Kishan Dutt

Inspirational

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Kishan Dutt

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ज्ञान और प्रज्ञा

ज्ञान और प्रज्ञा

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ज्ञान क्या है? प्रज्ञा क्या है? वास्तव में ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लेकिन फिर भी ये दोनों एक नहीं हैं। इनमें बहुत अंतर होता है। पर श्रेष्ठ मानव की परिकल्पना को अर्थात् जीवन दिव्य बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मनुष्य में इन दोनों का होना अनिवार्य है। जब ज्ञान और प्रज्ञा दोनों ही किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व में कार्य करते हैं तो उसके कार्यों की और उसके आंतरिक जगत में हो रही अनुभूतियों की गुणवत्ता में मूलभूत बदलाव आ जाता है। तब किसी वस्तु या विषय या व्यक्ति या परिस्थिति को वह जो है जैसा है समझने की क्षमता आ जाती है। जब यह क्षमता आ जाती है तो उसके तदनुरूप ही हमारे सब कार्यों में सब प्रकार के उपयोग और प्रयोगों की गुणवत्ता भी सटीक और दीर्घकालीन सुखद परिणाम लाने वाली हो जाती है। सिर्फ ज्ञान (knowledge) या सिर्फ प्रज्ञा (wisdom) ही के होने से ऐसा नहीं हो सकता। नॉलेज और विजडम दोनों के होने से ऐसा होता है। नॉलेज बहु आयामी अध्ययन, चिन्तन, मनन से प्राप्त होती है। जबकि प्रज्ञा (wisdom) अंतर्यात्रा (राजयोग/योग) और आत्म निरीक्षण, वस्तु व व्यक्ति के व्यवहार के निरीक्षण करने से प्राप्त होती है।*

*इसका सारयुक्त अर्थ यह हुआ कि सब्जी समझा जाने वाले टमाटर में भी फल के होने की गुणवत्ता को देख लेने की क्षमता/योग्यता को ज्ञान कहते हैं। जब एक बार टमाटर अपनी गुणवत्ता में फल की श्रेणी में प्रमाणित हो गया हो तो उसे केवल फल की तरह ही उपयोग में नहीं लाना - उसे प्रज्ञा कहा जाता है। यानि कि किसी विषय वस्तु का ज्ञान कहीं ना कहीं किसी एक ही आयाम में देखता है। जबकि प्रज्ञा में किसी विषय वस्तु की बहु आयामी दृष्टा होने की गुणवत्ता होती है। इसका टोटल मतलब यह हुआ कि जो चीज जैसी है उसको देखने समझने तथा उसका उपयोग करने की क्षमता ज्ञान और प्रज्ञा दोनों से आती है। मानव से देवता बनने बनाने वाले दिव्य जीवन के दिव्य कर्म व्यवहार में इससे कम में काम नहीं चलता। इससे कम में जीवन की अवस्था और व्यवस्था का काम चलाने की स्थिति का होना - इससे हम समझ सकते हैं कि हम मनुष्य जीवन की अध्यात्मिक संभावनाओं के किस लेवल तक पहुंचे हैं। जो इस अध्यात्मिक संभावनाओं के लेवल को बढ़ाने के पुरुषार्थ में लगी हुई आत्माएं हैं उनका यह लेवल बढ़ने ही वाला है। यह भी निश्चित ही है। इसमें कोई संशय की बात नहीं है। धीरे धीरे रे मना...धीरे सब कुछ होय...माली सींचे सौ घड़ा; ऋतु आए फल होय। इस संसार में बहुत सी चीजें ऐसी हैं जो मनुष्य के ज्ञान और प्रज्ञा की सीमा से परे रहस्य की तरह घटती है। रहस्यों को समझा नहीं जाता है। रहस्यों को सिर्फ अपनी सेल्फ अवेयरनेस में जिया जाता है। 


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