Anita Bhardwaj

Action

4.7  

Anita Bhardwaj

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वापिसी

वापिसी

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"बेटी डोली में जिस चौखट पर जाए, उसी चौखट से अर्थी में विदा हो तो ही माना जायेगा की बेटी को अच्छे संस्कार दिए हैं।"- उषा जी ने अपनी बेटी अवनी को कहा।

अवनी की शादी को 6 साल बीत गए। शादी के बाद जो भी परेशानियां आई अवनी ने कभी माता पिता से सांझी नहीं की।

अब जब अवनी इस कगार पर थी कि उसका पति तुषार रोज़ ही अवनी के घर फोन करके घर के लड़ाई झगडे के ताने देता रहता था तो अवनी के माता पिता को उसके बिखरते वैवाहिक जीवन का पता चल ही गया।

अवनी की मां उसे समझाती रहती, बेटा बाबुल के आंगन से विदा हुई बेटी की कोई वापिसी नहीं होती।

अवनी ने कहा-"मां तुम्हारी बातों का मतलब मैं अब समझ पाई हूं। जब मां बाप खुद ही बेटी को कह देंगे कि अपने संस्कारी होने की परीक्षा तुम वहां से अर्थी पर विदा होकर देना तो बेटी कैसे अपने दुख किसी से कहेगी।

जो सह गई वो ठीक ; जो न सह पाई वो तो वक्त से पहले ही अर्थी का सहारा ले लेगी। घर से विदा हुई बेटी की वापिसी शमशान में ही है शायद !"

उषा जी की धड़कनें तेज़ हो गई, उन्होंने कहा-" तुझे इसी दिन के लिए पढ़ा लिखाकर बड़ा किया था क्या कि हम बुढ़ापे में अब बेटी की अर्थी देखेंगे।"

अवनी ने कहा -" नहीं मां! मुझे इस दिन के लिए पढ़ाया लिखाया गया था कि मैं चुप होकर अपने साथ हो रहे अन्याय को सहन करती रहूं और बुढ़ापे तक अर्थी पर विदा होने का इंतजार करूं!"

उषा जी-" बेटा ! क्यों जीते जी अपने मां बाप को मार रही है। तेरी बातें सुनकर मेरी रुह रूह कांप रही है।"

अवनी-" मां तुम्हारी रूह सुनकर कांप रही है और जो मेरी रूह है वो सहकर भी नहीं कांपेंगी क्या ?"

अवनी को पता था मां के सामने ये सब बातें करने का कोई फायदा नहीं हैं।

मां ने खुद सारी ज़िंदगी अपने आपको संस्कारी साबित करने में लगा दी।

अवनी ने फोन रख दिया।

उषा जी परेशान हुई; पता नहीं आजकल के बच्चों की गृहस्थी कैसे चलेगी ?

लड़के - लड़कियां दोनों ही आजकल पढ़े लिखें हैं। घर गृहस्थी के दुख उन्होंने देखे ही नहीं हैं। दोनों में ही सहनशीलता नहीं हैं।

थोड़े दिन की दिक्कत है , सब ठीक हो जायेगा। फिर ऊषा जी लग गई अपने काम में।

सुबह सुबह फोन की घंटी बजी, ऊषा जी ने हड़बड़ाहट में फोन उठाया।

फोन पर अवनी की सासू मां रीना जी ने कहा-" जल्दी हॉस्पिटल पहुंचिए अवनी ने नींद की गोलियां खा ली हैं।"

उषा जी तो जड़ सी हो गई। बात इतनी कैसे बढ़ गई।

ऊषा जी और अपने के पिता रोशन जी हॉस्पिटल पहुंचे।

अवनी ने किसी से भी मिलने से साफ़ इंकार कर दिया।

अवनी -" डॉक्टर पुलिस बुलाइए ;मैं अपना ब्यां दर्ज़ करवाना चाहती हूं।"

पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस को देखकर रीना जी ने अपने बेटे कार्तिक को बाहर जाने का इशारा किया।

कार्तिक हॉस्पिटल की लिफ्ट से नीचे चला गया।

पुलिस ने अवनी से मुलाकात की।

पुलिस -" आपको पता है ना आत्महत्या करना भी एक गुनाह है।"

अवनी-" जी! हां! आप मुझपर केस दर्ज़ करें और मुझे अपने साथ ले चलें। वैसे भी मेरे पास कोई ठिकाना नहीं है।"

पुलिस -" ठिकाना क्यों नहीं है। बाहर आपके ससुराल पक्ष और माता पिता सभी बैठे हैं।"

अवनी-" माता पिता को इंतजार है बेटी अर्थी से विदा होगी तो ही हमारी बेटी संस्कारी कहलाएगी। ससुराल पक्ष वालों को एक मूर्ति चाहिए । जो घर की सजावट के काम आए। ना गलत बात पर रोए, ना जवाब दे। उनकी मर्ज़ी से जागे, सोए।"

पुलिस-" आप पढ़ी लिखी हैं कोई नौकरी करें। यूं जिंदगी को खत्म करना कहां तक सही है।"

अवनी-"नौकरी के हालात आपको बेहतर मालूम हैं। जिसके साथ कोई नहीं होता लोग मदद के बहाने उसका फायदा ही उठाते हैं।

नौकरी करने के बाद आना तो छत के नीचे ही पड़ेगा। छत है नहीं मेरे पास। आप बताएं क्या उपाय है।"

पुलिस-" अगर आपके पति में सामर्थ्य नहीं शादी को निभाने का तो उन पर केस दर्ज़ करें और अपने पिता के पास रहकर कोई नौकरी करें।"

अवनी-" पिता जी ने कह दिया है डोली में विदा कर दी। अब अर्थी से विदा होना। उनकी परवरिश पर उंगलियां उठाई जाएंगी। बेटी मर जाए कोई बात नहीं ; इज्जत नहीं मरनी चाहिए।"

पुलिस-" तो फिर अब क्या करेंगी आप??"

