शिक्षक आदरणीय हैं
शिक्षक आदरणीय हैं


"संसार के बहु आयामी विकास में "शिक्षकों" की अद्वितीय भूमिका"
शिक्षक दिवस पर विशेष....
*शिक्षकों को खास परम शिक्षक को शिक्षक दिवस पर मेरा खास प्रणाम। शिक्षक केवल पढ़ने और पढ़ाने तक ही सीमित नहीं होते हैं। लेकिन वे गुप्त साधारण रूप से सही, उससे भी बहुत ज्यादा होते हैं और बहुत कुछ विशेष करते हैं। इसलिए शिक्षक हमेशा ही वंदनीय आदरणीय होते हैं। शिक्षक और सदगुरु दोनों में आधारभूत सम्बन्ध होता है। शिक्षक ही जब बौद्धिक और आध्यात्मिक स्थितियातमक रूप से एक ऊंचे स्तर तक पहुंच जाते हैं तो वे ही वास्तव में सही मायने में गुरु सदगुरु कहलाने के अधिकारी बन जाते हैं।
शिक्षा क्या है? किसी विषय विशेष की समझ व अनुभव होना। किसी विषय की जानकारी होना शिक्षा है। किसी विषय विशेष को सीखना समझना शिक्षा है। शिक्षा का उदगम स्रोत कहां है? शिक्षा कहां पैदा होती है आदि आदि इन विषयों पर संक्षिप्त में सार यह है। शिक्षा मनुष्य की बुद्धि में उत्पन्न होती है। बुद्धि ही शिक्षा का स्रोत बिंदु है। परन्तु वह स्रोत ढका हुआ रहता है। जब बुद्धि के आन्तरिक संस्थान में विराजमान उस ज्ञान के स्रोत को मथा (churn) जाता है तो एक प्रकार का आंतरिक संघर्ष पैदा होता है। उस आन्तरिक संघर्षण से ही ज्ञान का जखीरा प्रकट होता है। इसे ही सागर मंथन से अमृत निकलना कहा जाता है। कहने का भावार्थ यह है कि बौद्धिक क्षेत्र से ज्ञान प्रकट कराने के लिए अर्थात आत्मा की सागर जैसी असीम गहराई से ज्ञान के अमृत को प्रगट कराने के लिए देवासुर सागर मंथन की प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसे देवासुर इसलिए कहा गया है क्योंकि जब समर्थ प्रकट होता है उसके साथ व्यर्थ के भी प्रकट होने का अनिवार्य सम्बन्ध है।
जब से मनुष्य में जिज्ञासा वृत्ति और आवश्यकता के भाववेश जागृत हुए तभी से मनुष्य के आन्तरिक जगत में नई समझ और अनुभव के अंकुर फूटने की संभावना बनी। उसकी निरीक्षण करने की क्षमता सक्रिय हुई। उसकी जिज्ञासा वृत्ति और तीक्ष्ण बुद्धि की निरीक्षण की योग्यता जहां पर भी जिस भी विषय पर एकाग्र हुई तो उसे उस विषय की आन्तरिक व्यवस्था समझ में आने लगी। यह हुआ उसका सीखना जो उसने अपनी स्वाभाविक वृत्ति से सीखा था। उसके बाद उसने उसी समझ को व्यवस्थागत तरीके से दूसरों को समझाने का कार्य शुरू किया। उसे हमने नाम दिया "शिक्षा"।
शिक्षा का प्रारम्भिक बिंदु शिक्षा नहीं होता है। शिक्षा का प्रारम्भिक बिंदु जिज्ञासा वृत्ति से किया हुआ चिन्तन मंथन और ऑब्जर्वेशन ही होता है। जब वही चिन्तन अन्यों को समझाया जाता है तो उसे ही शिक्षा कहते हैं। वह समझ ही शिक्षा होती है। शिक्षक का काम होता है किसी विषय विशेष को जानना समझना अनुभव करना और उसे अन्यों को समझाना/सिखाना। शिक्षा के विभाग अनेक हैं। विश्व में अनेक प्रकार की शिक्षाएं हैं। पूरे विश्व में लगभग तीन सौ साठ प्रकार की शिक्षाओं के विभाग प्रभाग हैं। व्यावसायिक आध्यात्मिक वैज्ञानिक तकनीकी सामाजिक आदि अनेक प्रकार की शिक्षाएं हैं। सभी प्रकार की शिक्षाओं का मानव जीवन के बहु आयामी विकास के लिए और जीवन को सुव्यवस्था देने के लिए उपयोग रहा है।
