Rashi Saxena

Children Stories Thriller

4.6  

Rashi Saxena

Children Stories Thriller

मित्र से आस- एक विश्वास

मित्र से आस- एक विश्वास

7 mins
427


एक समय की बात है एक गाय और बाघिन में घनिष्ठ मित्रता थी। दोनों एक दूसरे के बिना कहीं नहीं जाती और हर दम संग संग ही रहती थीं। गाय का एक बछड़ा और बाघिन का एक शावक बाघ था वो भी अपनी माँ की तरह आपस में अच्छे मित्र बन गए थे अपने जन्म से ही। जहाँ एक ओर गाय अपने बछड़े के साथ मैदान में घास चरती वहीँ दूसरी ओर बाघिन अपने शावक के साथ जंगल में शिकार करती और अपने बच्चे को भी शिकार के गुण सिखाती। चारों मिलकर सौहार्दपूर्वक साथ रहते थे। 

एक दिन बाघिन शिकार की फिराक में एक पहाड़ की झाड़ी में घात लगाकर बैठी थी। गाय उसी पहाड़ पर कुछ ऊंचाई पर घास चार रही थी। घास चरते हुए गाय की लार नीचे टपकी जो बाघिन के पंजे पर गिरी। बाघिन ने यूँ ही पानी समझ उसको चाट लिया जो बड़ा स्वादिष्ट लगा। बाघिन ने जब ऊपर की ओर देखा तो समझ गई के ये गाय की लार है। अब भूखी बाघिन के मन में ख्याल आया के जब इसका थूक इतना मीठा हो सकता है तो इसका खून कितना मीठा होगा? और झट से उसने छलांग लग दी अपनी सहेली गाय की ओर और उसका गला दबोच उसका शिकार कर लिया। जब शावक और बछड़ा शाम को खेल कर घर आये तो बछड़ा अपनी माँ को ढूंढ़ने लगा। बाघिन शावक से बोली पहले मैं शिकार लायी हूँ वो खा लो फिर चलकर गाय को ढूंढ़ते हैं पर शावक बोला, " नहीं माँ मेरे दोस्त की माँ नहीं मिल रही मैं खाना कैसे खा लूँ? और वो तो आपकी भी पक्की सहेली हैं आपको उनकी चिंता नहीं हो रही के वो अभी तक घर क्यों न आयी? " 

बाघिन बोली , " बेटा, आज मैंने गाय का लार पहली बार चखा और मुझे पता चला कि उसका माँस भी अत्यधिक स्वादिष्ट है , ये मैं उसी का शिकार कर के लायी हूँ। कुछ दिन बाद हम बछड़े का भी शिकार कर के मज़े से खाएंगे। भूख के आगे कोई दोस्ती नहीं होती मेरे बच्चे। "

शावक को बहुत गुस्सा आ गया, उसे अपनी माँ से नफरत हो गई वो बोला , " माँ आप ने अपनी ही सहेली का शिकार कर लिया, वो बेचारी आपको मित्र समझती थीं आप अपनी भूख में उसी को खा गयी ,ये आपने बहुत बुरा किया माँ। मैं अब आपके साथ नहीं रह सकता ,आप खुद तो गलती कर ही दी मुझे भी गलत बात सीखा रही हो। मैं जा रहा हूँ अपने मित्र बछड़े के साथ आपसे बहुत दूर। "

बछड़ा भी बाघिन और शावक की बातचीत गुफा के बहार खड़ा सुन रहा था, उसे ये जानकार बहुत दुःख हुआ के उसकी माँ की हत्या उन्हीं की सबसे अच्छी सहेली ने की है। जब शावक गुफा से बाहर आया तो बछड़े को एक तरफ उदास खड़ा देख समझ गया के उसने सब सुन लिया है। बछड़ा शावक से बोला ," मित्र, तुम अपनी माँ को यूँ छोड़कर मत जाओ, अपने परिवार को खोना क्या होता है मैं समझता हूँ तुम उन्हें ये दुःख मत दो, तुम्हारी माँ ठीक कहती हैं, तुम मेरा भी शिकार कर लो। माँ के सिवाय इस संसार में मेरा और कोई नहीं मैं भी जीकर क्या करूँगा। मैं भी अपनी माँ के पास चला जाऊंगा और तुम्हारी भूख भी शांत कर पाऊँगा। तुम मुझे भी मार दो। "

शावक बोला, " ऐसा मत कहो मित्र, इस संसार में तुम्हारा दोस्त है न तुम्हारे साथ खुद को अकेला क्यों समझते हो , तुम्हारा दुःख मैं समझता हूँ माता का वियोग असहनीय होता है इसीलिए मेरी माँ की यही सज़ा है के वो भी अपनी संतान के वियोग में जीवन बिताएंगी। अब चलो मेरे साथ हम यहाँ से दूर किसी जंगल में जाएंगे। "

दोनों मित्र पहाड़ों नदियों जंगलों को पार कर दूसरे देश आ गए। दोनों अब उम्र में बड़े भी हो चुके थे। बछड़ा अब बैल और शावक बाघ बन गया था। पर दोनों की मित्रता में ज़रा भी फर्क नहीं पड़ा था। बाघ बैल साथ साथ यहाँ वह घूमते , बाघ शिकार करता तो बैल घास फूल पत्ती खाकर अपना पेट भरता और बाघ बैल की जंगली जानवरों से रक्षा करता था। 

