Ramashankar Roy

Abstract

4.5  

Ramashankar Roy

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सकीना

सकीना

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मेरा गाँव आज भी शुद्ध गाँव है जिस पर आधुनिकता की रोशनी शायद नही पड़ी है ।मेरे गांव में एक किराने की दुकान है जिसका कोई नाम नही है । उसके मालिक जुमन काका हैं ।

वैसे हमारे गाँव मे हिन्दू मुस्लिम दोनो सम्प्रदाय के लोग रहते हैं लेकिन मुसलमान जनसंख्या ज्यादा है और कुछ लोग काफी पढ़े लिखे एवं सम्पन्न हैं ।

जुमन काका की किराने की दुकान शहरी पैमाने से देखा जाय तो सुपर स्टोर है जिसमे हर चीज मिलती है । इसमें सिरदर्द, बदनदर्द और पेटदर्द आदि में काम आनेवाली दवाइयां भी मिलती है। पूजा पाठ का भी समान मिलता है । सबसे बढ़कर 24×7 उपलब्ध रहनेवाला बैंक भी है । जुमन काका के मददगार स्वभाव के चलते किसी को भी कभी यह महसूस नही होता कि जरूरत पड़ने पर किससे पैसा मिलेगा ।

जुमन काका की उम्र लगभग 65 के पार चल रही होगी । जबतक पहली काकी जिंदा थी लगभग अडोस पड़ोस के बच्चे मुफ्त में मिलने वाली खटी- मीठी गोलियों के लिए एक - दो चक्कर दुकान का लगा लेते थे । वैसे मुफ्तखोर बड़े लोग भी चक्कर लगाते हैं क्योंकि जुमन काका खिली भर खैनी और एक बीडी का पैसा नही लेते हैं । उनके हिसाब से यह जनसेवा और ग्राहक आकर्षित करने का प्रोमोशनल एक्सपेंस है । जुमन काका कभी बच्चों को गोली देने से मना करे तो काकी कहती यह भविष्य के ग्राहकों को बनाये रखने का तरीका है । लेकिन उनलोगों के सोंच का लाभ दोनो प्रकार के ग्राहकों को मिलता ।

लेकिन पहली बीबी के गुजर जाने के बाद जुमन काका ने दूसरी शादी कर ली है । अपनी दूसरी बीबी के जुमन काका तीसरे पति हैं और साथ मे तीन नाबालिग बच्चों के बाप भी बन गए हैं । इसमे दो नयी काकी के पुराने पति के निशानी हैं और एक जुमन काका के जवानी का सबूत । नयी वाली काकी वैसे जुमन काका के स्वर्गवासी पत्नी की सगी बहन की बेटी है । इस शादी के बाद से उनके पहली पत्नी के दोनो बेटे बहु ने इनसे संबंध तोड़ लिया है ।

इससे न तो जुमन काका के स्वभाव में न ही उनके दिनचर्या में कोई अंतर आया है । अपने धर्म ईमान के सच्चे मुसलमान हैं और पाँच वक्त के नमाजी है । किसी भी जरूरतमंद को मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं । केवल इतना ही बदलाव हुआ है अब उनकी अनुपस्थिति मे नयकी काकी दुकान संभालती है । लेकिन पहली वाली काकी का व्यवहार ही अलग था । उसकी कमी सबको खलती है ।

हाल ही में जुमन काका हप्ताभर के लिए कहीं बाहर गए थे तो यह अंतर लोगों ने महसूस किया । पहली काकी से जब कोई उधार लेकर कहता कि हिसाब में लिख देना वो बोलती मै नही लिखती तुम अपने ईमान से जुमन मियाँ को लिखवा देना । इस प्यार और भरोसा वाली सुविधा इस दुकान पर बंद हो गयी है ।

खैर जुमन काका के वापस आते ही सब कुछ यथावत चलने लगा । इसी बीच कोरोना का संक्रमण शुरू हो गया और हर जगह सोशल डिस्टेनसिंग का कड़ाई से पालन गाँव शहर हर जगह होने लगा ।

खासकर जमाती लोगो का कोरोना पॉजिटिव निकलने की संख्या में बढ़ोतरी के बाद मुस्लिम बाहुल्य इलाकों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है ।

मेरे गाँव मे बड़ा मस्जिद है इसमें अक्सर बाहर से बड़े मौलाना और आलिम आते रहते हैं । गाँव के लोगों में उनको अपने यहाँ दावत पर बुलाने की होड़ रहती है। उनलोगो का सेवा सत्कार इबादत के बराबर समझा जाता है । कौन लोग कहाँ से आए कबतक रहे और उनका क्या मकसद था यह आमलोगों के लिए हमेशा रहस्य का विषय ही रहा । आम लोगों को केवल इतना ही मालूम था कि वो लोग खुदा के बंदे है और हमेशा धर्म इमान के काम मे व्यस्त रहते हैं ।वो लोग हमारे लिए पुजनीय और वंदनीय हैं ।

