पगड़ी रस्म
पगड़ी रस्म
"तुम कफ़न के लिए भी पीहर वालों का इंतजार कर रहे हो। जिसने पूरी जिंदगी तुम्हें बाप बनकर पाला; उम्र के इस पड़ाव में भी जो तुम्हे कमाकर खिला रही थी उसके लिए सिर्फ कफन क्या उसकी तो पगड़ी रस्म भी होनी चाहिए।" -तुलसी जी ने सुधीर को कहा।
सुधीर की मां गीता जी का आज स्वर्गवास हो गया।
गीता जी की शादी के कुछ साल बाद ही उनके पति की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी। तबसे गीता जी ने ही 3 बच्चों को उनकी मां और पिता दोनो का प्यार दिया।
दोनो की जिम्मेदारी अकेले निभाई।
अभी भी वो सब्जी मंडी में दुकान चलाती थी।
सुबह 3 बजे उठकर बड़े शहर की मंडी जाती, सब्जियां लाती।
छोटा बेटा सुधीर मां के काम में हाथ बंटाता था।
गीता जी के बड़ी बेटे सोहन ने कर्जे के चलते आत्महत्या कर ली थी।
बड़े बेटे के बच्चे और छोटे बेटे के बच्चों की जिम्मेदारी भी गीता जी पर ही थी।
छोटा बेटा प्राइवेट नौकरी करता था,पर इस लॉकडाउन में उसकी नौकरी भी छूट गई।
उसने शराब पीना भी शुरू कर दिया था।
गीता जी ने जिंदगी में कभी सुख के दिन रात एक साथ नहींं देखे थे।
कभी दिन में निश्चिंत होती तो रात को कोई ना कोई परेशानी घर के दरवाजे बैठी मिलती।
फिर भी उन्होंने कभी जिंदगी से मुंह नहींं मोड़ा।
बड़े बेटे की नौकरी लगी तो उसने कहा भी था की मां अब तुम ये सब्जी की दुकान बंद करके आराम करो अब तुम्हारे बेटे कमाएंगे।
गीता जी को तो जैसी पहले ही आभास था की उनकी जिंदगी में सुख लिखना तो ईश्वर भूल ही गया ; उन्होंने बेटे को कहा -" नहीं बेटा। जिसकी बदौलत आज तुम्हे इतना बड़ा किया उस काम को तब तक करूंगी जब तक मेरे हाथ पैर सलामत है।"
फिर अचानक बेटे ने जल्दी जल्दी में सभी सुख सुविधा जुटाने के चक्कर में खूब लोन लिया और सुविधाएं जुटानी शुरू की।
उसका काम ऐसा ठप्प हुआ की रोज कर्जे वाले घर तक आने लगे। तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली।
जो मां के दुख दूर करने की बात करता था अब वो मां के भरोसे अपनी पत्नी और 2 बेटियों को छोड़ गया।
छोटा बेटा तो बचपन से गलत संगत में बैठता था भाई की मौत के बाद उसे थोड़ी जिम्मेदारी का एहसास हुआ था।
तो पिछले 4 साल से प्राइवेट नौकरी कर रहा था ।
नौकरी जाने के बाद वो भी यूंही हताश रहने लगा।
गीता जी को लगा कहीं ये भी अपने भाई की तरह कोई कायरता पूर्ण कदम न उठा ले इसलिए उसे अपने साथ सब्जी मंडी की दुकान पर ले जाने लगी।
वक्त यूंही बीत ही रहा था की एक दिन अचानक गीता जो को पेरालाइसिस का अटैक पड़ा।
सुधीर तो मां को देखकर खुद भी बेहोश हो गया, आसपास के दुकानदार गीता जी को हॉस्पिटल ले गए।
ईश्वर भी शायद मजबूत इंसान की ही परीक्षा लेता है।
गीता जी का एक हाथ उठना बंद हो गया था।
फिर भी मां के पास वो ताकत होती की मृत्यु शैय्या पर भी हो तो; अपने बच्चों को भूखा न सोने दे।
थोड़े दिन बाद दुकान जाना शुरू कर दिया।
उन्हे मालूम था अब इन हड्डियों में जान नहींं बची।
बड़ी बहू को आंगनवाड़ी में काम पर लगवाने के लिए विधायक के खूब हाथ पैर जोड़े। तब जाकर उसे वहां नौकरी मिली।
छोटे बेटे को दुकान का सारा हिसाब किताब समझाया।
फिर एक दिन हालातों से लड़ते लड़ते जिंदगी से जंग हार गईं।
पूरा परिवार बस यूं हिल गया जैसे, मकान की नीव हिलने पर पूरा मकान ही जर्जर हो जाता है।
गीता जी की मौत की खबर सुनकर जैसे पूरे गांव, रिश्तेदारों का हुजूम सा इकठ्ठा हो गया।
किसी को यकीन ही नहींं था जो औरत ईश्वर से लड़ती रही अपने हालात ठीक करने के लिए ;वो शुगर की बीमारी से यूं एक दम हार जाएगी।
अब बात आई अंतिम क्रिया की।
लोगों ने कहा जल्दी करो गर्मी का मौसम है।
सुधीर ने कहा अभी मां के पीहर से कफन नहींं आया। अभी मां को अंतिम क्रिया के लिए नहींं ले जा सकते।
तुलसी जी मोहल्ले की सबसे बुजुर्ग महिला थी, वो तो गीता जी की मौत के सदमे से इतनी दुखी थी की अगर यमराज भी सामने आते तो उनसे भी जरूर लड़ती।
तुलसी जी को सुधीर की बात सुनकर गुस्सा आया और उठकर बोल पड़ी -"तुम्हारी मां की जगह , तुम्हारा पिता होता तब भी कफ़न का इंतजार करते क्या।
उसे मां तो भगवान ने बनाया था पर हालात ने उसे तुम्हारा पिता भी बना दिया।बाप की किसी भी जिम्मेदारी से चुकी नहीं कभी तुम्हारी मां।मां बाप दोनो की जिम्मेदारी निभाई है उसने।
तुम्हे तो उसकी पगड़ी की रस्म भी निभानी चाहिए।
सब तुलसी जी की बातों को सुनकर हैरान थे।
बुजुर्ग आदमियों ने कहा -" बुढ़ापे में सठिया गई हो क्या तुलसी। भला। औरत के मरने पर भी पगड़ी रस्म हुई है कभी।"
तुलसी जी ने कहा -"क्यों नहीं हो सकती। पगड़ी का मतलब क्या है। जिम्मेदारी निभाने वाला चला जाए तो उसकी जिम्मेदारी किसी अगले को दी जाती है।
गीता ने तो इतने सालों से पति के हिस्से की जिम्मेदारी, बेटे के हिस्से की जिम्मेदारी निभाई तो उसकी पगड़ी रस्म क्यूं नहीं हो सकती।"
तुलसी जी की बात सुनकर सब चुप थे।
पर किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी की समाज की बरसो पुरानी रीति तोड़े।
गीता जी के पीहर से कफन आया फिर उनका अंतिम संस्कार किया गया।
दोस्तों। ये एक कड़वी सच्चाई है। औरत जितना मर्जी जिम्मेदारी निभाती रहे पर उसके हिस्से का कफन का कपड़ा तक पीहर से आता है।
और जो सबकी जिम्मेदारी की पगड़ी अपने सिर बांधती है उसकी पगड़ी की रस्म तक नहीं होती।