जमुना काका
जमुना काका
"जमुना, आज तुमको मेरे ही खून ने नुक्सान पहुंचाया इस दुःख को मैं नहीं सह पा रहा हूँ। मेरे जन्म के दिन ही मेरे दादा जी ने तुमको रोपा था और कहा था मेरे पिता से के आज से तेरे दो बेटे हैं इन दोनों को समान प्रेम और परवरिश देना। याद है जमुना, मेरा और तुम्हारा हर जन्मदिन भी तुम्हारी छाँव तले मनाये जाते थे मौसम भी मई की गर्मी का होता था। तुम अपने जामुन के फलों से लदे होते थे और मेरे सारे दोस्त तुम्हारे ऊपर चढ़ते-उतरते, मस्ताते थे। बड़ा आनंद आता था उनको इतनी हरियाली खेत बाग़ देख के। पूरे शहर में किसी का इतना विशाल-सुन्दर बगीचा नहीं था। और हो भी क्यों नहीं , पहले दादा जी फिर पिता जी ने जो देखभाल संभाल की वो उन दिनों सुविधाओं के अभाव में आसान कहाँ थी। एक और अमरुद का बगीचा तो दूसरी तरफ आम का। एक एक वृक्ष एक एक पौधा परिवार के सदस्य जैसा होता था। और तुम और मैं तो सगे भाइयों से बढ़ कर थे। बड़ी बहनें भी उल्हना दे देती थी कभी कभी के भाई हमारा कम और जमुना के तुम ज़्यादा हो , पर हर रक्षाबंधन पर हमदोनों को साथ राखी बांधती थीं। दादी जी माँ हमेशा कोशिश करते के हर पूजा-कथा-पारिवारिक आयोजन तुम्हारे वृक्ष के नीचे या आस पास ही हो ताकि तुम हमेशा शामिल रहो।
समय गुजरता गया , मैं भी पढ़ने शहर से बाहर चला गया। दादा जी पिता जी के जाने के बाद परिवार दुखी और आर्थिक तौर पर कमजोर हो गया। मैंने कोशिश कर खेतों बागों की देखभाल करते नौकरी भी कर ली। समय कठिन था , तुमसे बहुत सम्बल मिलता था। तुम कह नहीं सकते कुछ पर सब समझते थे, तुम्हारे इशारे मिलते थे मुझे। कभी हवा में लहराती तुम्हारी डालियाँ मुझे गले लगा लेती प्रतीत होती कभी मेरी बात को गंभीर हो सन्न सख्त खड़े रहना सब कुछ साँझा किया है मेरे जमुना भाई ने मुझसे। मेरा विवाह हुआ, परिवार बढ़ा , मेरे बच्चे भी तुमको काका कहते। खूब झूले डालें गए उनके काका की शाखा पर। तुम्हारी गुठलियों ने भी पौधों का रूप लिया और आस पास ही खेत में ४-५ और जामुन के पेड़ हो गए। मुझे मिली परवरिश अनुरूप ही मैंने भी अपने बच्चों को सुसंस्कार और समझ देने की भरपुर कोशिश करी। तुम्हारी नव निर्मित पौध भी तुमसे वानस्पातिक गुण लेती हुई फैलने फूलने लगी। हम दोनों अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त होते गए पर जब मौका मिलता मैं तुमसे मिलता, बैठा बातें करता।
तुम्हारी संतानों ने भी अपने फल छाँव और प्रेम तुम्हारी तरफ ही, मेरे परिवार पर लूटना शुरू कर दिया। पर मेरे बेटे विदेशों से बड़ी बड़ी डिग्री लेकर लौटे और मानवीय मूल्य कुछ कम भी हो गए थे उनके। विकास के नाम का वास्ता देकर कईयों बार उन्होंने मुझसे जिद्द करी के क्यों न जमीनों को बेच दिया जाए और विदेश चला जाए। मेरे नहीं मानने पर उन्होंने भी शहर में ही नौकरी कर कभी कभी को गांव मिलने आना ठीक समझा। पोते ज़रूर जब भी तुमसे तुम्हारे बच्चों से मिलते झूम उठते थे वो भी और तुम सब भी।
