सदियों का इंतजार
सदियों का इंतजार
विवेक और बीना के रोज
रात का नियम था, दादी से कहानी सुनना । दादी भी रोज रोज कहां से नई कहानी लाती, पुरानी घिसी पिटी भूत प्रेत, परी, जिन्न सबकी तो सुना चुकी थी। पर आज बच्चे अड़े थे, नई कहानी सुनने के लिए।
दादी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कौन सी सुनाऊं इन नटखट बच्चों को।
आनंदी ने कहा मां आप अपनी ही कहानी सुना दो, इन बच्चों को।
बच्चों की आंखें आश्चर्य से फैल गई, दादी की कहानी, और वे दादी को कहानी सुनाने के लिए जोर देने लगे।
बच्चों ये, कुएं वाली आत्मा की कहानी है।
बच्चे बहुत ध्यान से सुनने लगे। आनंदी को भी आज नींद नहीं आ रही थी, बरसों बाद आज सास की आंखों में आंसू देख रही थी।
हरियाणा के एक गांव में तेरे दादा जी का पुश्तैनी घर था। जमींदार परिवार में उनका जन्म हुआ था, दो भाईयों में छोटे थे, तेरे दादा जी।
तुम्हारे दादा जी के बड़े भाई और उनके पिता ने अंग्रेजों की जी हजूरी कर अपनी जमींदारी कायम रखा था।
लेकिन तेरे दादा जी बागी स्वभाव के थे।
दिल्ली में पढ़े, उनमें आजादी का जज्बा कूट कूट कर भरा था।
वो अपने देश के लिए मरने मिटने को तैयार थे। उनका एक और भी पहलू था, वो बहुत कोमल हृदय के थे।
उन्हें गौरी नाम की एक दलित लड़की से प्यार था। आंदोलन और प्यार दोनों में ही उनका सामंजस्य था।
इधर दोनों का प्यार परवान पर था, उधर आजाद हिंद फौज का गठन रास बिहारी, और मोहन सिंह के नेतृत्व में जब टोक्यो में हुआ, तो भारतीय युवा भी उनके विचारधारा से काफी प्रभावित हुए।
नेता जी के आह्वान पर देश के काफी युवा इस फौज में शामिल हो गए। विपिन (दादा जी)भी इसमें जी जान से कूद गए। अब गांव आने का बहुत कम समय मिल पाता।
गौरी उनका सप्ताह, महीनों इंतजार करती। बीच में किसी दिन आते, गांव से बाहर खेतों में ही मिल लिया करते।
अब उन्हें आजाद हिंद फौज में बड़ा ओहदा मिल गया था। उन्हें नीलगंज (पश्चिम बंगाल )जाना था।
उस दिन वो आए थे गौरी से मिलने, और ये कहने की शायद मैं वापस आ न सकूं।
गौरी आज खुशखबरी देने वाली थी।
उसने कहा_विपिन बाबू, आप ऐसा क्यों कह रहे।
आपका अंश मेरी कोख में आ गया है, आप उसके लिए लौटेंगे।
विपिन_सच, मैं लौट कर तुम्हारे साथ सारे समाज के सामने फेरे लूंगा।
गौरी _मैं इंतजार करूंगी।
वैसे अम्मा अगर होती तो मैं अपने और तुम्हारी बातें कह देते।
और फिर यही से शुरू हुआ, गौरी की दुर्दिन की शुरुआत।
दादी (कमला)ने देखा, बच्चे सोने लगे हैं, लेकिन आनंदी (बहु) जागकर चुप चाप से सुन रही थी।
जा बच्चों को उनके कमरे में सुला आ, कमला ने कहा।
आनंदी ने कहा_ यहीं सोने दो ना मां, । वैसे भी आधी रात बीत चुकी है, उन्हें दूसरे कमरे में ले जाऊंगी तो नींद टूट जाएगी।
कमला ने कहा_ पर तू तो जा, अपने कमरे में।
आनंदी ने बड़े प्यार से कहा_न मां, मैं तो पूरी कहानी सुने बिना न जाऊंगी।
कमला ने लंबी सांस छोड़ी।
नीलगंज में आजाद हिंद फौज के सिपाहियों के बीच संघर्ष हुआ, खूनी संघर्ष, जिसे इतिहास में बहुत कम जगह मिली है। 2300 सिपाहियों को अंग्रेजों ने अपनी। मशीनगन से भून डाला।
तेरे ससुर खुशकिस्मती से बच गए थे, उन्हें गिरफ्तार कर अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया, लेकिन पूरे भारत में ये खबर आई की कोई भी जीवित नहीं बचा।
इधर जब गौरी को खबर मिली तो, उसकी तो दुनिया ही उजड़ चुकी थी।