किसी भी विषय का गहन शोधन करने वाला व्यक्ति उस विषय का आदिम शिक्षक होता है। किसी भी विषय के ऐसे आदिम शिक्षक वैज्ञानिक बौद्धिक क्षमता वाले होते हैं। वे आदिम शिक्षक एक प्रकार से ज्ञान स्तम्भ (प्रकाश स्तम्भ) होते है जो मानव जाति को एक नई दिशा दिखाने के निमित्त बनते हैं। जो आदिम गुणवत्ता वाले शिक्षक होते हैं उनमें कुछ असाधारण आन्तरिक योग्यताएं होती हैं। उनमें ऑब्जर्व करने की योग्यता होती है। बहु आयामी दृष्टिकोण से चिन्तन मंथन करने की योग्यता उनमें होती है। उनमें किए हुए विचार मंथन को अपनी भाषा में अभिव्यक्त करने की योग्यता होती है। ऐसी योग्यताएं सब शिक्षकों में नहीं होती। जितने भी ऋषि मुनि दार्शनिक वैज्ञानिक वे आदिम रूप के शिक्षक ही होते हैं। वे शिक्षक उस शिक्षा विशेष की नींव डालने वाले होते हैं। वे अपने विषय विशेष पर गहन मनन मंथन शोध करके पूरे आत्मविश्वास के साथ उस विषय का विस्तार सार की व्याख्या सबके सामने प्रस्तुत करते हैं।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि शिक्षक योग्यताओं के अनुसार नम्बर वार हो सकते हैं। लेकिन वे सभी विकास के एक ही उद्देश्य/लक्ष्य को लेकर काम करते हैं। शिक्षक मनुष्यों की बुद्धि को चिन्तन देते है जिससे मनुष्य की बुद्धि सक्रिय होती है। बौद्धिक सक्रियता में सृजनात्मकता के फूल खिलते हैं। बौद्धिक सृजनात्मकता की गुणवत्ता से ही अनेकानेक आविष्कार होते हैं। बौद्धिक क्षमता जितनी बढ़ती जाती है उतना ही संसार का बौद्घिक विकास होता है। जब यही बुद्धि क्षमता अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचती है तब यह दिव्यता (आध्यात्मिकता) के क्षेत्र में प्रवेश करती है। इस प्रकार बौद्धिक योग्यता के विकास के आधार पर जीवन के नए आयाम प्रगट होते हैं।
शिक्षक मनुष्य जीवन के विकास की आधारभूमि होते हैं। वे इमारत की नींव के उन गुप्त पत्थरों की भांति होते हैं जिनपर पूरी इमारत खड़ी होती है पर वे किसी को दिखाई नहीं देते, उन पर किसी की नजर नहीं जाती। शिक्षक भले ही विकास की दृष्टि से साधारण हों लेकिन समाज संस्कृति और विज्ञान के विकास में शिक्षकों की भूमिका अत्यन्त अनिवार्य, अहम और अद्वितीय है। शिक्षक और रास्ते ये दो ऐसी चीजें हैं जो दूसरों को मंजिल पर पहुंचा देते हैं और खुद वहीं की वहीं बने रहते हैं। इस प्रकार से यदि विकास के क्रम को देखा जाए तो शिक्षकों की अद्वितीय भूमिका है और पूरी मानव जाति पूरे शिक्षक वर्ग की आभारी है। शिक्षकों को मेरे नमन।