संवाद
संवाद
तुम्हे यूं अकेले चलते रहने से डर नहीं लगता?
किस बात का डर?
कही रास्तों में खो जाने का?
नहीं, उसमें डर कैसा?
खो जाने में शायद मंजिल मिल जाए?
लेकिन अकेलेपन का क्या?
अकेलेपन में भी तो खुद से मुलाकात होती है..
और अगर मंजिल पर पहुंचते-पहुंचते तुम खुद को ही खो दो तो?
तो शायद वही मेरी असली मंजिल हो?
और अगर मैं तुम्हारे साथ चलूं तो?
अंत तक साथ चल पाओगे ?