फिर एक दिन बाघ बैल से बोला, " भाई, मुझे अब यहाँ शिकार के लिए ज़्यादा जानवर नहीं मिलते। " बाघ को बात सुन बैल घबराया , बाघ हंसा ," अरे भाई तुम क्यों डर रहे हो , मैं तुमको नहीं खाऊंगा। मैं तो ये कहना चाहता हूँ के मुझे शिकार के लिए दिन में थोड़ा दूर जाना पड़ेगा तुम यही घास खाना और मेरा इंतज़ार करना। " बैल बोला ," मुझे अकेले डर लगता है कहीं कोई जंगली जानवर मुझे खा गया तो, मैं नहीं रहूंगा तुम्हारे बिना मुझे भी साथ ले चलो ना। " बाघ बोला, " मुझे पता नहीं शिकार की तलाश में कहाँ कहाँ भटकना पड़े, तुम्हें भी परेशान होना पड़ेगा मेरे साथ ,यहाँ बढ़िया हरी हरी घास तालाब सब पास है तुम्हारे तुम मज़े से खाओ पियो क्या पता वह हरियाली हो भी या नहीं। और जहां तक बात है तुम्हारे डर की तो मैं तुम्हें एक घंटा दे के जाता हूँ , तुम्हें जब भी ख़तरा महसूस हो तुम ये घंटा बजा देना मैं झट से तुम्हारे पास आ जाऊंगा। " बैल को थोड़ी हिम्मत आयी घंटे की बात सुन कर। 

अब बाघ घंटा बैल को देकर निकल पड़ा शिकार ढूंढ़ने। बैल ने कुछ देर बाद सोचा अभी तक तो बाघ दूर चला गया होगा अगर उसे घंटे की आवाज़ सुनाई ना दी तो, उसने ये जानने के लिए के क्या सच में बाघ घंटे की आवाज़ पर भागा आएगा घंटा बजा दिया और क्षण भर में बाघ को सामने पाया। बाघ ने पूछा, " क्या हुआ " ? बैल बोला , " बस यूँही देख रहा था के तुम आओगे जल्दी के नहीं । " बाघ बोला, " अब देख लिया अब मैं जाऊं ? और जबतक ख़तरा न हो तुम्हें इस घंटे को मत बजाना। " बैल ने हामी में सर हिला दिया और बाघ फिर से चला गया। बैल को कुछ देर बाद फिर लगा क्या पता बाघ मेरा विश्वास करे ना करे अब या नाराज़ हो गया हो और ना आये, देखता हूँ आता है घंटे की आवाज़ से या नहीं। और दोबारा घंटा बजा दिया। बाघ फिर आ खड़ा हुआ बैल के पास। बैल हंस के बोला यूँही बजा दिया था। इस बार बाघ थोड़ा नाराज़ था के यूँ खेल मत करो घंटे का, विश्वास करो जब ज़रूरत होगी तुम्हें मैं आ जाऊंगा। इस हिदायत के साथ बाघ फिर चला गया। पर बैल कहा मानने वाला था आज पहली बार बाघ दूर वो बार बार घंटा बजा के ये जांचता रहा के बाघ समय पर आएगा के नहीं। पांच छः बार बाघ को बुला बुला के वो घंटे की आवाज़ का खेल बना चूका था। आखिर में बाघ नाराज़ हुआ और बोला अब तुम बजाते रहना मैं अपना काम खत्म कर के ही लौटूंगा। नाराज़ बाघ के जाने के कुछ ही देर बाद एक बरात उस जंगल से गुज़री और बारातियों ने वही कुछ देर आराम करने का निश्चय किया। बैल भी वही पास घास चर रहा था। बारातियों को भूख लगी और उन्हें बड़ा ही हृष्ट पुष्ट बैल नज़र आया के चलो आज इसको ही पक्का कर खाया जाए। बैल उनकी बात सुन घंटा बजने लगा। बाघ ने सोचा बैल यूँही बार बार मुझे बुला रहा है मैं अभी नहीं जाता , उसे मजाक की पड़ी है मुझे खाना नहीं मिल रहा घात लगाए लगाए थक गया उस पे इसका घंटा। और उधर वो बाराती बैल को मार कर खा गए। 

जब बाघ पहुंचा तो बैल को नहीं पाकर परेशान हुआ , बाराती भी बाघ को देख भागने लगे। बाघ बोला, " डरो मत मुझसे मैं अपने मित्र को ढूंढ रहा हूँ, क्या आपने बैल को देखा है। " बाराती सोचे बैल और बाघ की भला क्या मित्रता कुछ और बात होगी हम बता देते हैं बाघ को सच्चाई और उन्होंने कहा ," जो बैल यहाँ घास खा रहा था उसको तो हम शिकार कर के खा गए। " पहले तो बाघ को बहुत गुस्सा आया उनपर और वो दहाड़ते हुए उनकी ओर लपका पर फिर ये सोचकर शांत हो गया के गलती तो उसकी भी है के उसने घंटे की आवाज़ को अनसुना किया कितना पुकारा होगा उसके मित्र ने उसको अपने आखिरी समय में। बाघ बारातियों से बोला, " मेरे मित्र को तो आपने मार ही दिया है, मैं भी अपने प्राण त्याग देता हूँ और हम दोनों दोस्तों की समाधियां यही इस जंगल में अगल बगल बना दीजिये ताकि सदियों तक हमारी दोस्ती की मिसाल रहे के कभी बाघ और बैल भी एक साथ रहते थे प्यार और सद्भाव के साथ। " और इसके साथ ही बाघ बारातियों के बनाए चूल्हे में कूद गया। अंत में बारातियों ने दोनों की समाधि बाघ की इच्छा अनुसार उसी स्थान पर बना दी और उनकी मित्रता के किस्से सदियों से याद किये जाते हैं। 

सन्देश - " मित्रता में कभी छल नहीं करना चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर सच्चे मित्र के लिए प्राण भी निछावर कर देना चाहिए। "


Rate this content
Log in