जो तुम्हारे पास प्यार संस्कार थे तुम्हारी संतान को मिले और उन्होंने भी आगे दिए, अपने फल छाँव सब लुटाते रहे वो भी मुझपर मेरे परिवार पर। संस्कार तो मैंने भी पूरी कोशिश करी अपने बेटों को दूँ , पता नहीं कहाँ कमी रही जमुना, या मानवीय गुण भारी पड़ गया जोकि मतलबी होता है। जब मतलब निकल जाए तो खुद का पिता-भाई इंसान को बोझ लगता है एक वृक्ष का उपकार वो क्या ही समझेंगे। यही आज मेरे पुत्रों ने सिद्ध कर दिया जो तुम्हारी जड़ में विष घोल दिया , तुम्हारे प्राण हर लेने को। इस खेत पर केमिकल फैक्ट्री का प्रोजेक्ट लगाएंगे और उसके पहले बड़े वृक्षों की जड़ों में डाला गया है केमिकल जो जड़ों को खोकला कर देता है ताकि पेड़ स्वतः गिर जाए। आज उन्हें इन् वृक्षों की ज़रूरत नहीं है, कहते हैं हर फल सब्ज़ी बाजार में मिल जाती है। इतनी मौके की ज़मीन पर फैक्ट्री लगेगी , लाखों कमाएंगे। जो ज़हर हवा में घोलेंगे और सैकड़ों पेड़ों की हत्या का पाप करेंगे मैं तो सोच मात्र से मर रहा हूँ , जमुना। माफ़ कर दो जमुना मेरे पुत्रों का अपराध और अपने भाई को अपनी बची हुई छाँव में सुला लो चिरनिद्रा में , हम साथ ही आये थे साथ ही जग छोड़ेंगे जमुना। "
"पापा जी , पापा जी , अरे बेटा वीर दादा जी कहाँ हैं देखा तुमने उन्हें कहीं ? मैंने बहुत बुरा सपना देखा है के पिता जी दुखी होकर जमुना काका की गोद में ,नहीं नहीं मैं कहना भी नहीं चाहता ऐसा दुःस्वप्न , बता बेटा देखा अपने दादा जी को ?" वीर मुस्कुरा के बोला- " रिलैक्स डैडी , दादा जी खेत पर गए हैं सुबह की सैर और जमुना दादा से कुछ बात करने, आ जाएंगे थोड़ी देर में आप चाय लीजिये। " "बेटा , कल बहुत बड़ी गलती कर दी है मैंने और तेरे चाचा ने, रात हम दोनों आँगन में अपने फैक्ट्री प्रोजेक्ट की बात कर ही रहे थे के तेरे दादा जी वहां आये और साफ़ मन कर दिए के मेरे खेत का एक पेड़ भी अपनी जगह से नहीं हिलेगा , और तैश में मैंने भी कह दिया के एसिड डाल के जड़ें ही सूखा दूंगा आपके एक एक पेड़ की। " वीर - "डैडी ये तो बहुत बुरा बात होगी ये पेड़ नहीं हमारा परिवार हैं यही तो आपने भी बचपन से सीखा और मुझेभी सिखाया है फिर उनकी हत्या हम सोच भी कैसे सकते हैं। " पिता- "हाँ, बेटा माफ़ कर दो मुझे खुद भी शर्म आ रही है अपनी ऐसे दोयम सोच पर। माता-पिता की बच्चों से और बच्चों की माता पिता से नाराज़गी पानी के बुलबुले जैसी होती है। पर माता पिता बच्चों के जीवन के वो दरख़्त हैं जो हर हाल उनपर सुख और आशीर्वाद की छाँव बनाए रखते हैं। उनकी उम्र मुरझाने लगती है और प्रेम बढ़ता जाता है। मेरे लिए पापा जी और जमुना काका वहीँ दरख़्त हैं जिन्हें मैं अपनी भूल में खोकला कर दूंगा , चल जल्दी के