कहानियों में बसा एक साल_ A year in stories!
कहानियों में बसा एक साल_ A year in stories!
इस साल के आखरी तीन बचे है और जब पीछे मुड़कर देखती हूं ये साल जैसे एक अधूरी किताब हो.. हर पन्ना खुद में एक कहानी लिए हुए..इस साल में हमने कई बार जिल्लत की स्याही में डूबे पन्ने पढ़े..! कभी वक़्त ने ऐसा रुख़ दिखाया कि लगा, ये कहानी यहीं खत्म हो जाएगी..लेकिन नहीं, ये साल उतना ही ज़िद्दी निकला जितना हम..हम हर बार टूटे, और हर बार खुद को टुकड़ों में समेट कर खड़े हो गए..
कुछ अपने छूट गए, जैसे कोई पुरानी किताब, जो अलमारी के कोने में रखी रह जाती है...और कुछ पल ऐसे भी आए, जब हमने खुद को खो दिया...जैसे कोई किरदार, जिसे लेखक भी कहानी में ढूंढते-ढूंढते थक जाए..पर शायद यही जीवन है..हर अधूरी कहानी में कुछ न कुछ बचा रह जाता है..कहते हैं, हर रात के बाद सवेरा होता है...हम भी उसी सवेरे का इंतज़ार कर रहे हैं..पलकों पर उम्मीद का आसमान लिए, एक ऐसी सुबह जो हमारी अधूरी कहानियों को पूरा कर दे..पर एक डर है—अगर आंख मूंदकर सो गए, और सवेरा हमारी नज़रों से चूक गया तो?क्या होगा अगर वो पहली रोशनी हमारी बंद पलकों से होकर निकल जाए? शायद इसलिए हम जागते रहते हैं..उस उजाले की पहली किरण को देखने की चाह में..सोचते हैं, क्या ये सवेरा सिर्फ एक पल भर का है, या हमारे भीतर छिपा हुआ वो उजाला, जो खुद से भी डरता है बाहर निकलने के लिए? इस साल ने हमें इतना कुछ दिया, जिसे समझने के लिए शायद एक उम्र भी कम पड़ेगी..हर गिरावट के साथ उठने की ताकत दी..हर दर्द के साथ थोड़ी और गहराई दी..और हर खुशी के साथ एक सवाल छोड़ दिया—क्या ये खुशी भी अधूरी है? साल खत्म हो रहा है, पर ये कहानियां हमेशा साथ रहेंगी..कुछ अधूरी, कुछ मुकम्मल..!
मैं सोचती हूं, क्या अगले साल ये कहानियां मुकम्मल होंगी?या फिर, ये भी एक नई शुरुआत होगी? जो भी हो, मैं तैयार हूं इस बार सिर्फ सवेरा देखने के लिए नहीं, बल्कि उसे महसूस करने के लिए..उस रोशनी के साथ चलने के लिए, जो मेरे भीतर है, और हमेशा थी..!नए साल में, मैं अपने अधूरे सपनों को पूरा करूंगी.!अपने छूटे हुए हिस्सों को फिर से जोड़ूंगी..और सबसे बड़ी बात—मैं खुद को एक बार फिर से खोजने की कोशिश करूंगी..ये साल, जो जितना दर्द भरा था, उतना ही खूबसूरत भी..और अगला साल?
शायद एक नई कहानी, एक नई कविता, जो मेरी रूह के सबसे गहरे कोनों से निकलेगी..!!
