संस्कार या बंदिश
संस्कार या बंदिश
"बेटा! हमारा वक्त और था! मां,पिताजी की बात को पत्थर की लकीर मानकर उसपर चल दिए! बाद में जब मां पिता जी ही कहते थे की हमसे गलती हो गई! तुम्हें किसलिए पढ़ाया था, तुम तो हमें समझा सकती थी!! तब ऐसा लगता है की अब जब कुएं में गिर चुके तो कह रहे हो देख ही लेती गिरना है की नहीं!!" - शालिनी जी ने अपनी बेटी राशि से कहा।
राशि अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे शहर जाना चाहती थी, पर राशि के पिता सुरेश जी चाहते थे कि बाकी की पढ़ाई अब शादी के बाद ही करे।
अच्छे रिश्ते रोज रोज नहीं आते!
राशि की माता, शालिनी जी चाहती थी जो उनके साथ हुआ वो बेटी के साथ नहीं होना चाहिए!
उनकी शादी भी ये कहकर कर दी गई की आगे की पढ़ाई ससुराल जाकर करना!
ससुराल आकर 2 साल तो इस बात में निकल गए की नई बहू कुछ दिन तो घर रहे, यूं कॉलेज जाएगी तो लोग क्या कहेंगे!!
फिर राशि हो गई, तो आगे का सारा वक्त बच्ची की देखभाल और रसोई में निकल गया!!
पर शालिनी जी प्रण कर चुकी थी अपनी बेटी के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी!!
शालिनी जी की सासू मां ने उन्हे बहुत ताने दिए दूसरा बच्चा पैदा ना करने की वजह से!!
पर शालिनी जी इस बात पर अडिग रही!!
राशि इस असमंजस में थी की मां की बात सुने या पिता जी की बात मान ले!!
अंत में राशि ने पिता की बात मानकर शादी के लिए हां कर ही दी!!
शालिनी जी के पास अब क्या चारा था!!
बेटी को समझाने लगी -" बेटा!! अपनी पढ़ाई जारी रखना । जब बचपन से पढ़ाई में इतनी मेहनत की है तो रोजगार के लिए भी जरूर कोशिश करना!
ये दुनिया उसी की है, जो इसको कुछ फायदा पहुंचाता हो!!
नही तो कैसे भी रिश्ते हों एक दिन आपको एहसास करवा ही देते है की वो आप पर कोई एहसान कर रहे है!"
बाकी तुम्हारी मर्जी!! तुम्हारे पिताजी ने सगाई की तारीख तय कर दी है!! सोच लेना !!
कुछ दिन बाद सगाई के लिए लड़के के माता पिता, बुआ, चाचा, और लड़का; राहुल, राशि के घर पहुंचे!!
राहुल बैंक में मैनेजर था, अपने लिए उसे हाउस वाइफ ही चाहिए थी!!
राहुल की माता, सुषमा जी का आदेश था की घर तो आदमी की कमाई से ही चलता है तो औरत घर का काम भी करे और ऑफिस भी जाए; ये दुगुना बोझ क्यों डालना!!
सगाई की तैयारियां हो रही थी। सुषमा जी बहू के कमरे में उसे देखने पहुंची।
सुषमा जी ने बहु को आशीर्वाद देते हुए कहा -" ऐसी ही संस्कारी लड़की चाहिए थी मुझे तो!! वर्ना आजकल की लड़कियों को देखो, पढ़ाई में गोल्ड मेडल क्या मिल जाए । अपने पैरों पर खड़े होने की ज़िद्द लगाकर बैठ जाती है!"
शालिनी जी को ये बात बहुत चुभी!! उन्होंने पहले राशि को देखा फिर सुरेश जी को!! पर मेहमानो के सामने बोली कुछ नहीं!!
इतने में सुषमा जी ही बोल पड़ी -" शालिनी जी बड़े ही अच्छे संस्कार दिए हैं आपने बेटी को!! एक गृहस्थन मां ही अपनी बेटी को ये संस्कार दे सकती है वरना कामकाज करने वाली मां को इतनी फुरसत कहां!!"
शालिनी जी पूछ ही बैठी -" बहन जी!! ये कौनसे संस्कार होते है जो कामकाजी मां नही सिखाती!!"
सुषमा जी ने कहा -" अरे!! यही बेटियों को किसी के सामने कैसे बैठना है, कैसे रहना है, घर को कैसे संभालना है!!
शालिनी जी -" जी ये सब बातें तो पढ़े लिखे बच्चे खुद ही समझ जाते है!"
सुषमा जी -" अरे! आपको नही पता। आजकल की लड़कियों का आते ही पति को बस में कर लेती है। फिर थोड़ी सी बात पर सामने से जुबान लड़ाती हैं और घर जाकर बैठ जाती हैं!!
आप खुद ही देख लो हम लोगों ने कितना कुछ सहकर भी बच्चों को पाला और अपना घर बसाए रखा । आजतक सास और पति के सामने जुबान नहीं खोली।
यही तो होते हैं संस्कार! संस्कारी घर की बेटी की पहचान!
शालिनी जी ने राशि को देखा और
फिर सुषमा जी से कहा -" जी सही कहा आपने!! पर बहन जी ये तो बताएं क्या संस्कारी लड़कियां थप्पड़ खाकर भी चुप ही रहती है क्या!!"
