Anita Bhardwaj

Inspirational

3.9  

Anita Bhardwaj

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काग़ज़ के टुकड़े

काग़ज़ के टुकड़े

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" मेरी गलती थी पैसे को सिर्फ़ कागज़ का टुकड़ा समझा और रिश्तों को ऊपर रखा। जब हर रिश्ता सिर्फ़ एक मर्द बनकर रह जाए तो औरत का सहारा ये काग़ज़ के टुकड़े ही बनते हैं!" - रागिनी ने सौम्या से कहा।


रागिनी एक लघु उद्योग की मालकिन है, इस बार के महिला दिवस पर उन्हें नारी सशक्तिकरण का अवार्ड मिला है,इसलिए सौम्या अपने चैनल के लिए रागिनी का इंटरव्यू लेने आई है!रागिनी यूं तो बस अपने काम पर ध्यान देना ही ,अपनी असल पहचान मानती है इसलिए कभी किसी टॉक शो या टी वी चैनल पर कोई प्रोग्राम का हिस्सा नहीं बनती।सौम्या ने बहुत ज़िद्द की, कि लोगों को यकीन नहीं है कोई अकेली मां रोड़ से उठकर एक लघु उद्योग की मालकिन कैसे बन सकती है!आप अपनी कहानी बताएंगी तो और औरतें भी सीख पाएंगी!!रागिनी इसलिए तैयार हो गई इंटरव्यू के लिए और सौम्या ने अपना पहला सवाल किया!


आप अकेली मां हैं, आपकी शादी के बारें में कुछ बताएं !


रागिनी-" अकेली मां होना कोई गुनाह तो नहीं!! अपने साथ हो रहे गुनाह को ख़त्म करने के बाद ही कोई औरत अकेली मां बनती है। वरना वो भी गुनाहों को सहती रहे तो दुनिया की नज़र में एक किस्मतवाली लड़की का उदाहरण बन जाती है!"


सौम्या-" क्या तलाक़ के बाद आपके पिता या भाई ने आपका साथ नहीं दिया!"


रागिनी-" एक पिता बेटी को ये सीख देकर घर से विदा करता है की डोली यहां से और अर्थी ससुराल से जानी चाहिए बेटा! तभी तो लोग मुझे कहेंगे की तुमने लड़की की परवरिश अच्छी की है।इसमें भी अगर लड़की अपनी ही मर्ज़ी से किसी से शादी करले तो और भी मुसीबत। फिर तो उसे छोड़ दिया जाता है किस्मत,वक्त के हाथों। कोई उसका साथ देने आगे नहीं आता!"


सौम्या-"आपने खुद को, और अपने बच्चे को कैसे संभाला!!"


रागिनी-" मैं शादी से पहले भी जॉब करती थी, वो पैसा मैंने अपने बच्चे की जरूरतों पर खर्च किया । जब पति को जरूरत होती थी उसे भी दिया। पर आखिर में जब बच्चे को वक्त देने के लिए जॉब छोड़ दी तो किस्मत ने भी रुख बदल लिया।

पति को भी बोझ लगने लग गई।चंद कागज़ के टुकड़े एक 6 साल के रिश्ते पर भारी पड़ गए।इसलिए उन कागज़ के टुकड़ों का सहारा लेकर ही खुद को और अपने बच्चे को संभाला।"


सौम्या-" आपके पास तो कोई रहने की जगह भी नहीं थी ,फिर कैसे सब संभाला और यहां तक पहुंची!!"


रागिनी-" सच कहूं तो पहले किराए की छत का सहारा लिया जो भी पैसे बचाए थे उनसे; घर पर ही छोटा सा काम शुरू किया। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया।

फिर सरकार की योजना से लोन लेकर अपने काम को थोड़ा और बढ़ाया।अगर मैं कहूं मेरा सफ़र आसान रहा तो ये एक झूठ होगा।ऐसा भी वक्त आया की मैं बीमार हूं और कोई पानी देने वाला भी पास नहीं था!!अपना काम भीं करना था, बच्चे की पढ़ाई भी और कोर्ट कचहरी के चक्कर भी!धीरे धीरे जब पैसा आना शुरू हुआ तो लोग रिश्ते बनाने भी बहुत आए।साथ निभाने वाले भी आए और फायदा उठाने वाले भी आए।आज आप देख रही है की जिसकी मांगने पर भी कोई मदद नहीं करता था। आज उसका इंटरव्यू लेने के लिए आपको आना पड़ा।"


सौम्या-" आप बाकी औरतों को क्या सलाह देना चाहेंगी!"


रागिनी-" मैं तो अपनी ज़िंदगी के अनुभव से ये जान पाई की एक औरत को जब सब रिश्ते अपना असली रूप दिखा देते हैं तो उसके पास सिवाय खुद की कमाई, आत्मनिर्भरता के अलावा कोई उसका सच्चा साथी नही होता।आपके पिता के पास पैसा है, पति अमीर है ये सोचकर खुद को लाचार बनाकर जीना आपको पसंद आ गया है तो बात अलग है।लेकिन एक स्वाभिमानी, आत्म सम्मान से भरी औरत यूं दूसरों के भरोसे नहीं जी सकती।

उसको जरूरत है खुद के पैरों पर खड़ी होने की, पैसे की।पैसा जिसको हम औरतें अक्सर रिश्तों के सामने छोटा समझती है। आखिर में जब रिश्ते हमें छोटा समझते हैं, तब ये पैसा ही हमारा साथी होता है।

मैंने गलती की थी पैसे का महत्व नहीं समझा और उसे यूंही बिना सोचे सबमें बांट दिया, खर्च दिया।सिर्फ़ कागज़ के टुकड़े जिनको समझा उन्होंने अच्छे अच्छे रिश्तों की हक़ीक़त सामने रखी तो वो टुकड़े आदमी से भी बढ़कर साथी बने!इसलिए मैं तो सबको यही कहूंगी की अपनी जिंदगी में खुद की पहचान और खुद की कमाई जरूर रखें।वक्त,किस्मत, रिश्ते सब कब बदल जाएं कोई भरोसा नहीं!!


सौम्या-" बहुत बहुत शुक्रिया आपका। मुझे उम्मीद है हम औरतें ये जान पाएंगी कि हम जो पति, बच्चे को अपनी दुनिया समझकर जिंदगी गुजार देती हैं, उन्हें अगर जिंदगी को जीना है तो खुद के पैरों पर खड़ा होना ही पड़ेगा!"


ये कहकर सौम्या ने रागिनी से विदा ली।


दोस्तों! रिश्ते जरूरी हैं पर जब रिश्ते भी साथ छोड़ दें तो खुद को खड़ा रखने के लिए अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरूरी है ;इसलिए खुद को हमेशा याद रखें!!!



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