सपनों का सौदा
सपनों का सौदा


कल तुमने शबाना से बात की, ... ,या नहीं ?
वो बात करने का मौक़ा ही कहाँ देती है। दिन-रात पढ़ाई का भूत सवार है, उसे तो। उसके कमरे में नाश्ता-खाना लेकर जाती हूँ तो बस अपने काम की बात करती है।
मम्मा, मेरे कपड़े धुल गए क्या? लॉन्ड्री से आए क्या? मेरे लिए ये बना दो, वो बना दो?
उसके पास तो ये सोचने के लिए भी वक़्त नहीं है कि आज क्या पहन कर कॉलेज जाना है। ये भी, मैं ही बताती हूँ। मुझे तो उसने, अपना सेक्रेटरी बना रखा है। सोचा था बच्ची बड़ी होगी तो घर के काम काज का सहारा बनेगी। मुझे क्या मालूम था। उसके पास तो किचन में खड़े होने का भी टाइम नहीं है। कॉलेज और कोचिंग ही में सारा दिन गुज़र जाता है। क्या रोटी बेलना सिखाऊँ? और क्या दाल बघार लगाना? बस एक ही सपना लेकर बैठी है किसी तरह एमबीए क्लियर करना है।
तुम एक बात कान खोलकर सुन लो, ... "मेरे रिटायरमेंट को केवल पाँच साल हैं। इसी में सब मैनेज करना है।"
शाहिद तो अभी बारहवीं दर्जे में ही है। अगले साल से उसका बीटेक शुरू होगा। मुझे भी तो कुछ प्लान बना कर चलना पड़ेगा। इसकी शादी का बोझ तो हमेशा बरक़रार ही रहेगा।
आज शबाना से फाइनल बात करो। तुमने बहुत सर पर चढ़ा रखा है। उसी का नतीजा है, ये सब। हमें सिद्दीकी साहब को भी जवाब देना है। एक साल से मैं टाल रहा हूँ। बहुत अच्छा रिश्ता है। हाथ से निकल गया तो हाथ मलते रह जाएंगे। लड़का भी दुबई में है। शान-शौकत से रहेगी मेरी बेटी। रहा पढाई का तो, ग्रेजुएशन तो हो ही गया है। कोई अनपढ़ तो नहीं है।
- हाशमी साहब, सपने साकार करने में और सिर्फ़ शान शौक़त से जीने में बड़ा फ़र्क़ है। मैं ने भी आपके साथ इज़्ज़त, शान-शौक़त की ज़िन्दगी गुज़ारी है। लेकिन एमए बीएड होने के बाद भी, मेरी नौकरी करने की तमन्ना अभी तक अधूरी ही है।
मैं तो कहतीं हूँ, "हो जाने दीजिये उसका एमबीए का सपना पूरा।" सिद्दीक़ी साहब से कुछ दिन और इन्तिज़ार करने को बोलिये। मान जाते हैं तो ठीक है। वर्ना...
वर्ना, क्या?
वर्ना, मैं अपनी बेटी के सपनों का सौदा करने को क़ितई तैयार नहीं हूँ। अभी मैं शबाना से इस बाबत कोई बात नहीं करना चाहती।