विपरीत स्थितियां
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"वैश्विक स्तर पर विपरीत स्थितियों की वास्तविकता"
वर्तमान समय विज्ञान और तकनीकी का युग है। वर्तमान समय ज्ञान कम और सूचनाओं की भरमार ज्यादा लगी हुई है। वर्तमान की स्थिति ही यही है कि मनुष्य के जीवन में विद्या के साथ अविद्या जुड़ी हुई है। इसीलिए इस संसार में तथाकथित ज्ञानियों की कोई कमी नहीं है। ऐसे पोंगा पण्डित जिन्दगी की हकीकत का उनके स्वयं के चिन्तन के हिसाब से अधूरे अंदाज में बयान करते हैं। वे वर्तमान समय कलयुग के चहुंदिश परिदृश्य का कुछ इस तरह नकारात्मक वर्णन करते हैं। वे कहते हैं :-
1. आजकल साधन सुखीलाल बंधुओं की संख्या बढ़ती जा रही है। 2. मनसुख बंधु बहुत कम होते जा रहे हैं, जो भी हैं वे भी गुप्त अंडरग्राउंड हैं। 3. शांतिलाल बंधुओं का तो कहीं पता ही नहीं है। उनकी शांतचित्तता है ही ऐसी। 4. मंगेरीलाल बन्धु हर तरफ विराजमान हैं। वे तो जैसे सर्वव्यापी की तरह ही हैं। 5. देवीलाल बन्धु तो कहीं मिलते ही नहीं हैं। उनका तो एकदम टोटा ही लगा पड़ा है। 6. अपना अपना ज्ञान बांटने वाले ज्ञानचन्द बन्धु हर नुक्कड़ पर नजर आते हैं। वे बड़ी सहजता से उपलब्ध हैं। 7. रास्ता दिखाने को सदा आतुर रायचन्द बन्धु रोड पर टहलते पाए जाते हैं। ये स्थितियां जिन्हें समझ में आ गईं हैं उनका अभिनंदन है। जिन्हें समझ में नहीं आईं हैं उनका और भी ज्यादा अभिनन्दन है।
इस उपरोक्त विषय को इतने साधारण शब्दों में कहने से इस स्थितियात्मक वैश्विक सच्चाई का अर्थ जरा कम समझ में आता है। इतने साधारण शब्दों में इसकी सच्चाई ठीक ठीक समझ में नहीं आती। जिंदगी की वास्तविकता को इस तरह से व्याख्या करने से जिंदगी की सच्चाई का नकारात्मक पहलू ही दिखाई देता है। इसके पॉजिटिव और गूढ़ पहलू भी हैं। इस स्थिति की नियति (ड्रामा) के ढंग से व्याख्या करने से, मनोवैज्ञानिक के ढंग से कहने से इसकी सच्चाई/ वास्तविकता और भी ज्यादा बढ़ जाती है। इसे ठीक ढंग से कहने से वैश्विक सच्चाई की स्पष्टता केवल बढ़ ही नहीं जाती है, अपितु जहां एक ओर इसे समझने में सरलता भी होती है। वहीं दूसरी ओर वर्तमान समय इस प्रकार की विपरीत और अवांछनीय स्थितियां नजर आने से मन में व्यर्थ के, क्या, क्यों कैसे के अनेक सवाल पैदा नहीं होते। कोई आश्चर्य पैदा नहीं होता। कोई चिन्ता या व्यर्थ का चिंतन पैदा नहीं होता। मानसिक स्थिति अचल अडौल रहती है। सब कार्य समझ पूर्वक होते हैं। इसलिए इन वैश्विक स्थितियों की इस तरह व्याख्या करें तो ज्यादा समीचीन होगा.....
