Rashi Saxena

Inspirational

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Rashi Saxena

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बुढ़ापे की लाठी

बुढ़ापे की लाठी

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" बाबा बाबा आज काम पर मत जाओ न मेरे पास सो जाओ मुझे अकेले सोना अच्छा नहीं लगता।”

4 बरस के शोभित ने अपने बाबा से बरबस ही आज रात गुहार लगायी। "बेटा , काम पर नहीं जाऊंगा तो तुम्हे अच्छे बड़े स्कूल में कैसे पढ़ा पाउँगा , तुम्हारे और छोटी के लिए खिलौने कपड़े भी तो लाना होते हैं न बाबा को इसीलिए अभी जाने दो बाबा को आप भी सो जाओ सुबह स्कूल भी तो जाना है न, मेरा राजा बेटा तू तो बहुत समझदार है। " "माँ आज छोटी के साथ साथ मुझे भी लोरी सुना के सुला दो न , मुझे नींद नहीं आ रही। " अब शोभित माँ के पास गया अपनी बात लेकर। "मेरा प्यारा बच्चा , तुझको तो पता है न छोटी अभी सिर्फ ६ महीने की है , रात में दसौँ बार तो उसका जागना रोना होता है नाहक तेरी नींद ख़राब फिर तुझको भी तो सुबह स्कूल जाना होता है न। कुछ परियों की कहानियां राजकुमारों के सपने सोच और सोने की कोशिश कर ,मैं बीच बीच में तेरे पास आती रहूंगी रात में। " 

दो-ढाई कमरे के छोटे से कच्चे पक्के मकान की पीछे के कोठरीनुमा कमरे में शोभित जा के लेट तो गया पर आज उसकी आँखों में नींद ही नहीं थी , दादी आयी थी माँ की जच्चकी के लिए तो रात वो दादी के साथ ही सोता था कभी शेर चीतों की कहानियां कभी गांव की पुरानी बातें कभी बाबा के बचपन के शरारत के किस्से , दोनों हँसते हंसाते संग सो जाते। अभी गांव में काका काकी को भी दादी की ज़रूरत थी सो दादी आज लौट गयीं ,आगे भी खेतों की देखभाल भी है तो अब दादी का आना काफी समय तक मुश्किल था। काफी देर करवटें बदलते शोभित कभी बाबा का रात काम पे जाना कभी माँ की व्यस्तता सब सोचता रहा , आँखें एक टक कभी छत देखतीं कभी झूटमूट की बंद करने की कोशिश करता पर नींद का नाम तक नहीं था। 

रात गहराती जा रही थी आसपास का शोर भी थमने लगा था , और मशीनों गाड़ियों भोपुओं की आवाज़ कम होते होते एक नयी आवाज़ उभरने लगी थी दूर कहीं , "ठक-ठक-ठक" एक सा सुर एक ताल न तेज़ न धीमा। जैसे कोई मँजा कलाकार बराबर अंतराल पर थाप दे रहा हो , या घड़ी की एक धुन में होती टिक-टिक बिना रूकावट। एक नन्हे मासूम बच्चे के लिए मध्य रात्रि ये स्वर मधुर लोरी से कम नहीं था। उसी ठक-ठक पे ध्यान लगते लगते ठक-ठक गिनते सुनते शोभित कब सो गया उसे भी पता नहीं चला। धीरे धीरे ये रोज़ का सहारा हो गया शोभित को ठक-ठक का इंतज़ार करते रहना और सुनते सुनते सो जाना। कभी कभी नींद जल्दी भी लग जाती तो बीच रात जब खुलती तब उस आवाज़ को अपने नज़दीक पा फिर बेफिक्र सो जाता। आदी तो नहीं था वो उस आवाज़ का पर उसे एक उम्मीद रहती के यदि नींद नहीं भी आयी तो ठक-ठक की आवाज़ आते ही नींद भी आ ही जाएगी। छोटा शोभित पढ़ाई आगे रहते हुए हर कक्षा में अव्वल आता था। माता पिता की मेहनत का वो अच्छा परिणाम दे रहा था , और इस बात माता पिता को भी दिल से ख़ुशी थी। बस कहीं दिल के किसी कोने में शोभित को वो बचपन का अकेलापन खलता याद आता , यूँ तो छोटी भी अपने दादा के साथ खेलती पढ़ती शोभित जैसे ही होनहार हो रही थी। पर जब याद रात की आती शोभित को तो उसे सोचने पे मजबूर कर देता के जो साथ उसे माता या पिता का मिलना चाहिए था वो उसे उस "ठक-ठक" से मिला। 

