Rashi Saxena

Abstract Drama Inspirational

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Rashi Saxena

Abstract Drama Inspirational

सोशल-मीडिया

सोशल-मीडिया

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आज कि सुबह सूनी सूनी थी, लैंडलाइन पर बेल तो आ रही फिर wifi क्यों नहीं चल रहा। हर्षाली हर थोड़ी देर में अपने स्मार्टफ़ोन को चेक कर अमित से शिकायत कर रही थी। हर्शाली के हावभाव ऐसे हो रहे थे मनो कोई बेशकीमती सामान गुम हो। थोडा परेशान तो अमित भी था पर हर्शाली जितनी अकबकाहट न थी, “तुम तो अभी ऑफिस पहुच कर वहां के wifi से काम लेने लगोगे, मेरा तो सब काम बिगड़ रहा है।” अमित क कम परेशान होने कि वजह हर्षाली समझ रही थी। “डॉ सहेलियों क जन्मदिन हैं, एक मासी कि सालगिरह है, कुछ मजेदार चुटकुले कुछ रोचक जानकारिय कितना कुछ है आज इधर उधर के ग्रुप्स पर भेजने को “, हर्षाली बस बार बार फ़ोन देख झुंझलाए जा रही थी।ऑफिस पहुचते ही अमित काम में मग्न हो गया ब्रॉडबैंड कि कंप्लेंट करना उसके दिमाग से ही उतर गया। इधर हर्षाली मानो बिना whatsapp फेसबुक पागल हो रही थी जैसे संसार में कुछ बचा ही नहीं अकेली रह गयी हो। घर के कामो को भी बेमन निपटा रही थी। बच्चो के भी स्कूल से आने में अभी काफी समय था और इस समय टीवी पर भी मन बहलाने योग्य कुछ ख़ास न आ रहा था। तभी धोबी इस्त्री क कपडे ले के आया। कपड़ो का हिसाब-किताब लेन देन हर्षाली देख ही रही थी के धोबी के नोकिया ११०० कि घंटीबजी ,’ये वाली रिंगटोन तो अब सुनने ही नहीं मिलती’ , हलकी सी मुस्कान के साथ हर्षाली मन में बुदबुदायी। बात ख़त्म कर धोबी वापस लौटा, बड़ा खुश-खुश, अपनी ख़ुशी वो हर्षाली से भी सांझा किये बिना रह न सका , “ बहिन जी , हामार पुराने सखा फ़ोन किये रहे , सखा क्या गुरु कह लो, पैसो से और तन से हामार और परिवार का बहुत साथ दिए कठिन समय में।

जब से गाँव से शहर आ गए उनसे ज्यादा संपर्क ही न कर पाते हैं बस तीज-त्यौहार, जन्मदिनों पर उनको और उनके बाकि परिजनों को फ़ोन कर लेते हैं, फ़ोन पर ज्यादा देर बातचीत हो नहीं पाती सो मन ही नहीं भरता। अभी फ़ोन कर बता रहे हैं इस बार दशहरा हामार संग मनाएँगे,बहिन जी हामार ख़ुशी का तो ठिकाना न समझो अभी घर जात ही घरवाली बच्चों को तैयारी में लगा दे समझो। उनके लिए कुछ कर पाने का मौका ईश्वर दे रहा हमको।” धोड़ी अपनी बात कहता हुआ कपड़ों कि गठरी बांधता विदा हुआ और हर्षाली दरवाज़ा बंद कर सोफे पर बैठ सोच में पड़ गई के सोशल होने के लिए “सोशल-मीडिया” का मोहताज़ क्यों होना ? अपना फ़ोन उठा पहला फ़ोन अपनी मासी को लगाया, “ हेल्लो मासी, शादी कि सालगिरह कि शुभकामनाएं”। “हाय हर्षु, मेरी बच्ची,थैंक यू सो मच बीटा, कैसी है दामाद जी बच्चे सब बढ़िया? घुमा जा बच्चो को रायपुर का मौसम अच है आजकल।”