"इन पंक्तियों में वर्तमान समय कलयुग के परिदृश्य की जिन वस्तुस्थितियों का वर्णन है वह वर्तमान जीवन की हकीकत है। यह वास्तविकता केवल जीवन की ही वास्तविकता नहीं है, अपितु इस एक वास्तविकता में अनेक वास्तविकताएं अंतर्निहित हैं। इन्हें विस्तार से एक एक करके समझना पड़ेगा। समय के चक्रीय क्रम अनुसार और प्रकृति के बदलते क्रम के अनुसार तथा आत्माओं की मनोवैज्ञानिकता के अनुसार अनादि अविनाशी विश्व ड्रामा के अनुसार अब वर्तमान समय विश्व में मनुष्य आत्माओं की मनोस्थिति ऐसी बन गई हुईं है जैसा कि उपरोक्त में वर्णन हैं।
जीवन द्वंद्व है। जीवन के द्वंद्व होने का अर्थ होता है जब जीवन अस्तित्व में परस्पर दो विपरीत चीजें उपस्थित हों। जीवन में हर स्थिति के बिल्कुल विपरीत स्थिति भी होती है। जीवन की अनादि निर्मिती ही ऐसी हुई है कि इसमें केवल एक प्रकार की स्थिति के ही रहने का कोई उपाय नहीं है। स्थितियां रहेंगी तो दोनों प्रकार की रहेंगी। नहीं तो एक भी नहीं रहेंगी। अनादि ड्रामा के नियमानुसार ये विपरीत स्थितियां प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होंगी ही। इन विपरीत स्थितियों से कोई भी अछूता नहीं रह सकता। विश्व ड्रामा में एक ऐसी भी स्थिति होती है जब अनिवार्य रूपेण सब अनिवार्य साधन पर्याप्त मात्रा में सहज उपलब्ध होते थे। साधनों की उपलब्धि की कोई कसाकसी नहीं थी। कम या ज्यादा की कोई ईर्ष्या द्वेष की मानसिक स्थिति पैदा होने की कोई गुंजाइश ही नहीं होती थी। सब चीजों के उपयोग-उपभोग और परस्पर संबंधों में मनसुख का अनुभव अंतर्निहित था। शान्ति तो जैसे सबके गले के हार की भांति थी। शान्ति से ही उद्भूत साम्राज्य हुआ करता था। शान्ति की आभा सब तरफ बिखरती थी। मंगेरीलाल भी सभी आत्माएं थी लेकिन अलग प्रकार से थीं और अलग अलग प्रकार की थीं। पारस्परिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ कहने सुनने की बात ही ना थी। आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु केवल भाव संप्रेषण ही पर्याप्त होता था। देवीलाल भी सभी हुआ करते थे, लेकिन अलग प्रकार के थे। केवल प्रदान ही प्रदान की स्थिति नहीं हुआ करती थी। परस्पर प्रदान और आदान की स्थिति जिसे हम एनर्जी एक्सचेंज कहते हैं अपने संतुलन में खुशी से हुआ करती थी। सभी आत्माओं की स्थिति योगयुक्त और ज्ञानयुक्त होने के कारण किसी को ज्ञान देने-लेने या किसी से राय लेने-देने की जरूरत ही नहीं हुआ करती थी। इस अर्थ में सभी ज्ञानचन्द और रायचन्द भी हुआ करते थे। ज्ञान और राय की लेन देन जीवन के विशेष अवसरों और विशेष समय पर ही हुआ करती थी।
अब वर्तमान समय अतीत की वह स्थिति जीवन के किसी भी पहलू में नहीं है। इन द्वंदात्मक अथवा विपरीत स्थितियों के बनने में या अनुभव होने में काल, देश और परिस्थिति के अनुसार समय का फासला होता है। इसलिए इन विपरीत स्थितियों का हमें सीधे सीधे एकदम पता नहीं चलता है। इस वैश्विक स्थिति के बनने में किसी का भी दोष नहीं है। एक प्रकार से यदि दोष है भी तो सबका ही दोष है। लेकिन इस अनादि ड्रामा को हम निर्दोष कहते हैं। तो इसमें कोई भी दोषी कैसे हो सकता है। यह अनादि ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है। इस अनादि ड्रामा में सब कुछ (आत्माएं और प्रकृति) की स्थितियों में दृश्य और अदृश्य रूप से उत्थान से पतन और पतन से उत्थान के आरोहण और अवरोहण के श्रृंखलाबद्ध परवर्तनों की प्रक्रिया जारी रहती हैं।
*इन सभी परिवर्तनों के बीच एक विशेष बात हमें समझना है। केवल एक परमपिता परमात्मा ही है जिसकी स्थिति कभी भी इस ड्रामा में ऊपर नीचे नहीं होती है। वह वैसा का वैसा ही बना रहता है। हमें केवल उनको ही याद करना है। उनकी याद से, उनके साथ मन बुद्धि के योग से इन तमाम परिवर्तनों के बीच रहते हुए भी हम इन स्थितियों की व्यर्थता और नकारात्मकता से प्रभावित नहीं होंगे। इसलिए जीवन की हर स्थिति को व्यक्तिगत तौर पर, सामूहिक तौर पर और वैश्विक तौर पर समझ कर मौन ही रहना श्रेयस्कर है। इस प्रकार की किसी भी कैसी भी स्थिति में स्वयं के जीवन में संतुलन बनाए रखिए। जितना हो सके, इन स्थितियों को साक्षी होकर देखते हुए खुश रहिए। अनादि अविनाशी ड्रामा की इन स्थितियों से समझ पूर्वक अनासक्त रहते हुए आत्मा की संपूर्णता तक पहुंचना हम सबका ध्येय होना चाहिए।