सच्चा दान
सच्चा दान


इक्कीसवीं शताब्दी मे चीन के बुहान शहर में नोवेला कोरेना वाइरस की एक अजीबोगरीब बीमारी प्रकट हुई। ये एक संक्रामक बीमारी थी। एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के छूने, छींकने,खांसने से फैलता था। ये वाइरस धीरे-धीरे पूरे संसार मे फैल गया। लाखो आदमी इससे संक्रमित हुए। इससे लाखो इंसानों की मृत्यु हो गई थी। इन्ही दिनों भारत देश के भीलवाड़ा जिले में एक सेठ किरोड़ीमल,एक गरीब रोडिमल,एक छोटी लड़की अनन्या जैन रहती थी। यहां के एक निजी अस्पताल बांगड़ से यह बीमारी तेजी से फैलने लगी थी। उन दिनों यहां के कलेक्टर श्री राजेन्द्र भट्ट थे। किरोड़ीमल कोरोना की महामारी में सबकी मदद करते थे।
वो इस प्रकार से एक केला बांटते,उसे व्हाट्सप,फ़ेसबुक,इंस्टाग्राम,ट्विटर पर लगाते थे। पर लोगो के टोकने पर वो धीरे-धीरे सुधरने लगे और उनकी दान की राशि बढ़ने लगी। पर वो ये सब दिखावे के लिये करते थे। समाज में अपने रुतबे,यश के लिये करते थे। रोडिमल एक बहुत गरीब आदमी था। पर वो मन का बहुत अच्छा और ईमानदार आदमी था। सरकार की और से उसे जो भी सेनेटाइजर,साबुन,खाद्य सामग्री मिलती वो इस महामारी में सेवा देने वाले पुलिसकर्मियों में बांट देता था। पर वो कुछ पढ़ा-लिखा भी था।
पुलिसवालों को खाना खिलाने से पहले स्वयं साबुन से हाथ धोता,पुलिसवालो को भी पहले हाथ धुलाता फिर बड़े प्यार से उन्हें खाना खिलाता था। छोटी लड़की अनन्या जैन एक दिन अपने पापा के साथ क्लेक्टर साहब के पास गई और वहां अपनी गुल्लक तोड़ी,उसमें से 8 हज़ार तीन सौ पचास रुपये निकले,उन्हें कलेक्टर साहब को देते हुए कहा,प्लीज कलेक्टर अंकल इन पैसों से जरूरतमंद लोगो की मदद कीजिये।
उस छोटी लड़की को देखकर कलेक्टर राजेन्द्र भट्ट की आंख भर आईं। वो बोले,जहां तेरी जैसी बहादुर,सेवाभावी बेटी हो उस भीलवाड़ा को कुछ हो सकता है,क्या। कलेक्टर साहब के अथक प्रयासों से कुछ ही महीनों में भीलवाड़ा पूरी तरह से कोरोना मुक्त हो गया। कलेक्टर साहब के भीलवाड़ा मॉडल की पूरे भारत मे तारीफ़ हुई। इसी मॉडल को पूरे भारत मे लागू करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को दिया।
कुछ महीनों बाद ये महामारी ख़त्म हो गई। कुछ सालों बाद सेठ किरोड़ीमल,रोडिमल,अनन्या जैन,कलेक्टर श्री राजेन्द्र भट्ट की मृत्यु हो गई। रोडिमल, अनन्या जैन, कलेक्टर राजेन्द्र भट्ट को भगवान के पार्षद गाजेबाजे के साथ लेने आये। सेठ करोड़ीमल को लेने के लिये भी स्वर्ग से इंद्र के दूत आये। वो सब भगवान के पास पहुंचे। भगवान ने रोडिमल, अनन्या जैन,कलेक्टर राजेन्द्र भट्ट के अच्छे काम को देखते हुए 1000 साल तक स्वर्ग में रहने का ईनाम दिया। वहीं किरोड़ीमल को 100 साल तक स्वर्ग में रहने का ईनाम दिया। परन्तु किरोड़ीमल नाख़ुश हुआ। वो भगवान से बोला, प्रभु इनसे ज़्यादा दान तो मैंने दिया पर मेरे साथ ये अन्याय क्यों, इन्हें स्वर्ग में रहने के लिये 1000 साल और मुझे रहने के लिये 100 साल ऐसा क्यों प्रभु?प्रभु बोले बेटा तुम्हारा दान दिखावे का था। जबकि इनका दान निःस्वार्थ था। चाहे पैसे का हो या सेवा का दोनों ही स्थितियों में इनका दान निःस्वार्थ था। दान तो ऐसा होना चाहिए दांये हाथ से दो तो बांये हाथ को पता नही चलना चाहिए। यही सच्चा दान कहलाता है।