मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Abstract

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मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

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शक्ति

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राहुल की बॉस के साथ मीटिंग काफी लम्बी हो गई थी। लंच का टाइम लगभग समाप्त होने को था। किसी तरह भागता हुआ स्टाफ कैंटीन पहुँचा। काउंटर पर लंच के कूपन के लिए जैसे ही पैसे निकाले तो रेसेप्सिनिस्ट ने कहा।

सर, आज तो आप लेट हो गए। लंच तो चेक करना पड़ेगा, बचा है कि नहीं। वैसे कैंटीन बंद होने का टाइम भी हो गया है। अंदर सफाई चल रही है।

प्लीज, कैसे भी एक थाली अरेंज कर दो। ऑफिस का लंच भी ओवर होने को है। कहीं बाहर खाना खाने जाऊँगा तो टाइम लग जाएगा। 

सर, आप वेट करिये। मैं ट्राई करती हूँ।   

रेसेप्सिनिस्ट ने मैनेज तो कर दिया। लेकिन जैसे ही राहुल डायनिंग हाल में टेबल पर बैठा, चारों तरफ झूठी थालियाँ फैली हुई थीं। सफाई कर्मचारी उस झूठन को एक कंटेनर में एकत्रित कर रहे थे। उसने भी अपनी थाली किसी तरह जल्दीजल्दी खाई और हाथ धोकर मुँह पोछता हुआ और लोगों की तरह बाहर निकल गया। राकेश उसका सहकर्मी उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। रोज दोनों एक साथ लंच करते थे। राहुल खाना खा कर तो बाहर आ गया था लेकिन उसकी नज़रों में तो वही खाने की अध्खिली थालियाँ और बचे हुए खाने से भरे कंटेनर घूम रहे था। 

क्या इंसान केवल खाने के लिए ज़िन्दा है? वह भी इस तरह?

राकेश, मेरा तो आज खाने की बर्बादी देख कर मन खट्टा हो गया। कहीं एक तरफ तो इंसान भुखमरी का शिकार है। दूसरी तरफ रास्तों के किनारे न जाने कितने लोग भीख मांगते नज़र आते हैं। उनको क्या चाहिए?

क्या उनको टीवी, कूलर, फ्रिज चाहिए?

नहीं, उनको केवल और केवल एक वक़्त का खाना। यही उनकी बुनियादी ज़रूरत है। 

बेशक तुम ठीक कहते हो राहुल। कभीकभी मुझे भी ये सब सोच कर बड़ा दुःख होता है। ईश्वर का सब कुछ दिया हमारे पास है। इसका मतलब ये नहीं कि हम इसे बर्बाद करें। पैसा भले ही हमारा है लेकिन संसाधन तो देश के हैं। हमें इन्हें बर्बाद होने से रोकना होगा। अमीर देशों के खाने के ग्राहक इतना खाना बर्बाद करते हैं, जितना सब सहारा इलाके में पैदा किया जाता है। बर्बादी और कचरे में जाने वाली खाने की मात्रा पूरी दुनिया की सप्लाई का एक तिहाई है। ये खाना पृथ्वी पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए भी जिम्मेदार है। जो लगभग सड़कों पर दौड़ने वाली गाड़ियों द्वारा उत्सर्जित गैसों के बराबर ही है। हर साल टनों खाना फेक दिया जाता है। इसे बचाया जा सकता है क्योंकि करोणों लोग दुनिया में भुखमरी का शिकार हैं।

"भूख पर जीत का मतलब, उन लोगों पर बहुत ही प्रोडक्टिव तरीके से निवेश।" 

जरा सोचो, अगर इतने ही लोगों की भूख मिटाई जा सके तो ये लोग कल को दुनिया में सकारात्मक और रचनात्मक कामों को अंजाम देंगे। किसी की भूख मिटाने का मतलब उसे स्वस्थ्य समाज में आजादी से जीने का हक़ देना भी है। अगर हम भुखमरी के आंकड़े देखें तो वे चौका देने वाले हैं। जो वास्तव में चिंता का विषय हैं।

फिर हमें क्या करना होगा, राकेश? हमारा भी तो समाज के प्रति कुछ उत्तर दायित्व है? 

अब राहुल और राकेश ने विचार विमर्श के उपरान्त ,अपनी स्टाफ कैंटीन ने खाने की बर्बादी को रोकने के लिए एक कार्ययोजना तैयार की। उन्हों ने ठान लिया कि वे इस समस्या का कुछ न कुछ निराकरण अवश्य करेंगे। 

आज जब वह स्टाफ कैंटीन गए तो लंच के बाद उन्होंने मैनेजर से इस सन्दर्भ में बात की। उन्होंने सुझाव दिया कि "खाना बफर सिस्टम में सर्व किया जाय और प्रत्येक व्यक्ति अपनी थाली का बचा खाना स्वयं कंटेनर में डाल कर थाली सफाई कर्मचारी को दे ताकि उसको महसूस हो कि आज उसने स्वयं के हाथों से कितना खाना फेका है।"

मैनेजर उनके सुझाव से सहमत हो गया। 

कुछ दिनों बाद ही इस व्यवस्था का प्रभाव दिखने लगा। प्रत्येक व्यक्ति उतना ही खाना अपनी थाली में लेता जितनी उसको आवश्यकता होती। और झूठन भी बहुत कम मात्रा में बच रहा था। अब तो और दूसरी कैंटीन वालों ने भी इसी व्यवस्था को लागू करने का फैसला ले लिया था। कैंटीन इंचार्ज और स्टाफ भी खुश था। 

राहुल और राकेश को अपनी कार्य योजना को अमली जामा पहनाते देख आत्म सनतुष्टि हुई। आज उन्हें अपने अंदर की शक्ति का अहसास हुआ। एक अच्छी शुरुआत के लिए बहुत ज़्यादा लोगों की ज़रूरत नहीं होती। केवल शुरुआत करनी होती है। 

"कोई भी देश तब ही महान बन सकता है जब उसके नागरिक महान हों। महान बनना बड़ेबड़े अचीवमेंट हासिल करना नहीं बल्कि हर वह छोटेछोटे काम करना है जिस से देश मजबूत बन सके।"

हाँ, राकेश। तुम ठीक कहते हो।  


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