अवनी मुस्कुराई और कहा-" मेरे पास तो आखिरी रास्ता यही था, ये भी कारगर साबित ना हुआ। "

पुलिस-" आप हमसे क्या मदद चाहती हैं बताएं !"

अवनी-" मेरी बस एक मदद करें मेरा ये आखिरी पत्र किसी अखबार में छपवा दें।"

अवनी ने पुलिस को पत्र थमाते हुए कहा, अगर अदालत तक भी पहुंचा दें तो आपकी मेहरबानी होगी।

मैं तो बच गई पर जाने कितनी अवनी इस आखिरी रास्ते से अपने संस्कारी होने का सुबूत दे चुकी होंगी।

पुलिस ने पत्र खोला-

" बाबा ! अपनी लाडो पर इतना एहसान करना,

विदाई के बाद भी अपनी चिड़िया के लिए

अपने बगीचे में एक घोंसला ज़रूर रखना;


यूं तो चिड़िया तेरी पिंजरे में भी रह जायेगी,

तेरी पगड़ी की खातिर पिंजरे में ही मर जायेगी,

पर चिड़िया तेरी थोड़ी चंचल है,

पिंजरे से लड़ती हर पल है,

पिंजरे पर है तेरी इज्जत का ताला,

उसने तेरी चिड़िया के पंखों को ज़ख्मी कर डाला,

पंख जो लहूलुहान थे,


फिर भी चिड़िया के मन में जीने के अरमान थे,

एक रोज बाज़ ने चिड़िया के मन को ज़ख्मी कर डाला,

उसने पिंजरे पर लगाया,अपने बगीचे का ताला,

मन से भी अब ज़ख्मी है और तन से लहूलुहान,

तेरी चिड़िया अब ढूंढती अपने लिए शमशान,


बाबा ! मेरी गुड़िया को अपने बगीचे में रहने देना

मेरे हिस्से की बातें उसको कहने देना,

तेरा बगीचा बहुत बड़ा है,

इसमें एक घोंसला मेरा भी रहने देना !"

पुलिस-"आप चाहें तो सरकार के द्वारा शेल्टर होम बनाएं गए हैं वहां आपके रहने का प्रबंध करवा सकते हैं। अगर आप कहेंगी तो आपके माता पिता को भी हम समझा देंगे।"

अवनी-" मैं शेल्टर होम जाना चाहूंगी।"

पुलिस ने हॉस्पिटल का बिल भरने के लिए ससुराल पक्ष को कहा।

अवनी के माता पिता को समझाया कि आपकी बेटी का कानूनन हक़ है आपकी संपत्ति में।

और आपकी बेटी तो वैसे भी इतनी समझदार है कि आप पर कोई बोझ नहीं बनना चाहती और शेल्टर होम जा रही है। हो सके तो उसे समझा बुझाकर अपने घर ले जाएं।

आपकी इज्जत के लिए वो खुशी खुशी डोली में बैठ गई और शायद अर्थी पर भी चली जाती।

आपको भी अपनी बेटी के लिए दिल बड़ा करना पड़ेगा। बेटी आपकी है दुनिया की नहीं।

जितनी बदनामी की फ़िक्र उसके आपके घर रहने की कर रहे हैं उससे ज्यादा बदनामी तब होगी जब वो किसी शेल्टर होम में रहेगी।

बाकी आप लोगों की मर्ज़ी है।

पुलिस चली गई।

ऊषा जी और रौशन जी बेटी के पास पहुंचे और बेटी से माफ़ी मांगी।

अवनी ने घर जाने से साफ़ इंकार कर दिया।

अवनी ने कहा-" आज मैं घर चली गई तो ज़रूरी नहीं की हर अवनी के लिए पिता के घर में वापिसी का रास्ता बने। अगर मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी हो गई तो शायद कोई अवनी ये खुदकुशी का रास्ता न अपनाएं।"

अवनी के माता पिता बेटी को आशीर्वाद देकर चले गए।

अवनी आजकल महिला शेल्टर होम में सिलाई सिखाती है और वहीं रहती है।

दोस्तों ! समाज वही अच्छा होता है जो हमें सशक्त बनाएं। जरूरी नहीं कि सारी पुरानी रस्में सही ही हो।

नए ज़माने की नई समस्याएं है तो हल भी नए ही होने चाहिए।

अगर बेटी विदा हो गई तो रहेगी तो वो बेटी ही; उसके लाश होने का इंतज़ार क्यूं करना। एक वापिसी का रास्ता बेटी के लिए भी होना चाहिए; जरूरी नहीं कि हर लड़की अवनी की तरह बहादुर हो।


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