शोभित ने लोक सेवा परीक्षा बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर ली। यह खुशख़बरी लिए वो घर पंहुचा ही था के पता चला पिता बहुत अस्वस्थ हैं , मोहल्ले के डॉक्टर ने जिला अस्पताल ले जाने को कहा है। पांच- सात दिन अस्पताल की भाग दौड़ के चलते शोभित को न ही अपने लोक सेवा चयन की खबर अपने माता पिता बहिन को देने का मौका लगा और थकान ऐसी रही की अभी बिन "ठक-ठक" भी वो कभी अस्पताल की बेंच तो कभी घर के बारमदे में पड़ी चारपाई पर जब लेता नींद लग गयी। 

पिता जी को पेट में अल्सर की समस्या के चलते डॉक्टर ने कुछ दिन काम नहीं करने और रात नहीं जागने की हिदायत के साथ घर भेज दिया। शोभित ने भी सोचा पिता को थोड़ी राहत और छुट्टी मिलेगी , इतने सालों से जी तोड़ मेहनत कर मुझे यहाँ तक लाये हैं। थोड़ा आराम लगते ही मैं एक दो दिन में उनको अपनी खुशख़बरी देता हूँ। 

आराम तो शोभित को भी मिला था पिता के सकुशल घर लौटने से निश्चिंत मन में आज नींद नहीं "ठक-ठक" का इंतज़ार था। पर ये क्या रात भर एक बार भी आवाज़ सुनाई न दी। एक -दो रात और निकली बिन आवाज़ अब शोभित के मन में चिंता हुई आवाज़ क्यों नहीं आ रही ? अगली रात तो सिर्फ इसीलिए आँखों में काटी के आवाज़ आयी क्यों नहीं आखिर थी किस की आवाज़ और किस वजह से अब बंद हो गई ये आवाज़। 

सुबह बेमन यहाँ वहाँ घूमता देख माँ ने पूछ ही लिया , "क्या हुआ बेटा, तू कुछ परेशान है , अस्पताल का बिल या तेरी कोई परीक्षा रिजल्ट है जो तू कुछ गुमसुम सा चुप चुप है ?" शोभित ने बस "नहीं ,कुछ नहीं माँ " कहकर बात ताल दी। शाम ढले पिता ने अपने पास बुलाया, " बेटा , तेरी माँ भी समझ रही और मैं भी ,सच सच बता क्या परेशानी या दुविधा है तेरे मन में जो तू यूँ उदास दिख रहा जैसे जाने कितनी रातों से सोया न हो बेचैन घूम रहा ?" इतना सुनते ही शोभित ने अपने पिता का हाथ थाम अपनी सारी कथा बचपन से अब तक की एक साँस में कह डाली। कैसे नींद न आने पर "ठक-ठक" की आवाज़ का सहारा लिया और अभी क्यों बेचैनी हो रही है वो आवाज़ नहीं सुन पाने से। 

