मां का खत
मां का खत
"बेटा! काश ये खत मैं तुम्हे कुछ साल पहले ही लिख देती! तो आज मुझे खुद की परवरिश पर ही सवाल नहीं उठाने पड़ते!तुम इसे जरूर पढ़ना; ऐसा न हो की तुम्हे भी मेरी तरह अपने बच्चों को खत लिखकर आशीर्वाद भेजना पड़े" - शीला जी ने अपने बेटे रोहन को लिखा!!
शीला जी अपने वक्त की एक बहुत बड़ी वकील थी!!अब अपने बंगले में 4 देखभाल करने वालों के साथ अपनी जिंदगी के आखिरी साल गुजार रही थी!!शीला जी का एक ही बेटा था रोहन, जिसको उन्होंने विदेश वकालत पढ़ने भेजा और वो वहीं का होकर रह गया!!
शीला जी की तबियत अब ज्यादा ही बिगड़ती जा रही थी, उन्हे अपनी सासू मां और पति की बातें अब घर के हर कोने से सुनाई देती!!शीला जी ने उनकी मर्जी के खिलाफ जाकर बेटे को स्कूल टाइम से ही हॉस्टल में पढ़ाया।फिर आगे की पढ़ाई के लिए विदेश भेज दिया।शीला जी की सासू मां, विनीत जी; जिंदगी के आखिरी पलों में पोते को खूब याद करती रही।पर तब शीला जी ने कहा उसकी पढ़ाई का वक्त है, आपके पास नौकर हैं तो, कोई परेशानी हो तो मुझे फोन करवा दें!!मैं ऑफिस में व्यस्त रहती हूं, पीछे से बेटा पढ़ रहा है या नही ये कौन देखेगा! इसलिए अच्छा है उसे हॉस्टल ही रहने दे!!
शीला जी के पति के देहांत के वक्त भी रोहन अगले दिन पहुंचा था!!वो कहते थे -" ये तुम आधुनिक युग के स्टेटस के चक्कर में जो अपने बेटे को खुद से दूर भेज रही हो!! एक दिन ये कहीं दूर ही रह जाएगा!
मां बाप का प्यार इससे बचपन में ही छीन रही हो, तो ये बड़ा होकर मां बाप को क्यों प्यार करेगा!!"तब शीला जी को ये सब बातें दकियानूसी लगती थी।
पर वो एक एक बात आज सच हो गई थी।
रोहन 12 साल की उम्र से हॉस्टल में रहा।उसने मां बाप का प्यार, उनका वक्त बस छुट्टियों में ही देखा!!जैसे जैसे बड़ा हुआ तो एक्स्ट्रा क्लास का नाम लेकर छुट्टियों में भी 4 5 दिन के लिए ही आता!!शीला जी को लगा अब अंत करीब है। जो गलती मुझसे हुई वो मेरा बेटा न करे इसलिए उसको एक खत लिखती हूं।
"
प्यारे रोहन!!
तुम्हें ढेरों आशीर्वाद और प्यार!!
मुझे माफ कर देना बेटा! तुम जिद्द करते रहे की हॉस्टल नही जाना और मैने तुम्हें हॉस्टल भेज दिया!!तुम्हारे हिस्से का वक्त, प्यार मैं तुम्हे नहीं दे पाई।तुम्हारे पिता और दादी का प्यार भी तुम्हे नहीं मिल पाया।
तुम्हे अपने पिता संग खेलते, हंसते,जिद्द करते हुए देखने का सुनहरा मौका मैंने तुम्हारे भविष्य बनाने के चक्कर में खो दिया!!ये पत्र आज इसलिए लिख रही हूं ताकि तुम वो गलती न करो जो मुझसे हो गई!!तुम्हें मैंने विदेश पढ़ने भेजा ताकि यहां आकर मुझसे भी ऊंचे दर्ज के वकील बनो।
पर तुमने विदेश में रहना ही चुना।।गलती तुम्हारी नही है।मां बाप जब बच्चे को उसके हिस्से का वक्त, प्यार, परवाह नहीं देते तो बच्चे भी बड़ी होकर वही करते हैं।
मैं बाकी मां की तरह तुम्हारी पत्नी को भी दोष नही दूंगी की तुम्हे मुझसे दूर ले गई!
वहां विदेश में वो तुम्हारी साथी थी, फिर जीवनसाथी भी बन गई। जिसने तुम्हारा साथ दिया तुम्हे तो उसका साथ निभाना ही था ना!!
बच्चों को अच्छी सुविधा और परवरिश देना मां बाप का फर्ज है। बाकी भविष्य तो बच्चा अपनी मेहनत से ही बनाता है।तुम मेरी इस गलती को मत दोहराना!मेरे पोते को खूब प्यार देना, उसके हिस्से का वक्त उसे देना!!
यहां आना चाहो तो तुम्हारी मर्जी, नही आना चाहो तो कोई दबाव नहीं डालूंगी। इस घर का कोना कोना तुम्हारा इंतजार करता है।अंत में यही कहूंगी हो सके तो मुझे माफ कर देना!!
तुम्हारी मां
शीला"
इतना लिखकर शीला जी ने बेटे को खत के साथ प्रॉपर्टी के पेपर्स भी भिजवा दिए!! उन्हे लग रहा था की अब बस अंत करीब है। दिल का ये आखिरी बोझ भी आज उतर गया!!रोहन को खत मिला, खत पढ़कर वो बहुत रोया!!मां को तुरंत फोन मिलाया, पता चला की कल रात सोने के बाद वो उठी ही नही!!
घर के नौकर रोहन का ही फोन ट्राई कर रहे थे!!और शीला जी अपने दिल का बोझ उतार दुनिया से चली गई!!
दोस्तों!! संतान तो फसल की तरह है हम उसे अपना वक्त, परवाह देकर सींचेंगे तो फल के रूप में हमें भी वो ही मिलेगा!!कुछ लोग जो अपने माता पिता की परवाह के बाद भी उनका नही सोचते , तो उसका सिला उन्हें अपनी संतान से मिल ही जाएगा। किसी ने ठीक ही कहा है जो जैसा बोएगा, वो वैसा ही काटेगा!!!