इससे पहले पापा जी अपनी पीड़ा में टूट जाएं जो कल रात मैंने उनको दी है। " वीर - "डैडी, चिंता मत कीजिये दादा जी ठीक हैं, और अपनी ख़ुशी जमुना काका से साँझा करने गए हैं। " पिता - "ख़ुशी?? कैसी ख़ुशी? अपनी औलाद का दिया गम बाँट रहे होंगे। " वीर - "नहीं डैडी, जब कल आपकी चाचा और दादा जी की बहस हुई तो मैं छत पर था और आंगन में जो हुआ सब सुना मैंने, आप और चाचा अपने अपने कमरों में चले गए और दादा जी वहीँ उदास हो कर चबूतरे पे बैठ रो दिए। मैं दौड़ के नीचे आया , उनको उनके कमरे में ले जा के बिठाया पानी पिलाया आपके और चाचू की तरफ से माफ़ी मांग के उनको भरोसा दिलाया के जमुना काका और साथ साथ दूसरे भी पेड़ों पर कोई आंच नहीं आने दूंगा। " पिता - " बेटा, जितनी शर्मनाक बात मैंने की तुम ने उतनी ही समझदारी से इस स्थिति को संभाल लिया , तुम पर गर्व है बेटा दिखा दिया तुमने के अपने दादा जी लाडले तो हो ही संस्कार भी उनके ही लिए हैं तुमने। पर ख़ुशी की क्या बात है जो पापा जी जमुना काका से साँझा करने गए हैं ?" वीर - " तो डैडी, जब मैंने मास्टर डिग्री ली ही है इकनोमिक सस्टेनेबिलिटी और एनवायर्नमेंटल मैनेजमेंट में तो क्यों न अपनी शिक्षा का उपयोग अपनी ही ज़मीन अपने ही शहर के विकास में करूँ। ऐसा सोच के मैंने भी दादा जी से अपने विचार व्यक्त किये , जिसमें हम बाग़ में सोलर पैनल लगाएंगे और उन्हें बिछाने के लिए हम खम्बों की जगह अपने ही पेड़ों का उपयोग कर लेंगे। सौर ऊर्जा का उत्सर्जन होगा जो की सिँचाई, पानी, और बिजली के लिए काम आएगी। अमरुद के बगीचे में भी आर्गेनिक तकनीक से कृषि करने पर भी विचार किया जा सकता है, इन सभी प्रोजेक्ट्स में लागत कुछ ज़्यादा नहीं आएगी और सबसे बड़ी बात हम खेत पेड़ों से कोई छेड़छाड़ नहीं करेंगे हमारे बाग़ बगीच सब पहले की तरह बने रहेंगे और हम नई तकनीक का लाभ भी ले सकेंगे , खेतों की उर्वरक क्षमता भी बढ़ जाएगी। " आस पास के लोगों को रोज़गार भी उपलब्ध हो जाएगा। यह विचार दादा जी को तो पसंद आया है बाकि आप-चाचा और बातचीत कर बताइयेगा, मैंने काफी शोध तो पहले ही कर रखा था इस विषय में जोकि मेरा अति विशेषज्ञता हासिल विषय भी रहा है। यदि आप और चाचा को भी उचित लगा तो हम जल्द ही दादा जी के करकमलों से इसकी शुरुआत कर सकते हैं। यहीं खुशखबरी लेकर जमुना काका के पास गए हैं दादा जी। " पिता - "बेटा, आज मुझे यकीन हो गया परिवार में बड़े-बूढों के रहते कितने सुसंस्कार और सुविचार नयी पीड़ी को मिलते हैं , वर्ण आज मैं अपने स्वार्थ के चलते पापा जी और जमुना काका दोनों को जीवन भर के लिए खो देता, धन्यवाद मेरे बेटे मुझे इस आत्मग्लानि से उबारने के लिए। अब हम भी अपने परिवार और इस धरती का जो ऋण हम पर है उसे सतत विकास योजना से साथ चुकाएंगे धरती पर हरियाली एवं परिवार में खुशहाली लाएंगे।
