Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Romance Fantasy

3.4  

मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Romance Fantasy

हाँ, वह मिल गई (कहानी )

हाँ, वह मिल गई (कहानी )

3 mins
92



आज एक अरसे बाद दिखी थी वह। लाइफ स्टाइल के शोरूम में, डीबी माल में ड्रेसेस देख रही थी, बड़ी तल्लीनता से। उसका ये अंदाज़ मुझे शुरू से पसन्द था। जिस चीज़ को भी खरीदना होता बहुत देख परख कर ही पसंद करती। जिस चीज़ से कोई मतलब नहीं उसे तो देखना भी गवारा नहीं था। मुझे ये बात पता थी, जब तक वो अपनी पसंद की चीज़ खरीद नहीं लेगी उसका ध्यान कहीं और जा ही नहीं सकता। बस, यही सोच कर मैं भी आज उसे जी भर कर देखने लगा।

वैसे खूबसूरत तो थी ही बहुत। लेकिन अब खूबसूरती में और भी निखार आ गया है। मैं तो पल भर के लिये रुक गया। लेकिन एक यादों का सैलाब पीछे कहीं से आया और पस मंज़र को डुबो गया।

मैं तो अच्छा तैराक था जो डूबा नहीं। बल्कि उस सैलाब के बहाव के ख़िलाफ़ भी तैरना जनता था, न। बस इसीलिये किनारे लग गया।

इस से पहले के वह अपनी ख़रीदारी कर काउण्टर पर बिल पे करने आती, मैं वहां से चल दिया। लेकिन भूख भी बहुत ज़ोरदार लगी थी। दिन भर ऑफिस के काम से कभी शिवाजी नगर तो कभी टीटी नगर भागता रहा। ऑफिसियल टूर पर जो आया था। वैसे रायपुर से भोपाल बहुत दूर तो नहीं लेकिन जब से पोस्टिंग हुई कभी आने का दिल ही नहीं किया। अब ये कहना कि आने का दिल ही नहीं किया भी ठीक नहीं। दिल ने तो आने के बहुत बहाने तलाशे लेकिन दिमाग़ ने मना कर दिया।

कहने लगा आसिम, अब वहाँ कौन है तेरा? तू वहाँ की गलियों में एक बार फिर नीलो को तलाश करेगा। अब कहाँ तुझे मिलेगी? मिलेगी भी तो साथ में उसका शौहर होगा, बच्चे होंगे। क्या पता तुझे पहचानेगी कि नहीं? तू एक बार फिर उसे एक और इम्तिहान में मुब्तिला कर देगा। कहीं जानकर भी मजबूरी में नहीं पहचाना तो एक इलज़ाम और उसके सर लग जाएगा।

मैं ये भी जनता था कि है बहुत बोल्ड। कुछ भी हो न तो वह पहचानने से इनकार करेगी न ही किसी से मिलवाने से परहेज़। मिलेगी तो तपाक से कहेगी, अरे आसिम ... कहाँ ग़ायब हो? फिर मैं क्या जवाब दूँगा।

अब क़ुदरत ने मिलवा ही दिया है तो एक बार सामने से गुजरने में क्या हर्ज है। चल, चल अभी तो फ़ूड ज़ोन में पेट पूजा का इंतिज़ाम करते हैं। फिर वहीँ बैठ कर सोचेंगे करना क्या है?

जैसे ही आसिम बर्गर का आर्डर दे कर पलटा सामने खड़ी थी। लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। शायद उसके गुमान में ही नहीं था कि मैं पीछे खड़ा हूँ।

एक बार फिर मैं ने मिलने का इरादा तर्क किया और एक कोने में बैठ कर अपने आर्डर को पूरा होने का इन्तिज़ार करने लगा।

मैं देखता रहा वह भी कहीं दूर बैठ कर अपने आर्डर के नंबर को डिस्प्ले बोर्ड पर, नज़रें जमाए अकेली बैठी इन्तिज़ार कर रही थी।


Rate this content
Log in

More hindi story from मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Similar hindi story from Romance