Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Drama Inspirational

4  

मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Drama Inspirational

दीदी (कहानी)

दीदी (कहानी)

2 mins
778


बच्चों ने होटल अशोका के लाउंज में बड़ा सा आयोजन किया था, पचासवें जन्मदिन पर। केक काटने के बाद एक अजीब सी बैचेनी थी अनिल को। पत्नी श्रेया इस बेचैनी को भाँप चुकी थी।

"अरे, दीदी का फ़ोन नहीं आया तो क्या? आप ही लगा लीजिये। किसी कारण वश भूल गई होंगी।"अनिल कुछ जवाब देता तब तक तो घंटी बज ही गई ।

'हाँ, दीदी चरण स्पर्श ।"

"सदा सुखी रहो। “जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"

"दीदी, लगता है आज तो आप भूल ही गई। जब तक आपका आशीर्वाद नहीं मिलता जन्मदिन का अहसास ही नहीं होता।"

"मैं कैसे भूल सकतीं हूँ, तुम्हारा जन्म दिन। तुम्हारे जन्म के बाद माँ बीमार रहने लगी। हम पाँच भाई बहनों में, मैं सबसे बड़ी थी और तुम सबसे छोटे। सारे घर के काम काज के बाद तुम्हारी देखभाल और जो थोड़ा बहुत स्कूल का होमवर्क। वह भी हुआ तो हुआ नहीं हुआ तो नहीं। हाँ लेकिन पास ज़रूर होती गई ।"

" हाँ, दीदी मैं ने भी जब से होश संभाला है आपको एक के बाद एक ज़िम्मेदारियों में घिर ही पाया। घर की गरीबी ने तुम्हें दहेज में जीजा जी का भी भरा पूरा परिवार दे दिया था। वहाँ भी तुम बड़ी बहूरानी बन कर गईं थीं। अपने बच्चों की देखभाल के साथ छोटे-छोटे ननद-देवरों भी तो तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ते थे।"

" चल छोड़ अनिल, पुरानी बातों को। पहले के ज़माने में यही सब होता था। ढेर सारे बच्चे और हम औरतें चक्की पीसते-पीसते उसी के पाटों में खुद भी पिसती रहतीं थीं।"

"अब तू भी पचास का हो गया तेरी भी आधी सदी गुज़र गई। तू ने भी तो पढ़ लिखकर घर को संभाला। माँ-बापू की बहुत सेवा की। तेरे भी बच्चे बड़े हो गए।

अब अपने बेटे के लिए झट से बहू ढूंढ ला।"

"हाँ दीदी, यही मैं भी कह रहा था। “श्रेया जैसी , सुनील के लिए भी आप ही ढूंढ दो न।”


Rate this content
Log in

More hindi story from मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Similar hindi story from Drama