5 माह का गर्भ अब जाहिर हो रहा था। गांव में सभी ने उसे कुलटा, कुलक्षिणी कह कह उसका जीना दूभर कर दिया था।
आखिर वह एक दिन विपिन के घर गई।
बिपिन के पिता और बड़े भाई ने सब बातें सुन, उसको बहुत अपशब्द कहे।
वह पंचायत गई, लेकिन पंच किसके? जमींदार के, वैसे भी दलितों का कोई पुरसाहाल नहीं था।
मां, बाप ने उसे घर से निकाल दिया था।
विपिन का भाई, बीरेंद्र की नियत उसके प्रति सही नहीं थी। पंचायत में अपने घर की इज्जत की बाट लगाने वाली गौरी को वो सबक सिखाए बिना छोड़ना नहीं चाहता था।
वह गौरी को पुराने कुएं वाले घर में ले गया, और कई दिन तक उसे बंधक बना शारीरिक शोषण करता रहा। जब गौरी की हालत बहुत नाजुक हो गई तो, वहीं बगल के सूखे कुएं में धकेल दिया।
मौत भी इतनी जल्दी कहां आती है । कई दिन तक वह चिल्लाती रही, भूख प्यास, दर्द से तड़पती रही, लेकिन कोई मदद को नहीं आया। एक दिन उसने दम तोड़ दिया।
फिर आते जाते लोगों को वह कुएं के आसपास दिखती, और विपिन का पता पूछती।
अपने घर पर तो दुर्भाग्य का कहर टूट पड़ा। मेरे ससुर को लकवा मार गया, और उसके बाद उन्होंने जहर खा लिया। जेठ वीरेंद्र की तो बड़ी भयानक मौत हुई । उनके तो जैसे शरीर को किसी ने कपड़े की तरह निचोड़ निचोड़ तोड़ दिया था। आंखें निकल आई थीं।
इस तरह पूरे गांव में कुएं वाली आत्मा का खौफ छा गया। अब कोई उस कुएं के पास नहीं जाता था।
आजादी मिली, तुम्हारे ससुर जेल से रिहा हुए। पूरे देश में आजादी का उत्सव मनाया गया।
तुम्हारे पिता गांव आए, उन्हें गौरी के बारे में पता चला कि, वो मर चुकी है, और उनका परिवार भी खत्म हो चुका है, ये जान कर वो दिल्ली में जाकर बस गए।
लेकिन किसी ने कुएं और गौरी के बारे में नहीं बताया।
तेरे दादा जी ने आजीवन विवाह न कर, गौरी की याद में शेष जीवन काटने का मन बना लिया था।
लेकिन एक हादसे के रूप में मेरा उनकी जिंदगी में प्रवेश हुआ, हुआ ये कि तुम्हारे ससुर एक दोस्त की शादी में गए थे, वहां पूरा दहेज न मिलने के कारण बारात दूल्हे के पिता ने लौटाने का फैसला किया तो, विपिन ने मेरा हाथ थाम लिया, और मेरी और विपिन की शादी हुई, और 4साल बात विनीत हुआ (तेरा पति)। उन्होंने मुझे सम्मान दिया, पत्नी का दर्जा दिया लेकिन प्रेम तो सिर्फ गौरी के लिए था।
जब विनीत 10 साल का हुआ, तो हमारे घर एक बड़ी पार्टी का आयोजन हुआ, उस समय गांव से घर का नौकर जिसने भी सबके मरने के बाद गांव छोड़ दिया था, उसे कहीं से विपिन के बारे में खबर मिली कि वे जिंदा हैं, तो मिलने आया, उसने सारी बातें बताई, गौरी के उपर ढाए गए जुल्म की।
और कुएं पर गौरी का विपिन के लिए इंतजार।
अब विपिन से एक पल भी रहा नहीं गया।
उन्होंने मुझे सारी बात बताई और गांव निकल गए।
दोनों प्रेमियों का मिलन हुआ। गौरी का इंतजार पूरा हुआ । गौरी और बिपिन कुएं पर कुछ देर बैठे रहे, गौरी ने कहा, अब तुम जाओ विपिन, मेरी आत्मा तृप्त हुई, तुम्हें देख कर, मेरा बरसों का इंतजार पूरा हुआ। तुम्हारा घर है, तुम्हारे बच्चे हैं।
अगले जन्म में हम मिलेंगे ।
लेकिन गौरी _विपिन ने कहा, मैं तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं। अब और इंतजार नहीं, और इतना कहकर विपिन ने भी छलांग लगा दी।
उसी समय दिल्ली में हमने उन्हें और गौरी को एक चमकते सफेद कपड़े में हमें और विनीत को आशीर्वाद देते देखा।
तब से हमारे घर जब भी कोई शुभ कार्य होता है, हम उस कुएं पर उन दोनों का आशीर्वाद लेने अवश्य जाते हैं।