सुषमा जी ने हंसते हुए कहा -" अरे कैसी बातें कर रहे हो आप!! एक आध थप्पड़ से क्या रिश्ते खत्म होते है!! वैसे भी संस्कारी लड़कियों के सामने थप्पड़ खाने की नौबत नहीं आती।
ये तो उनके सामने आती है जो पति के सामने जुबान खोलती हैं!!"
शालिनी जी -"बहन जी!! मेरी बेटी तो भाषण प्रतियोगिता में हमेशा अव्वल आती रही है। मैने इसको चुप रहना नहीं सिखाया! इसकी पढ़ाई भी अभी खत्म नहीं हुई थी तो घर बसाने की बातें भी नही सीखा पाई।
और मैं तो चाहती हूं की शादी के बाद भी मेरी बेटी अगर पढ़ना चाहे तो उसकी पढ़ाई जारी रहे, नौकरी करना चाहे तो नौकरी करे!!"
सुषमा जी ने एक बार शालिनी जी देखा, एक बार राशि को।
फिर खड़ी होकर बेटे के पास चली गई ।
सुषमा जी -" बेटा लड़की तो नौकरी करना चाहती है!!"
राहुल -" मां ये बातें आपको सगाई से पहले पूछनी चाहिए थी!! अब इतने लोगों में मेरा तमाशा मत बनवाना!!"
सुषमा जी को कुछ समझ नहीं आया, उन्होंने सुरेश जी को बुलाया और कहा -" देखो जी!! मैं अपनी बहु को नौकरी नहीं करवाऊंगी! आपको रिश्ता तोड़ना हो तो तोड़ दो! अभी तो बेटी बाप के ही घर है!"
सुरेश जी ने शालिनी की तरफ गुस्से से घूरते हुए सुषमा जी के सामने हाथ जोड़कर कहा -" बहन जी!! बच्ची है अभी ! घर की जिम्मेदारी पड़ेगी तो भूल जायेगी ये जिद्द!!"
शालिनी जी ने अपने लिए आज तक कुछ नहीं कहा था, आज बात बेटी के जीवन की थी तो वो चुप नही रहीं!!
वो सुरेश जी के पास गई और बोली -" ये कोई जिद्द नही है बहन जी!!
हक है मेरी बेटी का!!
बचपन से दिन रात मेहनत करके इसलिए थोड़ी डिग्रियां ली है की आपका घर संभाले बस!!
उसकी अपनी भी कोई पहचान होनी चाहिए!!"
सुरेश जी ने शालिनी को चुप रहने का इशारा किया !!
इतने में राशि ही बोल पड़ी -" पापा आप तो कह रहे थे शादी के बाद भी पढ़ाई हो सकती है !! " ये कहते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गए!!
बीच में सुषमा जी बोल पड़ी -" लड़की!! अपने पिता की इज्जत के बारे में सोचो! बंद करो रोना ! कुछ संस्कार दिए हैं या नहीं मां बाप ने!
माफ कीजिएगा भाई साहब! मेरी भी कोई इज्जत है मेरे रिश्तेदारों के बीच!"
शालिनी जी ने बेटी के आंसू पोंछे और कहा -" बहन जी!! संस्कार दिए है तब ही कह रही हूं!!
मेरी बेटी अपनी पहचान बनाएगी!!
और आप कौनसे संस्कारों की बात कर रही हो जो औरत को थप्पड़ खाकर भी चुप रहने को कहते है!!
संस्कार वही अच्छे है जो बच्चों के जीवन को नई दिशा दें।
जो उनपर बोझ बन जाए वो संस्कार नहीं, बंदिश होती है!
मुझे ये बातें समझने में 25 साल लग गए!!
अपनी बेटी को ये संस्कारों के रूप में बंदिश तोहफे में नही दूंगी मैं!!
मेरी बेटी की जिंदगी से ज्यादा जरूरी आपके संस्कारों का पाठ नहीं है!!"
सुरेश जी अपना सिर पकड़कर कुर्सी पर बैठ गए!!
सुषमा जी ने कहा -"हमें नहीं करना रिश्ता!! देखती हूं अब सगाई टूटी हुई लड़की को कौन ब्याहेगा!! चलो बेटा!! अपने बेटे को लेकर जाने लगी!!"
शालिनी जी ने कहा -" रुकिए!! आप किसी गलतफहमी में हो शायद!!
सिर्फ शादी करना ही किसी लड़की की जिंदगी का मकसद नहीं होता!!
रही बात सगाई टूटने की तो सगाई तो हुई नही थी अभी!!
और आप इसे ही सगाई टूटना मानती हो तो आपके बेटे की भी सगाई टूटी है ये ना भूलिए।
अगर मुश्किल मेरी बेटी को आयेगी तो रास्ता आसान आपके बेटे का भी नही!!
मुझे खुशी है की आपकी सोच पहले ही पता चल गई वरना मैं बेटी की जिंदगी बचाने के सिर्फ सगाई क्या, शादी भी तोड़ देती!! "
सुषमा जी अपने रिश्तेदारों के साथ चली गई।
घर में चुप्पी का सन्नाटा पसर गया!! पर शालिनी को खुशी थी की उसकी बेटी को उसने दूसरी शालिनी बनने से बचा लिया।
सुरेश जी बोले कुछ नहीं, बस बेटी के सिर पर हाथ रखकर अपने कमरे में चले गए,!!
दोस्तों !संस्कार वही अच्छे है, जो बच्चों को तरक्की की ओर ले जाएं। जहां संस्कारों की कीमत बच्चों को अपनी जान देकर चुकानी पड़े उन संस्कारों का कोई फायदा नही।
