Rashi Saxena

Inspirational

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Rashi Saxena

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मेरे पिता आदर्श पुरुष

मेरे पिता आदर्श पुरुष

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"बहुत जुबान चल रही है , एक बार में काट दूँ रोज़ रोज़ की चिक चिक ही खत्म हो जाएगी। " पति ने तैश दिखाते हुए कहा , पत्नी भी तुरंत आँखें बड़ी बड़ी कर के बोली , " आइये अंदर कमरे में बात करते हैं हमारी तेज़ आवाज़ बच्चों को परेशान करेगी , बेटियां पढ़ रही हैं। " 

अंदर कमरे में घुसते हुए पति ने फिर तेज़ स्वर और कुटिल हँसते हुए पूछा , " कमरे में चलते हैं तो ऐसे कहती हो जैसे मुझ पर भारी पड़ोगी , खाती फिर भी मेरी मार ही हो न। " पत्नी ने दरवाज़े की कड़ी लगते हुए कहा , " ताकि कल को मेरी बेटियां पति की मार न खाएं, मुझे भगवान ने दो बेटियाँ दी हैं, मैं नहीं चाहती मेरी बेटियाँ भी मुझे देखकर यह सीख लें की पति की मार खाना उलहाने झेलना हर नारी की नियति है। मैंने अपनी माँ को और शायद मेरी माँ ने भी अपनी माँ को ऐसे ही देखा और यही सोच बना ली। ये आम बात लगती थी पिता के हाथों मार खा लेना, चार खरी खोटी बातें जो आत्मा को तार कर देती हैं उनको भारी मन से सुन लेना फिर भी पिता की गृहस्थी और संसार को सुनहरा बनाने में अपनी जान तक झोंक देना। पिता भले ही कोई कद्र न करें पर अपने सपनों और जुबान को लगाम देते रहना। मैं चाहती हूँ वो देखें और सीखें की माता पिता या पति पत्नी का झगड़ा - विवाद भले ही आम पारिवारिक घटनाएं होती हैं इसमें कोई नयी बात नहीं किन्तु बोलने का अधिकार दोनों का है दोनों अपने पक्ष रखेंगे एक दूसरे की सुनेंगे बंद कमरों में भी विवाद बात से ही हल होगा, हाथ उठाना तो सर्वथा वर्जित ही होता है। 

 स्त्री है तो भी मानसिक हो या शारीरिक घरेलू हिंसा सहन नहीं करनी है । बेटियां देखें की पिता माँ को भी आदर और माँ की बात को भी तवज्जोह देते थे परिवार के निर्णय दोनों की सहमति से होते थे, विवाद के हल बातचीत से निकलते थे और हाथ उठाने जैसे कुकृत्य तो उनके महान पिता कर ही नहीं सकते। तभी वो अपने पति से उसी सम्मानित व्यवहार की उम्मीद करेंगी। बेटियां अक्सर पति में पिता की छवि देखती हैं क्यूंकि उनके जीवन में पिता ही आदर्श पुरुष जो होते हैं। " 

अचानक पति का दम्भ कम हुआ और आभास हुआ के वो पिता भी हैं , कल को कैसे बर्दाश्त होगा उनको यदि कोई उनकी बेटियों को आँख भी दिखा देगा फिर डाँट डपट फटकार तो दूर की बात है। अब दोनों के बीच के बहस-विवाद का विषय ही बदल गया था , और अब बात आ गयी थी उस संयमित व्यवहार पर जो बेटियों को मजबूत बनाएगा। बेटियों में सही सोच समझ डालना सिर्फ माँ का फ़र्ज़ नहीं ,संतान दोनों की है और कल को उनके भी परिवार होंगे। कल को बेटियां घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार की शिकार न हों सिर्फ ये सोचकर के इसमें कुछ गलत नहीं पीढ़ियों से महिलाओं के साथ ऐसा ही होता आया है। 

पति ने गलती का न सिर्फ अहसास किया अपितु भविष्य में बेटियों को अच्छी सीख शिक्षा की जवाबदारी लेते हुए पत्नी के प्रति आदर और सौहार्दपूर्ण व्यवहार का वादा किया। झगड़ा विवाद एक दूसरे से असहमति वाज़िब है संग रहते हुए गृहस्थी की गाड़ी चलते हुए, पर इनका निपटारा दोनों की सलाह और बातचीत से ही हो हमेशा तभी घरेलू हिंसा की रोकथाम संभव है। 

दोनों बेटियों ने कमरे से बातचीत करते माता पिता को निकलते देखा और समझ गईं के माता पिता ने चर्चा कर विवाद का हल निकाल लिया और फिर से घर में शांति स्थापित है। 

आज सच में समस्या के निवारण की शुरुआत एक परिवार से हो गईं थी , भविष्य में विवाहित बेटियों के साथ होने वाली घरेलू हिंसा , दकियानूसी सोच , पारिवारिक आचरण और सुरक्षा की समस्या । 

 


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