इस बीच एक रोज अब्दुल भाई ने बाहरी मौलबियों का दावत काबुल किया और घर पर आकर इसकी सुचना दी । घर मे उनके आवभगत की खास तैयारी चलने लगी । बिशिष्ट और लजीज खाना बनाने के लिए समान का लिस्ट बना उनको क्या भेंट देना है इसपर भी चर्चा हुई । लेकिन अब्दुल भाई की छोटी बहू सकीना बेगम ने इस कार्यक्रम का विरोध किया । उसका कहना था कि अभी कोरोना की हवा चली है और ये बाहरी मेहमान मालूम नही कौन सी दिशा से घूमकर आए हैं जिनको घर पर बुलाना उचित नही है। उनकी उपस्थिति की सूचना प्रशाशन को दी जानी चाहिए ।

इस बात को लेकर कुनबे के सारे लोगो ने उसको बुरा भला कहा और कुछ लोगों ने तो उसपर काफिरों की भाषा बोलने का आरोप भी लगा दिया । लेकिन वह खुले विचार वाली थी उसको लग रहा था की इस प्रकार की मेहमानबाजी अभी गलत है । परिवार में विरोध बढ़ने पर उसके खसम ने उसकी जोरदार पिटाई कर दी और कहा कि अगर अब्बूजान की बात में आइंदा से टांग डाला तो तलाक दे दूँगा ।

मामला बढ़ता देख वह यह घर छोड़कर अपने वालिद के घर चली गयी । उसका मायका भी उसी गाँव मे दूसरे मुहल्ले में था। उसने अपनी अम्मी को सारी बातें बतायी । उसके अम्मी ने कहा कि वह नाहक ही विरोध कर रही है । तीन दिन पहले तो उनकी खातिरदरी तुम्हारे अब्बू ने भी किया था । सुनने में आया है ये लोग बहुत पहुंचे हुए आलिम हैं इनका विरोध करके अल्लाह की नाराजगी को मोल मत ले । सकीना मन मारकर बैठ गयी लेकिन अंदर से बहुत दुखी थी ।

इस घटना के दो दिन बाद जुमन काका की तबियत अचानक खराब हुई और उनको इमेरजेंसी में हॉस्पिटल पहुँचाया गया ।लेकिन डॉक्टर्स की लाख कोशिश के बाद भी जुमन काका को बचाया नही जा सका । उनक़ी उम्र 65 साल के ऊपर थी साथ मे उनको सुगर की भी शिकायत थी । अतः लोग उनकी मौत को समान्य मौत समझ रहे थे । लेकिन कोरोना संकट के चलते उनका पोस्टमार्टम किया गया तो पता चला कि उनकी मौत कोरोना से हुई है ।

प्रशाशन की हलचल तेज हो गयी क्योंकि उनके लिए यह एक नया इलाका में कोरोना के फैलने का मामला था । उनकी ट्रेवल हिस्ट्री की जांच शुरू हुई तो पता चला कि वो भी मरकज के जमात में शामिल थे । लेकिन लॉकडाउन से पहले ही घर आ गए थे ।गांव के और भी कितने लोग जमात में शामिल हुए थे लेकिन उनका मानना था कि उनको सरकार को या बात नही बतानी है क्योंकि जिंदगी और मौत तो रसूल के हाथ मे है ।

इबादत में शामिल होने वाले पर किसी भी बीमारी का कोई असर नही होता है ।लेकिन प्रशाशन के लिए जुमन काका का कोरोना होना बहुत बड़े संकट का संकेत था लेकिन गांव वालों की आंखों पर मजहब का ऐसा चश्मा लगा है कि उनको यह एक सरकारी साजिस लग रही है ।

प्रशाशन के लोग जब पुछताछ के लिए गाँव में आए तो कोई भी यह बताने को तैयार नही की कौन कौन से लोग उनके संपर्क में आए थे । जब आशा वर्कर की एक सदस्या सकीना के संपर्क में आई तो उसने बता दिया कि उनका किराना का दुकान होने के चलते लगभग हर घर का कोई न कोई उनके संपर्क में आया होगा । दूसरे वो बहुत ही मिलनसार स्वभाव के थे अतः इसकी संभावना और बढ़ जाती है।

उसने बाहरी लोगों के मस्जिद में ठहरे होने की भी बात बता दी । साथ मे यह भी बताया कि पूरी पुलीस बंदोबस्त के साथ आना क्योंकि इस गांव के लोग जांच का विरोध करेंगे ।अगले रोज पुलिस बल की उपस्थिति में जांच का काम शुरू हुआ तो यह पता चला की मस्जिद में छिपे मौलबी भी जमात वाले ही हैं और उनमे भी कोरोना पॉजिटिव है ।

आज पूरा गाँव रेड जोन में बदल गया है और लगभग 137 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए है । लेकिन पहले दिन जांच के लिए आए स्वास्थ्यकर्मियों को लोगो ने बुरी तरह पीटा था । मारपीट की अगुआई करने वाले शलिम भाई तो अब कोरोना के शिकार होकर अल्लाह को प्यारे हो गए । सकीना जैसी आधुनिक और व्यवहारिक सोंच वाले लोग ही खुद का भी भला करते हैं और समाज का भी । आज अगर ट्रिपल तलाक का कानून नही होता तो शायद सकीना को भी अबतलक ट्रिपल तलाक का शिकार बनना पड़ता।

जमाती लोगों के कोरोना योद्धाओं के प्रति असामाजिक और असम्बेदनशील व्यवहार ने सरकार को अध्यादेश लाने पर मजबूर कर दिया जिसमे कठिन सजा का प्रवधान है ।सकीना की सोच समय और समाज की जरूरत है।



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