Anita Bhardwaj

Tragedy Inspirational

4.7  

Anita Bhardwaj

Tragedy Inspirational

घुटन

घुटन

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"सबको अपने हिस्से के दुख झेलने पड़ते हैं पर कुछ दुख हमारी नियति के दिए नहीं होते; हमारे माता पिता के किए कर्म भी होते हैं। हमारा कुछ अच्छा होता है तो हम यही मानते हैं की माता पिता के किए अच्छे कर्म आगे आए हैं। कई बार उनके किसी बुरे कर्म की सजा भी औलाद को भुगतनी पड़ जाती है!" मेघा अपने मन ही मन खुद से बातें कर रही थी।


एक दम से झटका लगा और मेघा अपने विचारों से बाहर आई।


"ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी! स्टेशन पर रुकते ही यात्रियों का आवागमन शुरू हो गया। कुली समान उठाने के लिए आवाज़ लगाने लगे।"मेघा सोच रही थी कि काश ज़िंदगी के गमों को उठाने के लिए भी कोई कुली हो।बुरे कर्मों की सजा उठाने में तो कुली की भूमिका निभानी ही पड़ती है, कभी मां बाप बनकर तो कभी औलाद बनकर।ट्रेन फिर से चल पड़ी। इस स्टेशन पर मेघा की सामने वाली सीट पर कोई आ गया था।


मेघा ने उसको नज़रें उठाकर नहीं देखा। मेघा की नजरें उसके जूतों और सामान के बैग पर रखी डायरी पर ही रुक गई।डायरी और जूतों को देखकर उसने अंदाज़ा लगा लिया की सामने की सीट वाला यात्री दिल्ली पुलिस से है।ये जूते और डायरी उसे ले गए अतीत के गलियारे में।सुबोध ने मेघा को दिल्ली पुलिस के कवर वाली डायरी दी थी।वो चाहता था की मेघा अपनी रोज की डायरी लिखने की आदत को अब इस डायरी में बरक़रार रखे।मेघा जो बचपन से पिता का प्यार ढूंढती रही, वो सुबोध की बातों पर यकीन करके न सिर्फ़ उससे प्रेम करने लगी थी बल्कि एक पिता की छांव भी उसमें महसूस करने लगी थी।उसे लगता था ज़िंदगी की हर धूप छांव में सुबोध उसके सामने ढाल बनकर खड़ा हो जायेगा।मेघा ने मन ही मन अपने आपको;सुबोध को यूं सुपुर्द कर दिया था कि अब उसे अपने पिता से भी कोई शिकायत नहीं रही थी कि उन्होंने कभी अपने परिवार को वक्त नहीं दिया।


एक दिन मेघा ने अपने पिता को सुबोध के बारे में बता ही दिया।पिता बेटी की बात सुनकर गुस्से का घूंट पीकर रह गए; बस इतना कहा-" वैसे तो ये हक़ माता पिता का है कि संतान के लिए जीवनसाथी चुने, पर तुमने अब किसी को पसंद कर ही लिया तो मुझे पहले तसल्ली करनी पड़ेगी की वो तुम्हारे लायक है भी की नहीं।मैं उनके घर जाऊंगा; तुम उसे बताना मत। मैं उनके घर के असल हालात देखना चाहता हूं।"


मेघा को लगा की सुबोध बहुत खुश हो जायेगा यूं मेघा के पिताजी को शादी की बात करते देखकर; इसलिए उसने सुबोध को कुछ बताया ही नहीं।मेघा के पिता जी सुबोध के घर पहुंचे।सुबोध एक संयुक्त परिवार में रहता था जहां उसके 2 ताऊ जी, एक चाचा जी, दादी दादाजी और सुबोध के माता पिता और 5 भाई बहन।सुबोध का घर भी जर्जर हालत में था। मेघा के पिता जी को सुबोध के दादा जी ने बताया कि लड़के की नौकरी नहीं लग पा रही थी तो उम्र कम करके एक कागज़ बनवाया तब जाकर वो दिल्ली पुलिस में भर्ती हुआ है।सुबोध जब घर पहुंचा तो उसे पता चला दादा जी ने बात बातों में उसका सारा राज खोल दिया है।सुबोध ने मेघा को फोन किया।


मेघा आज सातवें आसमान पर थी कि अब शादी फिक्स हो जायेगी और सुबोध और वो हमेशा के लिए साथ होंगे।फोन की घंटी बजते ही वी और भी खुश हो गयी और शर्माते हुए फ़ोन उठाया। वो कुछ बोलती उससे पहले ही सुबोध ने फोन उठाते ही उसे गालियां देना शुरू कर दिया ।मेघा ने उसकी शक करने की आदत तो आजतक नज़रअंदाज़ की थी पर गालियां सुनकर उसके हाथ से फ़ोन छूट गया और वो रोने लग गयी।मेघा के पिताजी , सुबोध से कोई सवाल किए बिना ही घर आ गए।घर आकर देखा तो मेघा ने रो रोकर अपना हाल बेहाल किया हुआ था।


