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Kamini sajal Soni

Abstract

4.1  

Kamini sajal Soni

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शीर्षक - अस्तित्व की रक्षा

शीर्षक - अस्तित्व की रक्षा

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और मैंने तय कर लिया कि क्या करना है...... बस अब बहुत हो चुका वह अब अपनी जिंदगी इस तरह चक्की के दो पाटों के समान नहीं पीस सकती।

बहुत सोचने विचारने के बाद आभा ने तय कर लिया था कि आज वह आर या पार का निर्णय करके ही रहेगी। बस अब बहुत हो चुका उसकी जिंदगी कोई खेल तो नहीं या वह कोई चाबी की गुड़िया तो नहीं है जिसे जो चाहे वैसे चाबी घुमा कर नचाता रहे।

कितने दिन हो गए थे चैन से उसको नींद भी नसीब नहीं हुई थी और ऊपर से रोज की चिक चिक सो अलग तंग आ गई थी वह अपनी इस जिंदगी से।

जब से दूसरी बेटी ने आभा के घर आंगन में किलकारी दी थी तबसे आभा का जीवन नित नई चुनौतियों से भरा हो गया एक तो दो- दो बच्चों की जिम्मेदारी और ऊपर से अस्वस्थ शरीर।

कितनी मुश्किल से आभा डिलीवरी के बाद नॉर्मल हो पाई थी क्योंकि उसका केस थोड़ा बिगड़ गया था ‌।

जैसे ही उसका ऑपरेशन हुआ था उसके बाद आभा को बुखार ने जकड़ लिया 104 डिग्री से नीचे बुखार नहीं हो रहा था डॉक्टर भी दवाई दे दे कर परेशान हो गए। वैसी ही हालत में आभा अपनी छोटी बच्ची को लेकर घर आ गई क्योंकि उस समय बड़ी बिटिया को भी वायरल हो गया था।

खैर जैसे-तैसे आभा की तबीयत में धीरे-धीरे सुधार आया यह सब रिकवरी करते-करते पूरे 2 माह हो गए थे। और अब घर परिवार की पूरी जिम्मेदारी आभा के कंधों पर ही थी। सासू मां ने तो यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि

"कौन सा 10लोगों का काम करना है गिने चुने 4 सदस्य ही तो है परिवार में हमने तो भरे पूरे परिवार का काम किया और बच्चों को भी संभाला।"

अब आभा की जिंदगी एक मशीन से भी बढ़कर हो गई थी पूरा दिन खटर पटर चलती रहती और स्वास्थ्य भी लगातार गिरता जा रहा था एक क्षण भी वह अपने ऊपर ध्यान नहीं दे पा रही थी रात भर बिटिया जगाती और दिन भर काम में खटती रहती फिर भी किसी को दया नहीं आती आभा के ऊपर।

आभा के पति नीलेश का स्वभाव भी दिन प्रतिदिन चिड़चिड़ा होता जा रहा था वह आभा के लिए और असहनीय पल होते थे जब बिना

वजह नीलेश चिड़चिड़ा उठता।

और हो भी क्यों ना चिड़चिड़ा नीलेश की शिकायत हमेशा रहती कि तुम सबका ध्यान रखो लेकिन सबसे पहले अपना ख्याल रखो।

कितनी खूबसूरत हुआ करती थी आभा उसकी गहरी झील सी आंखें समंदर की गहराई लिए हुए। आकर्षक छवि इसी आकर्षक छवि पर तो मर मिटा था नीलेश । पर अब उसी आभा की ज्योति पर जैसे ग्रहण लग गया हो सूख कर कांटा हो गई थी । आंखें दोनों कोटरों में जैसे धंस गई और भरे भरे गाल भी पिचक गए थे अजीब सी सूरत हो रही थी आभा की। इसीलिए नीलेश सदैव उससे कहता कि तुम मां से थोड़ी सी हेल्प लिया करो पर वह क्या बताती निलेश को कि उसकी पीठ पीछे मां कितने ताने मारती हैं।

शायद आभा के संस्कारों में ना था कि वह एक बेटे से उसकी मां की बुराई करें।

अब अगर आभा अपनी सासू मां के हिसाब से काम करती तो नीलेश चिड़चिड़ाता .... और अगर वह नीलेश के कहे मुताबिक काम करने की कोशिश करती तो सासु मां चिक चिक करती।

तंग आ गई थी आभा दोनों से क्योंकि पति का प्यार भी अब उसको भारी लग रहा था ।सच ही तो है जहां परिवार में सहयोग ना मिले और शरीर भी साथ ना दे तो इंसान की मानसिक स्थिति इतनी खराब हो जाती है इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।

और आज अपनी बेटियों का मुख देखते हुए आभा ने दृढ़ निश्चय किया कि वह अब कुछ समय अपने स्वास्थ्य के लिए जरूर निकालेगी और इसके लिए उसको सासू मां से बात करनी ही होगी।

और एक दृढ़ निश्चय के साथ चल पड़ी वह अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए तथा व्यायाम एवं आराम के कुछ क्षण चुराने के लिए अपने अस्तित्व की रक्षा करने हेतु।

अपनी बेटियों को अपने स्वास्थ्य आंचल के तले सुरक्षा कवच प्रदान करके उनकी परवरिश के लिए दृढ़ संकल्पित हो उठी ।

स्त्रियों का जीवन ही ऐसा है कि हमें अपने संघर्ष में अपने स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना होता है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ विचारों का पोषण होता है। और तभी एक स्त्री अपने घर परिवार को अपना संपूर्ण योगदान दे सकती है।


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