आंगन का फूल
आंगन का फूल
" माँ , सारे रिश्तेदार आजतक नहीं भूले कुछ, और बार बार हमें भी याद दिला रहे हैं के क्या किया था हमने 15 साल पहले । क्या हमारे ज़ख्म कुरेदने के लिए आप पीछे पड़ी थी हमारे के एक बार अपने देश गांव घूम जाओ। मेरा भी दिमाग ख़राब था जो आपकी बातों में आ गया, कैसे भूल गया इन्हीं बातों से बचने के लिए इतने सालों पहले यहाँ से हमेशा के लिए अमेरिका चले जाने का निर्णय लिया था। "
"क्या अंकुश , तूने इन् बातों से बचने को यहाँ से हमेशा के लिए जाने का फैसला लिया था ? ये सच्चाई मुझे आज मालूम पड़ी और तेरे पिता तो अनजान ही चले गए। हम तो सोचते थे बेटी को अच्छी परवरिश देने का अवसर मिला तरक्की मिली इसीलिए तुम और महिमा नन्ही अमी को हमसब से दूर ले गए। और अमी के भविष्य के लिए ही हम भी मन कड़ा कर लिए।"
दरअसल , अंकुश महिमा और बेटी अमी के साथ सालों बाद कुछ दिनों के लिए अमेरिका से अपने देश भारत अपनी माता के पास आया हुआ था। विवाह के वर्षों बाद भी जब अंकुश महिमा को शिशु प्राप्ति न हुई तो उन्होंने अमी को ६ महीने की उम्र का गोद लिया था। दोनों ऊंची नौकरी में पुणे में व्यवस्थित थे बेटी का पालन पोषण करने में सक्षम पर फिर उन्होंने देश ही छोड़ने का निश्चय किया। ताकि कभी किसी को कुछ याद भी न रहे की अमी हमारी अपनी बेटी नहीं गोद ली है और धीरे धीरे समाज नातेदार भी भूल जाये ये सब और सभी अमी को हमारी अपनी बेटी ही माने। परदेस जाने के बाद बेटा कभी वापस नहीं आया हमेशा माता पिता को अपने पास बुला लेता था। पोती के प्रेम में दादा दादी भी कभी ३ महीने कभी ६ महीने को अमेरिका बेटे के पास हो आते थे। कुछ वर्ष पूर्व विदेश प्रवास के दौरान ही पिता को कैंसर हुआ कुछ महीनों इलाज के बाद भी उन्हें बचाया न जा सका। माँ अब अकेली हो गईं थी। सिलसिला अभी भी वही चला माता जी अकेले कभी भारत कभी अमेरिका रहने लगीं। गांव में ध्यान रखने को एक पैतृक मकान और ढेर सारे सगे सम्बन्धी जो माता जी का मन गांव में लगाए रखते थे। माँ ने अपने उम्र के इस पड़ाव पर इतने वर्षो बाद अब कहा , " बेटा, जब तुमलोगों को कभी वापस आना नहीं तो इस घर को भी मेरे रहते ही अपने ताऊजी के बच्चों को दे दो उनको आर्थिक मदद की ज़रूरत है और मेरी तीमारदारी भी वो लोग बिना किसी लालच अभिलाषा के करते हैं। अंकुश को भी अहसास था के ताऊजी के ही बच्चों ने उसकी अनुपस्थिति में माता पिता के लिए सारे फ़र्ज़ निभाए थे ,सो उसे भी इसमें कोई ऐतराज़ नहीं था। गांव घर की याद तो अंकुश को भी आती थी और वो भी चाहता था के अमी भी वो घर आंगन देखे जहाँ उसके पिता का बचपन बीता। जल्द ही अंकुश ,महिमा और अमी संग सम्पति नामांतरण के लिए घर आ गया। माँ बहुत खुश थीं बरसों बाद बेटा बहु पोती घर जो आये हुए थे। सारे नाते रिश्तेदारों को खबर कर रखी थी के सबसे मिलवाने लाएंगी अपने परिवार को।
आज जब बुआ जी से मिलने गए तो उन्होंने अमी को प्यार से पास बिठाया गले लगाया, " पूरे नैन नक्श रंग रूप अपने खानदान वाले दिखते हैं कोई कह नहीं सकता अपनी औलाद नहीं। बिट्टो तुझे तो हमने फोटो में ही बड़ा होते देखा। "
बस इस बात से अंकुश तिलमिला उठा , बुआ जी के यहाँ से आने के बाद उसकी माँ से बहस हो गई थी , " इन्हीं तानों से वो खुद को और बेटी को दूर ले गया था। आजतक कोई नहीं भुला के बेटी मेरी नहीं। अमी को तो ये सब पता भी नहीं कितने सवाल करेगी सोचा है किसीने। " अंकुश बेहद गुस्से में माँ से सवाल किये जा रहा था और माँ इस सदमे में थी की हमसे कभी कोई बात न सलाह करी के इतना बड़ा निर्णय बस इस राज को राज रखने के लिए ले रहे हो देश छोड़ रहे हो।
तभी अमी पापा दादी के पास आयी और बोली, " पापा दादी से मत झगड़िये प्लीज , मुझे सब पता है। " अंकुश चौंक गया। "हां पापा मुझे दादू और दादी ने बताया था के मैं घर कैसे और कितनी बड़ी उम्र की आयी। मुझे एल्बम में कभी अपने नवजात शिशु अवस्था के फोटो नहीं दिखते थे तब दादू दादी से मैं बहुत सवाल करती थी। आप और मम्मा तो काम और विदेशी लाइफस्टाइल के चलते मुझे नैनी के भरोसे छोड़ देते थे मैं महीनों अपने सवाल संभाल के रखती और फिर दादू दादी के आते ही उनसे पूछा करती। दादी ने पहले ही बताया था के जब भी मैं गांव घर आउंगी सब मुझे निहारेंगे परखेंगे देखना चाहेंगे के मैं उनकी फॅमिली की लगती हूँ या नहीं क्युकी उन्होंने मुझे बचपन से पलते बढ़ते नहीं देखा वर्ना अब तक तो सभी ये बात भूल भी गए होते। ज़ख्म दूसरों ने नहीं कुरेदे पापा आप ने अपने मन में ज़ख्म बनाया हुआ है। आपने एक बहुत ही अच्छा कदम लिया था सालों पहले जो समाज के लिए सीख था। दादू दादी को आप और मम्मा पर गर्व है वे हमेशा मुझसे कहते थे के तू तो हमारे ही घर का फूल है बेटा जो ईश्वर ने दूसरे के आंगन में रोप दिया था। पुणे रहते हुए हम सबसे मिलने आते रहते सब मुझे अपना चुके होते अभी तक आपकी अपनी बेटी के रूप में। आप इन् रिश्ते नातों से दूर ले गए जबकि सबके बीच रहते हुए न सिर्फ मुझ अनाथ की अच्छी परवरिश होती बल्कि मुझे और भी कितने रिश्ते मिलते आप और मम्मा के साथ साथ जैसे बुआ दादी , बड़े दादू, मामी दादी , चाचू चाचिया इतने सारे चचेरे ममेरे भाई-बहिन। अमेरिका ले जा कर आपने तो अपना सच मुझसे छिपा लिया पर मुझे मिला बस अकेलापन।
अंकुश और महिमा को एहसास हो गया था के बिना बड़ों की सलाह के अपने अनुसार निर्णय कर के कितनी बड़ी भूल कर दी थी। माँ बोली , " अभी भी देर नहीं हुई है , लौट आओ अपनों के पास , खिलने दो अमी का बाकि बचा बचपन इन् नगर गांव के बीच।