पिता ने भी शोभित के कंधे को सहलाया सर पे हाथ फेरा और बोले जा बेटा थोड़ा बाहर घूम फिर आ शायद आज रात तुझे नींद भी आ जाए। मेरा भी दवा का वक़्त हो रहा अभी अपनी माँ को भेज दे। शोभित अनमना सा फिर उठ के बाहर टहलने चला गया , वापस आके खाना खा के लेटने गया और कुछ ही देर में उसे "ठक-ठक" फिर सुनाई दी। आज वो सोने के बजाय इस आवाज़ का स्त्रोत ढूंढ़ने को उत्सुक था ताकि भविष्य में ये आवाज़ कभी आये न आये तो उसे कारण मालूम होगा। वो झट उठा कपड़े बदले और निकल गया आवाज़ की दिशा में। दो गली पीछे पुरानी बस्ती हुआ करती थी और अभी कुछ साल पहले वहीँ नयी बिल्डिंग बनीं थी उसी की एक गली से आ रही थी ये आवाज़ पास पहुंचते पहुंचते तेज़ सुनाई पड़ने लगी थी। शोभित को भी धैर्य हो रहा था के वो अपनी जिज्ञासा को शांत करने के नज़दीक ही है। 

शोभित ने देखा दो अपार्टमेंट के बीच की सकरी सड़क के बीचों बीच चौकीदार लाठी लिए "ठक-ठक" कर रहा था। शोभित वही रुक गया , " आज पता चला यहाँ से आती है ये आवाज़ , ये आदमी छुट्टी गया होगा तभी नहीं आयी कुछ रात इसकी आवाज़। " और इतने में चौकीदार ने पलट के देखा और शोभित उसको देख ठिठक गया , "बाबा , आप ? आप हर रात यहाँ पहरा देते थे इतने सालों से ?" पिता बोले, " हां बेटा , मेरा और तुम्हारी माँ के जीवन और हमारी सारी मेहनत का एक ही उदेश्य था के तुम्हें और तुम्हारी बहिन को एक उज्जवल भविष्य दे सकें। आज बहुत दुःख हुआ यह सोच के के तुमदोनों के भविष्य निर्माण में तुमलोगों को समय और साथ नहीं दे पायें। जब तुम्हें हमारी ज़रूरत थी मैं रात चौकीदारी और तुम्हारी माँ सिलाई का काम करते थे। ताकि ४ पैसे और कमा के तुम्हारी उच्चय शिक्षा का बंदोबस्त कर पाएं। हो सके तो अपने माता पिता के लिए मन में कोई दुर्भाव न रखते हुए हमें माफ़ कर देना। "

इतना कह पिता जी फफक से रो पड़े और शोभित ने झट उनके पैर छू लिए और उनके सीने से लग गया। "नहीं बाबा , आपने ही तो बचपन से अब तक मेरा साथ दिया है, मेरी रात की नींद सुकून सब आपके आभारी है बाबा। पिता की लोरी न सही पिता के आसपास की होने की आहट ही तो मुझे वो बेफिक्री देती थी जो मैं यहाँ तक पहुंच पाया। घर चलिए बाबा मुझे आपको और माँ को कुछ और भी बताना है। " 

घर आते ही शोभित ने पहले तो "ठक-ठक "वाली पूरी बात अपनी माँ और बहिन को बताई और ये भेद भी जो आज उसने जाना था के ये आवाज़ उसके ही पिता की लाठी की थी। "बाबा, माँ बहुत कर ली मेहनत मजदूरी आप दोनों ने और बहुत अच्छी तालीम भी हो गयी है मेरी और छोटी भी यक़ीनन कुछ अच्छा ही मकाम हासिल करेगी आगे चलकर। मेरा चयन लोक सेवा में हो गया है , कुछ दिन की ट्रेनिंग के बाद मुझे उच्च पद में नियुक्ति मिल जाएगी और और जिस भी जिले में तबादला होगा वहाँ सरकारी बंगला - गाड़ी भी। छोटी की सारी पढ़ाई, घर खर्च ,आप दोनों की सेवा सबकुछ अब मेरी जिम्मेदारी है। " 

"बाबा, इतने साल आपकी लाठी ने ,उसकी "ठक-ठक " ने मुझे बेफिक्री और साहस दिया है। अब मेरी बारी है माँ - बाबा आपके "बुढ़ापे की लाठी" बनने का।



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