हर्षाली-मासी कि बातों का सिलसिला यूँ खीचा के कब आधा घंटा हो गया पता ही नहीं चला। मासी-हर्षाली कुछ डेढ़-दो साल बाद आपस में फ़ोन पर बात जो कर रहे थे बहुत कुछ था औपचारिकता से परे एक दुसरे को बताने सुनाने को। “अमित जी को बताती हूँ आपके निमंत्रण के बारे में जल्द ही आने का प्रोग्राम बनाते हैं।” इस वादे के साथ पहला फ़ोन कट हुआ। अब बारी थी एक स्कूल और एक पुराने ऑफिस जहाँ हर्षाली शादी से पहले काम करती थी , वहां कि सहेलियों कि। उन दोनों को जन्मदिन विश करना था। स्कूल कि सहेली तो चहक ही उठी उधर से फ़ोन उठाते ही,”व्हाट ऐ प्लेअसेंट सरप्राइज यार, तूने फ़ोन किया आज क दिन जस्ट लवली।” यहाँ भी वर्षों से कोई वार्तालाप न था तो काफी साड़ी जानकारियाँ एक दुसरे को दी गईं। क्या दिनचर्या है, बच्चे किन क्लासेज में पढ़ रहे, पति का क्या जॉब प्रोफाइल है,वगेरह,वगेरह।

हर्षाली सुबह से जिस अकेलेपन से जूझ रही थी वो कहीं काफूर हो रहा था। सर्वर कि कोई प्रॉब्लम चल रही थी सो, वाईफाई स्लो था पर सिग्नल लेने लगा था, अब हर्षाली को इस वाईफाई कि ज़रूरत नहीं थी पर। अगला फ़ोन लगा अपनी पुराणी सहकर्मी को,”हेल्लो रेनू मैडम, हैप्पी बर्थडे,कैसी हो आप?”, “ओह, माय गॉड हर्षाली डिअर क्या बात है,ऑफिस के बाद तो तेरी आवाज़ आज सुन रही हूँ, कहाँ गायब हो यार।” हर्षाली को हँसी आ गई,”अरे कल रात तक ऑनलाइन आई हूँ और कह रही हो गायब हूँ?” रेनू मैडम बोलीं, “अरे गुडमोर्निंग-गुद्निएततो बस हम जिन्दा हैं, ये बता देते हैं।” दोनों खिलखिला के हंस पड़े। रेनू मैडम से हुई लम्बी बात में एक बात सबसे ख़ास और गहरी लगी हर्षाली को ,”व्हात्साप-फेसबुक पर औपचारिक बर्थडे-एनिवर्सरी विशेस रहती हैं सो मैं भी सधे रात को एक बार में सारे मैसेज देख के औपचारिक थैंक यू कर दूंगी, सच मायने में तो शुभकामनाएं तुमने दी हैं, सालभर याद रहेगी क्युकी आजकल फ़ोन करने वाले गिने चुने ही तो बचें हैं।” सारे फ़ोन कॉल्स निपटा क हर्षाली किचन कि ओर बढ़ी, बच्चें आने को थे ,खाना गरम करना था।

पर मन में एक विचार जोर पकडे था कि कया ये महज हमारी भ्रान्ति है कि हम सबसे जुड़े हैं, त्यौहार जन्मदिन प्रमोशन ऑनलाइन विश कर के।

शाम को आर में घुसते ही अमित को फ़ोन कि शिकायत का ख्याल आया। “ओह, हर्षाली, आई मिस्ड आईटी, कंप्लेंट करना भूल गया।” पर ये क्या मैडम नाराज़ हुए बिना मुस्कुरा के बोलीं, “कोई बात नहीं”, “मुझे ऑनलाइन होने के लिए किसी सिग्नल कि जरुरत नहीं न ही सोशल होने के लिए इन् औपचारिक सोशल मीडिया कि।”


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