शिक्षा अधिकारी
शिक्षा अधिकारी
एक बालक जिसका नाम नील था। उसका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जहाँ शिक्षा को व्यर्थ माना जाता था।क्यों की नील के परिवार में सभी अशिक्षित थे।
एक दिन नील अपने दादाजी के साथ खेत पर काम कर रहा था उसको कहीं दूर से आती घंटे की आवाज सुनाई दी।
उसने घंटे की आवाज के बारे में दादाजी से जानने की कोशिश की।
दादाजी ये घंटे की आवाज कहाँ से आ रही है?
दादाजी ने जवाब दिया:- बेटा ये घंटा स्कूल में बजाया जाता है।
नील ने पूछा:- ये स्कूल क्या होता है ?
दादा जी ने कहा:- स्कूल में पावन स्थान है जहां बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैंI स्कूल में बच्चे पड़ते हैं और फ़िर नौकरी पेशा वाले बनते हैं।
नील ने प्रश्न किया:- मैं क्यों नहीं जाता स्कूल ??
दादाजी कहा:- तू स्कूल जायेगा तो खेत का काम कौन करेगा।
नील ने कहा:- फ़िर जो बच्चे स्कूल में अभी उपस्थित हैं उनके खेत का काम कौन कर रहा होगा।
दादा जी ने नील को बताया:- वो बच्चे बहुत होशियार हैं तुम्हारे जैसे नहीं हैं। एक बार शहर से एक शिक्षा अधिकारी आया था। उसने उन बच्चों से प्रश्न किए थे। उन बच्चों ने सही जवाब दिया तो उनको स्कूल भेज दिया।
नील ने कहा:- मुझे बिना मौका दिए आप कैसे कह सकते हो कि मैं होशियार नहीं हूँ। देखना एक दिन मैं भी पढ़ लिखकर शिक्षा अधिकारी बनूंगा।
दादा जी ने कहा:- ठीक है कल स्कूल में तेरा दाखिला करा दूँगा अब काम पर लग जा I
नी ने खुश होकर कहा:- ठीक है कल में भी स्कूल जाऊंगाI फ़िर मैं भी नौकरी करने शहर जाऊंगाI दादाजी तुमको भी साथ लेकर जाऊंगा शहर। आदत डाल लो अब शहरी बोली बोलने की।
हा हा हा हा .........!
दूसरे दिन दादाजी नील को स्कूल लेकर गये और स्कूल के हेड मास्टर से कहकर नील को स्कूल में दाखिला दिलाया।
नील रोज स्कूल जाने लगा और दिन रात पढ़ाई में मेहनत करने लगा। अब नील पड़ने में अब्बल हो गया था।
कक्षा में उसका प्रथम स्थान आता था।
एक वो दिन भी आया जब वह कॉलेज की पढ़ाई करने शहर गया और फ़िर पांच बर्ष बाद शिक्षा अधिकारी बनकर गांव लौटा।
जब वह दादाजी से मिला तो दादाजी की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। दादाजी गांव में सभी को बता रहे थे कि नील पढ़ लिख कर एक शिक्षा अधिकारी बन गया है। अब तो दादाजी नील की काबिलियत की तारीफ करते नहीं थक रहे थे।
नील ने गांव के सभी बच्चों को स्कूल जाने के लिये प्रेरित किया। उसके बाद सभी बच्चे जो मजदूरी करते थे स्कूल जाने लगे।
"इस प्रकार गांव से बाल मजदूरी का अंत हुआ।"
