शाम
शाम
अंधेरा कहता है तुम्हारी परछाई बन जाऊं,
हर कदम पर तुम्हारे साथ चलूं, थम जाऊं।
नशा कहता है तुम्हारे लफ़्ज़ों में ठहर जाऊं,
तुम्हारे खामोश लम्हों में अपनी आवाज़ रख जाऊं।
शाम का हर रंग तुम्हारा पता पूछता है,
जैसे तुमसे मिलकर ही उसकी पहचान बनती है।
हवा भी तुम्हारे ग़मज़दा अहसासों की बात करती है,
हर लम्हा बस तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमती है।
मैं सोचती हूं कैसे तुम्हारा नाम बताऊं,
जिसे हर चुप्पी, हर साज़, हर रंग समझ जाए।
तुम्हारे होने की ख़ुशबू से ये जहां बसा दूं,
तुमसे ही कहानी शुरू हो, तुम पर ही ख़त्म हो जाए।
इस अंधेरे में बस तुम और मैं रह जाएं,
दुनिया के सारे फासले यहीं मिट जाएं।
शाम का जादू तुम पर ठहर जाए,
और मेरी धड़कनें तुम्हारे
नाम से सज जाएं।