मेघा के पिताजी ने बताया कि उस लड़के की सारी डिग्री नकली हैं। कभी भी किसी को भनक लगी तो एक शिकायत पर नौकरी भी जाएगी और जेल भी होगी। जिस लड़के का भविष्य सुरक्षित न हो मैं ऐसे लड़के से अपनी लड़की का रिश्ता नहीं करूंगा।मेघा तो खुद ही टूट चुकी थी, अब रिश्ता खत्म करने की बात सुनकर तो पत्थर सी हो गयी।कुछ महीनों बाद मेघा के पिता जी ने सोचा कि बेटी यूँही सदमे में अपनी ज़िन्दगी न निकाल दे,उन्होंने मेघा की शादी अपने दोस्त के बेटे से करवा दी।


मेघा जो पहले तो अपने प्यार के शक करने की आदत में घुटती रही ।फिर पिताजी के ताने उसका दम घोटने लगे।अब शादी करके हर पल वो घुटन में कैद हो गई।शादी के कुछ दिन बाद उसे पता चला उसके पति पीयूष का किसी से अफेयर है।इस बात को सुनकर वो रोई नहीं। सामान पैक किया और घर आ गयी।पिताजी ने बेटी से पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया।पिता जी ने मेघा की माता जी सुधा को बोला , बेटी से पूछो क्या बात है। मैं भी समधी जी को फ़ोन करता हूँ।


मेघा मां से लिपटकर रोने लगी -" मां तुम्हारी बेटी की ज़िन्दगी में किसी का साथ लिखा ही नहीं है। मैंने पता नहीं कौनसे बुरे कर्म किये थे जो सब धोखेबाज़ मेरी ही ज़िन्दगी में आने लिखे थे।उसका किसी और लड़की से चक्कर है मां! मुझे बोल रहा है तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहने दूंगा।"सुधा जी के संतोष का बांध आज टूट गया, उन्हें लगा कि दूसरी सुधा रो रही है।


उन्होंने फैसला कर लिया कि ये सुधा अकेली नहीं है।सुधा जी ने मेघा के पिता रौशन जी को बोला -"पता चल ही गया होगा आपको तो!! क्या हुआ है बेटी के साथ!"


रौशन जी हैरान थे शादी के 29 साल में आजतक सुधा जी ने आँखों में आंखें डालकर बात नहीं की;आज कैसे??रौशन जी ने अपने पुरुष दम्भ को बरक़रार रखते हुए कहा, क्या मतलब है तुम्हारा?मैंने तो अच्छा घर देखकर ही रिश्ता किया था,अब इसके कर्म ही ऐसे हैं तो क्या करूँ?


सुधा जी ने कहा-"इसके कर्म नहीं, इसके बाप के किये कर्म इसके सामने आ रहे हैं। तुमने भी तो..."


रौशन जी ने बीच में बात काटते हुए बोला, चुप रहो मेघा सुन लेगी!!


इतने में मेघा आ गई, क्या सुन लेगी पापा?


मैं बच्ची नहीं हूं, आजतक मैंने अपने पिता को स्कूल से लेकर कॉलेज तक कभी अपनी पेरेंट्स मीटिंग में नहीं देखा।पैसे जरूर दिए आपने पर पिता का फ़र्ज़ कभी नहीं निभाया।जब सब औरतें तीज त्योहार पर सजती थी, मैंने अपनी माँ के सूने हाथ देखें हैं।


रौशन जी को गुस्सा आया, उन्होंने कहा -"चुप करवाओ इसे!"


सुधा जी ने कहा , आज हम चुप नहीं रहेंगे। बहुत जी लिया घुटकर अब नहीं।मेरी बेटी अब उस घर में नहीं जाएगी।सुधा जी और मेघा का ये रूप देखकर रौशन जी ने चुप रहने में अपनी बेहतरी समझी।मेघा और सुधा जी दोनों शहर के बाहर वाले घर में शिफ्ट हो गयी, रौशन जी अकेले दिल्ली में रहते हैं।


मेघा को तलाक़ के केस की तारीख़ के लिए दिल्ली आना पड़ता है। आज भी मेघा कोर्ट की तारीख़ के लिए ही दिल्ली आ रही थी।ट्रैन दिल्ली के सराय रोहिल्ला स्टेशन पर रुकी और मेघा भी अतीत के गलियारे से बाहर आई।ज़िन्दगी में अब वो अकेली बेशक़ थी, पर अब घुटन से बाहर आ गयी थी और अपने जैसी और लड़कियों को भी जीने के गुर सिखाने लगी ।




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