सिंदूर की डिबिया
सिंदूर की डिबिया
मैं ड्रेसिंग टेबिल ठीक कर रही थी तभी और अचानक मेरा हाथ सिंदूर की डिबिया पर कर रुक गया....
जीवन में सोलहवाँ वसंत आते ही तन और मन तरंगित हो उठा था और ऐसी मस्ती छा गई कि सब कुछ सतरंगी, इंद्रधनुषी रंगों से रंगा हुआ सा दिखने लगा था . बचपन से ही मेरे स्वभाव में खिलंदड़ापन तो था ही , अब तो ठहाकों के साथ सब कुछ सुहाना सा लगने की तर्ज पर हर पल मन गुनगनाने को बेकरार सा रहता ....
बात बहुत पुरानी है ... मैं एम . ए. फाइनल का एक्जाम दे चुकी थी...... तब लैंडलाइन का जमाना था.... फोन की घंटी बजते ही मैं लपक कर उठाती , जब कि पापा के बिजनेस के ज्यादा फोन होते ....लोगों को गलतफहमी होती कि शायद मैं पापा की सेक्रेटरी हूं . उन दिनों ब्लैंक कॉल अक्सर आ जाया करती थी ....
‘हेलो .. आपको किससे बात करनी है ’
‘फोन आपने किया है’
मुझे तो आपसे ही बात करनी है...
‘आप हैं कौन महाशय .... अपना शुभ नाम और काम तो बताइये ...’
‘आपकी आवाज बहुत मीठी है ....’
अपनी प्रशंसा सुनते ही आदतन खिलखिला कर जोर से हंस पड़ी थी ... मेरा लहजा और वाल्यूम दोनों ही नरम पड़ गया था .
‘आपकी मीठी मीठी हंसी ने मेरे कानों में मानो सरगम सी छेड़ दी और मैं तो पूरी तरह से उसी में खो गया था …’
‘आपकी इतनी हिमाकत कैसे हो सकती है ‘....’कह कर फोन कट कर दिया परंतु उसकी जुबान में कुछ ऐसा जादू था कि बार बार उससे बात करने को मन मचल रहा था , परंतु ना ही नंबर था ऩा ही कोई अन्य संपर्क सूत्र.....
शायद ये था मेरा मासूम इश्क से पहला परिचय ....
दिन भर मन बेचैनी से उस जादुई आवाज के लिये तड़पता रहा ... जब भी फोन बजता दिल की धड़कनें बढ जातीं ....
अगली सुबह फिर से वही आवाज सुनते ही मन मयूर खुशी से नर्तन कर उठा था .......दिल धक धक कर रहा था , ऐसा लग रहा था कि वह बोलता रहे और मैं सुनती रहूं ....
अब तो रोज ही फोन की घंटी सुनते ही .... दिल की धड़कनें बढ जातीं.... मन बहक बहक उठता ....और फिर शुरू हो जातीं दुनिया जहान् की बातें ....
‘कौन सी किताब पढ रहीं ….’
‘क्या खाया …’
‘कौन सा कलर पसंद है ‘
‘कौन सी पिक्चर देखी आदि आदि
आप से कब तुम पर आ गये , पता ही ‘नहीं लगा था ....ना ही मिलने की ख्वाहिश हुई ... ना ही आपस में कोई देन लेन .... बस केवल और केवल लंबी लंबी बातें .... जिसमें कोई भी विषय अछूता नहीं रहता ... कभी पॉलिटिक्स , तो कभी फैशन , तो कभी धर्म , तो कभी सामाजिक रूढ़ियां और अंधविश्वास ....घंटों बीत जाते ....
मां कहतीं, तेरी सहेली के पास कोई काम धाम नहीं है , जो घंटों तक बात करती रहती है ... अब बंद करो .... लेकिन मुझ पर तो ऐसा नशा सा छाया रहता कि कानों में उसकी बातें गूंजती रहती ....
एक दिन उसने मुझसे मिलने का आग्रह और मनुहार की थी परंतु मुझे अपनी सीमायें मालूम थीं ....
वह भावुक हो उठा था , ‘काश तुम मुझे पहले मिली होतीं ..... तुम्हारी मीठी आवाज सुनते ही मैं अपना होश खो बैठता हूं .... तुम्हारी खनकती हुई खिलखिलाहट से मुझे दिन भर के लिये ऊर्जा मिल जाती है ...’
मैं जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी थी ...
अपना बड़प्पन दिखाते हुए उसने बताया था कि वह शादीशुदा है ...
मेरी भी शादी लगभग फिक्स हो गई है ....
... जब मैंने उसे कार्ड भेजने के लिये एड्रेस मांगा तो उसकी आवाज की गहरी उदासी को महसूस कर मैं भी उदास हो उठी थी लेकिन अपनी शादी की खुशियों में डूबी हुई .... भविष्य के सुनहरे ख्वाबों में खोई हुई देर तक हंसती रही थी ...
‘तुमसे बात करना तो मुझे भी अच्छा लगता है.....’ मैंने कहा था ...
‘अपना खयाल रखना ...’ वह बहुत लकी हैं , जिन्हें तुम मिल रही हो .... अपनी मासूम खिलखिलाहट को हमेशा संजो कर रखना ...’
मेरी शादी में वह आया तो हम दोनों बहुत देर तक एक दूसरे को देखते ही रह गये थे ... सारी बातें जैसे कहीं खो गईं हों ....एक मौन सा पसरा रहा .... औपचारिकता निभाई जाती रही .... वह उपहार में मुझे सिंदूर की डिब्बी देकर गया ....
शादी के बाद अपनी नई जिंदगी की खुशियों में डूब गई थी ...
जीवन की आपाधापी , परिवार फिर बच्चे इन्हीं सब में व्यस्त होती गई.... लेकिन आज इस सिंदूर की डिब्बी ने मेरे अनूठे इश्क की मीठी यादों से मेरे चेहरे पर मुस्कान सजा दी ....

