Rashi Saxena

Children Stories

4.2  

Rashi Saxena

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मधु -नीमा

मधु -नीमा

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" करेला , लोकी , परवल , मुनगे की फली , यह भी कोई खाने चीज़ होती हैं हैं क्या मम्मी ? थोड़ा मेरे लिए भी सोच के बना दिया करिये खाना कभी कभी बस हमेशा दादी जी और पापा जी की फरमाइश पर ये बेस्वाद व्यंजन बनातीं रहती हैं। " 

ये मेरी आये दिन की शिकायत होती थी मम्मी से जब मैं स्कूल में पढ़ती थी। दोपहर घर आओ और मम्मी शाम के खाने की तैयारी में आये दिन ये व्यर्थ सब्जियां काटती छॉँटती मिलती , बड़ा गुस्सा आता , "अरे , कितनी अच्छी-अच्छी दालें, पनीर, छोले भी तो बन सकते हैं न, क्यों करती हैं ये अत्याचार आप मुझपर। " दिल में आता था कैसी माँ हैं, अपनी ही औलाद को उसकी पसंद का खाना नहीं खिलाती। मम्मी सिर्फ हलकी मुस्कान के साथ , " ठीक है ,आज ये खा लो कल पक्का पनीर बना दूंगी ", बोल कर रह जातीं। खेर रोज़ ही ऐसे व्यंजन नहीं बनते थे कभी कभी मुझ गरीब के लिए छोले-पूरी, पाव-भाजी , इडली सांभर भी होता था। पर माँ तो माँ होती है न स्वाद के साथ साथ बच्चे की सेहत भी तो उसी की जिम्मेदारी है, भला सेहत के साथ समझौता कैसे कर ले। पाव भाजी की भाजी में बिना मेरी जानकारी के परवल, कद्दू , लोकी , टिंडे सबको पीस के मिला दिया जाता और मैं चटकारे लेकर खाती जाती। इसी तरह सांभर में भी लोके परवल कद्दू यहाँ तक के मुनगे की फली भी बेशुमार होती और सांभर में तोह मुझ दिख भी रहीं होती पर स्वाद ले ले खाती मैं। कभी कभी तो माँ रोज़ की दाल में भी आँवला, लोकी पीस में मिला देती और मुझे खट्टी मीठी दाल बोल के खिला देतीं। 

नतीजा ये हुआ कि धीरे धीरे मुझे हर सब्ज़ी दाल हरी भाजी सब कुछ खाने की आदत हो गई। सबसे ज़्यादा फायदा मुझे इस आदत का मेरे हॉस्टल जीवन में हुआ जहाँ न माँ के हाथ का स्वाद था न सेहत भरा खाना , बस दो वक़्त का खाना मिलता जिसमे कभी टिंडे, गिलकी, परवल आते। आलू मटर तो स्पेशल त्यौहार या मेस वाली मैडम की मेहरबानी पर निर्भर था। 

आज इतने वर्ष बाद यही तकनीक मैं भी अपने बच्चों पर अपना रहीं हूँ। दाल में कभी कभी सब्ज़ी उबाल देती हूँ वो भी चाव से खा लेते हैं। मेरी दादी कहतीं थी ,"हर खाने की वस्तु का अपना अलग महत्व होता है इसीलिए सब खाने की आदत उत्तम आदत , कभी कहीं अटकते नहीं है खाने के मामले में। जैसे दाल में प्रोटीन, दूध दही में कैल्शियम , गुड़ में आयरन, हरी पत्तेदार सब्ज़ियों में विटामिन A होता है ठीक वैसे ही खट्टे और तिक्त चीज़ें जैसे आँवला, नीम , करेला , नीबू आदि में विटामिन A , C एवं K और पोटैशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम मिनरल्स भी पाए जाते हैं जो हमारे पाचन तंत्र को सुरक्षित रखते हैं, हमारे बाल, त्वचा और रक्त सम्बन्धी विकार भी मिटाते हैं। बचपन में ये सब समझ नहीं आता था पर जब खुद स्नातक में फ़ूड साइंस एंड क्वालिटी कण्ट्रोल विषय का अध्ययन किया तब साक्ष्य सहित समझ आयी आँवला, नीम, करेला ,परवल की महत्ता। 

दादी के नुस्खे ही थे yजो वो मम्मी को देती थी के कैसे मम्मी हम बच्चों को भाजी सांभर दाल में सब्ज़ियां छुपा के खिलाए। जैसे की , बात 1994 की है हमारे शहर भोपाल में प्लेग फैला हुआ था। हर दिन आकड़े बढ़ रहे थे हॉस्पिटल में भीड़ थी बीमारों की। दादी ने कहा अब बचाव ही उपाय है तो रोज़ सुबह खाली पेट सब नीम की पांच पत्ती खाकर ही दिन की शुरुआत करेंगे। हम बच्चों को तो 7 - 8 साल की उम्र में कहाँ पड़ी थी बचाव की, उसपे नीम खाना जहर समान, सोच सोच के ही नानी याद आ रहीं थी के कल सुबह दादी के कहे अनुसार मम्मी पापा हम बच्चों के मुँह में भी ज़बरन नीम ठूसेंगे। आज की रात आँखों में नींद कहाँ थी, था बस नीम का भय। कैसे कसेला स्वाद होगा , छोटा भाई भी पूछ रहा था दीदी क्या कहते ही उलटी हो जाती है मेरे दोस्त बोलते हैं बहुत कड़वी होती है। मैं भाई को तो समझा रही थी कुछ न होगा अपन नहीं खाएंगे मत चिंता कर मैं हूँ न। पर अंदर ही अंदर खुद भी डर रही थी , कैसे बचेंगे दादी के हुक्म और कोप से। 

सुबह हुई हम दोनों भी तैयार थे कष्ट का सामना करने , पर ये क्या ? आज तो नीम की पांच पत्ती कहानी थी न ? ये हमारे सामने गटागट जैसी दिखती छोटी छोटी गुड़ की गोलियां रखी हुई थीं। पापा बोले, "बेटा, दादी ने आपलोगों के लिए गुड़ की गोली बनायीं हैं ,आप नीम अकेली नहीं खा पाते न इसीलिए आपकी दादी ने सुझाया के बच्चों को गुड़ में रख के दे दो। " हम दोनों ने फटाफट गोली खायी और जाकर लिपट गए दादी से , प्यारी दादी आप सब जानती हो बच्चों को क्या और कैसे खिलाना चाहिए। प्लेग की आहट भी न हो पायी हमें, बस कभी गुड़ कभी शहद कभी मिश्री संग खाली पेट नीम खाते रहे कुछ दिन। 

आज भी दादी मम्मी के ये छोटे छोटे टिप्स अपने बच्चों के खान पान को बेहतर करने में बहुत मददगार हैं और खुद के साथ हुए ये वाकये बेहद यादगार। 



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