Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy Others

4.6  

Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy Others

शब्दों का न मिलना

शब्दों का न मिलना

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आज यूँ ही हमारी बातचीत में मैं किसी शब्द पर अटक सी गयीं।

मैंने कहा, "अरे, उसे क्या कहते है जो....?

किसी ने झट उस शब्द का पर्यायवाची शब्द बता दिया। वह शब्द वहाँ 'सूट' नही हो रहा था। क्योंकि शब्द बस शब्द नही होते उन्हें तो जगह और बातचीत के संदर्भ में समय के संवादों के अनुसार 'फिट' बैठना होता है। मैंने कहा, "नही,ये शब्द नही है। " आगे बढ़कर मैंने कहा,"आज पता नही शब्द कहाँ खो गये है,मिल नही रहे है। "

मुझे मेरी कलीग ने कहा," आप ही तो लिखती रहती है। आप ने ही सारे शब्दों को अपनी कहानियों और कविताओं में उपयोग कर लिया है तो जाहिर है आपने सारे शब्द को खत्म कर दिया है।" और वह हँस पड़ी।

आजतक मैंने काफ़ी कविताएँ और कहानियों को लिखा था। बीइंग लेखिका मुझे लगा इनकी बात में दम है। सही तो कह रही है ये।लेकिन ऐसे कैसे होगा? शब्द ही खत्म हो जायँगे तो क्या होगा? क्या हम इनके बग़ैर रह पाएँगे?

नही, नही,बिल्कुल नहीं ! मुझे शब्दों को खोजना होगा। अगर मेरी भाषा में नही मिलेंगे तो दूसरी भाषा से लेना होगा।   दूसरी लिपि से इस लिपि में लाना होगा।बोलचाल में उन शब्दों को शामिल कर इस शब्द गंगा को अविरल बहने के लिए प्रयास करना होगा।

मैंने अपने दिमाग पर जोर दिया,और मुझे मेरा वह शब्द आखिरकार मिल गया और हमारी बात आगे बढ़ी।

बात को तो आगे बढ़ना होता है, है न ?






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