई भी बाधा नहीं बन सकता है। यह स्वतःस्फूर्त होता है लेकिन अभ्यास से भी इसको साधा जा सकता है। हमारे ऋषि महर्षि इसमें सिद्धहस्त थे इसके बहुतेरे प्रमाण हमारे माइथोलॉजी में भरा पड़ा है। उनको घटना होते ही आभास हो जाता था। जब अर्जुन और अश्वस्थामा दोनों ने ब्रह्मास्त्र चला दिया था उसको महर्षि व्यास ने आकर रोका था क्योंकि उनको उस अनिष्ट का आभास हो गया था।

सत्यम ने आश्चर्यभाव से कहा " इसका मतलब यह हुआ कि वह तांत्रिक टेलीपैथी से अपने खबरी से सम्पर्क करता है और यहाँ की जानकारी प्रप्त करता है।" रवि ने उसके बात से अपनी सहमति जतायी। फिर दोनो ने यह तय किया कि हमलोग उन खबरी के नजर में आए बिना उस घर पर नजर बनाकर रखते हैं। आगे जो भी होगा देखा जाएगा।

अब उन दोनों का नित्यकार्यक्रम हो गया।उस घर की निगरानी करना।उसमे आने जानेवालों पर नजर बनाकर रखना। बारीक से बारीक परिवर्तन पर चर्चा करना ,उसको समझने का प्रयास करना। अब राधा की माँ अक्सर घर से बाहर निकलने लगी। बाजार जाकर सब्जी फल खरीद कर लाने लगी। सत्यम को ध्यान आ रहा था कि राधा की माँ का घर से बाहर निकलना लगभग तीन साल से ना के बराबर हो गया था। उनका सेहत भी देखने में अच्छा लग रहा था। यह देखकर सत्यम को अच्छा लगा ।लेकिन उसकी दिलचस्पी अपनी बछिया माँ में और यह जानने में है कि कौन सी ऐसी प्रेतात्मा है जिसने आंटी को परेशान कर रखा है।

रोज की तरह सत्यम अपने सुरक्षित स्थान पर बैठकर राधा के बैकयार्ड पर नजर बनाए हुए था। तभी गाय नानी को रामु बाहर लेकर आया तो उसका शरीर हल्का दिख रहा था। वह सोंचने लगा , हो सकता है मेरी माँ का पुनर्जन्म हो गया हो ! तभी पीछे से एक प्यारी सी बछिया को लिए राधा के पापा बाहर आए। भूरे रंग की नवजात बछिया को देखकर उसका मन प्रसन्न हो गया क्योंकि उसके अंदर उसके माँ की आत्मा थी। लेकिन अगले ही पल वह उदास हो गया कि वह उसके पास नहीं जा सकता क्योंकि तांत्रिक ने चौकी मार रखा है। वह अपने मन मे उदासी, उत्सुकता, विवशता और लालसा के भाव लिए गाय और बछिया को दूर से निहार रहा था। गाय अपने नवजात बछिया को चाटकर साफ कर रही थी वह बछिया कभी लड़खड़ाकर गिरती ,संभलती, उठती और अपने माँ से चिपक जाती।

सत्यम यही सोच रहा था यदि यह बंधन नहीं होता तो वह रामु के शरीर मे घुसकर अपनी माँ को बहुत प्यार करता, खूब सेवा करता। उसकी इस भावना को रवि समझ रहा था। लेकिन दोनो विवश थे कुछ कर नहीं सकते थे ।रवि ने कहा अनुमानतः गाय ने कुछ ही समय पहले बच्चा जना है क्योंकि उसका खेंढी भी नहीं साफ हुआ है। चलो तुमने अपनी माँ को जन्म लेते तो नहीं देखा लेकिन जन्म होते ही देख लिया। अब दूर से उनका दर्शन करते रहना जबतक यह अभिमंत्रित चौकी का संकट दूर नहीं हो जाता।"

सत्यम ने बड़े ही उदास स्वर में कहा "इंतजार के अतिरिक्त हम कर भी क्या सकते हैं। देखो ना, मेरी माँ कितनी प्यारी लग रही है। माँ किसी भी रूप में प्यारी ही लगती है।"


क्रमशः ---------


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