शोषण

शोषण

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बुधिया अब तक 10 घरों में काम करके छोड़ चुकी थी। कहीं एक दो महीने, तो कहीं दो-चार दिन ही..! सत्रह साल की उम्र, जवां जिस्म, सुंदर चेहरा, गोरा रंग और नशीली आंखें देखते ही उसे बाई का काम तुरंत मिल जाता था। पर थोड़े दिन बाद ही उसे समझ में आ जाता था, कि घर के भूखे मर्दों की निगाहें उसके जिस्म की प्यासी है और किसी अच्छे मौके की तलाश में हैं, जब उसके यौवन का भरपूर मजा ले सकें..! पढ़ाई लिखाई उसे नसीब नहीं हुई, क्योंकि गरीबी ने उसे इसकी इजाजत नही दी..! बचपन से ही कूड़े से पॉलिथीन बीन कर घर की रोटी चलाती, पर जब से पॉलिथीन पर बैन लगी, तो रोटी के लाले पड़ गए..! तब मजबूरन उसे बाई का काम करना पड़ा।

यह काम शुरू में तो अच्छा लगा, क्योंकि पैसे भी अच्छे थे और काम भी अपेक्षाकृत आसान था, पर कुछ दिनों के बाद ही उसके जिस्म के शोषण की एक नई दर्द भरी कहानी सामने आ गई, जब सेठ किशोरी लाल ने उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की..! और फिर तो हर घर में ऐसा कोई न कोई जरूर मिला, जिसने मौका मिलते ही उसे खा जाने की कोशिश की..! इसी कारण वह किसी भी घर में ज़्यादा दिनों तक टिक न पाती, और न चाहते हुए भी उसे काम छोड़ना पड़ता..!

आज यह ग्यारहवां घर उसने पकड़ा था, पर आज वह खुश थी। इसलिए नहीं कि यहां उसके साथ कुछ अच्छा होने वाला था, बल्कि इसलिए, क्योंकि अब उसने नियति से समझौता कर लिया था..! उसका यह भ्रम पूरी तरह से टूट चुका था, कि समाज के भूखे भेड़ियों से वह खुद को बचा सकेगी..! अब इसी में उसने खुश रहना और हंसी खुशी जीने का एक निर्दयी फैसला ले लिया था..!


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