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Iaanshika Shimpi

Abstract Fantasy

4.0  

Iaanshika Shimpi

Abstract Fantasy

ज़िंदगी और मैं

ज़िंदगी और मैं

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ज़िंदगी, तुम किसी अधूरी कहानी की तरह हो एक ऐसी कहानी जो अपनी जिद पर अड़ी है—पूरी न होने की जिद..! और मैं? मैं वो नाकाम लेखक हूं

जो हर बार तुम्हारा अंत लिखने की कोशिश में हार जाता है..तुम्हारी हर सुबह एक नई शुरुआत का झूठ रचती है..पर शाम होते-होते,वही पुराने पन्ने मेरे सामने खुल जाते हैं..जिन पर तुमने न जाने कितनी बार ख़ुद को अधूरा छोड़ दिया है..तुम्हारी हर बात में एक ख़ामोशी है,जो मेरे हर सवाल को निगल जाती हैतुम्हारी चुप्पी मेरे शब्दों से बड़ी हो जाती है कभी-कभी लगता है,तुम्हें अधूरा रहने में मज़ा आता है..जैसे किसी अलमारी में रखी किसी प

ुरानी किताब के बुकमार्क, जो उस पन्ने को हमेशा रोक लेते हैं,जहां कहानी अपनी रफ़्तार पकड़ती है..

तुम भी तो यही करती हो न?

हर बार जब मैं तुम्हारे पन्नों को पलटने की कोशिश करता हूं, तुम किसी याद की धूल उड़ाकर

मेरी आंखों में भर देती हो...मैंने तुम्हारे हर अध्याय को जीने की कोशिश की..हर किरदार से दोस्ती की..

पर तुम्हारे अंदर के अंतहीन मोड़, हर बार मुझे भटका देते है..कभी किसी पुरानी गली में, जहां यादें दीवारों पर उग आई हैं..कभी किसी वीरान नदी के किनारे,

जहां सिर्फ़ ख़ामोशी बहती है..पर शायद यही तुम्हारा जादू है..तुम पूरी हो जाओ, तो मेरी कलम से जान चली जाए..!! 


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