शैतान से इंसान बना
शैतान से इंसान बना


मेरा नाम मुन्ना है। मैं जौनपुर में रहता हूं। वर्तमान में, मैं एक नेक दिल और सत्य पर पर चलने वाला इंसान हूं। पर पहले मैं ऐसा नहीं था। पहले मैं एक शैतान था। एक शैतान से अच्छे इंसान बनने के पीछे एक लंबी कहानी है। वो कहानी मैं आपको आज सुनाता हूं।
मैं बचपन से बड़ा नटखट औऱ शैतान बच्चा था। जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया मेरी बदमाशियां भी बढ़ती गई। जब मैं तीसरी कक्षा में था तो मेरे सहपाठियों की दरी के नीचे कांटे रख दिया करता था। जब वो दर्द से उछलते तो मुझे बड़ा मज़ा आता था। एकबार तो मैंने मेरे एक सहपाठी कालू की दरी के नीचे परकार रख दिया था। जब वह बैठा तो उसके वह परकार बुरी तरह से चुभ गया था। वह दर्द से रोने लगा था।
उसके खून निकलने लगा था जो साफ उसकी पेंट के पीछे लाल रंग से दिख रहा था। उस दिन टीचर ने मेरी जमकर पिटाई की। मेरे माता-पिता को बुला कर मेरी शिकायत भी की। पापा ने घर पर मेरी अच्छी खातिरदारी की। पर इतने से में कहां सुधरने वाला था। कुछ दिन शांत रहने के बाद मेरी शैतानियां फिर से शुरू हो गई थी। ऐसा करते-करते मैं चौथी कक्षा में पहुंचा। अब मैने चोरी करना शुरू कर दिया था। अपने सहपाठियों के पेन चुराना मेरी आदत बन चुकी थी।
कक्षा 5 में मेरा ऐसा कोई सहपाठी नही बचा था जो मेरी शिकायत कर अपने माता-पिता को न बुला लाया हो। इस प्रकार स्कूल में ऐसा कोई दिन नही जाता था, जिस दिन मेरी पिटाई नही होती हो।
इतने पर ही नही रुका, अब मैंने घर से भी पैसे चुराना शुरू कर दिया। पापा सुबह जल्दी काम पर निकल जाते। मां जब घर का काम कर रही होती, मैं चुपके से पैसे चुरा लेता था।
मैं इस तरह 2 साल चोरी करता रहा। एक दिन मेरी चोरी पकड़ी गई। हुआ यूं की एकदिन में 100 रुपये का नोट चोरी करके बस स्टैंड पर कुल्फी खाने लगा। मैंने कुल्फ़ीवाले को 100 रुपये का नोट दिया पर बाकी के पैसे लेना उससे भूल गया। वो कुल्फ़ी वाला पापा को जानता था। वो बाकी के पैसे देने घर पर आ गया। उस समय मम्मी ही घर पर थी। मम्मी ने उसे तो कुछ नही कहा, पर मेरी मम्मी ने अच्छी तरह से आरती उतारी। इस घटना के बाद मैंने घर पर तो चोरी करना बंद कर दिया,परन्तु स्कूल में पेन चुराना मेरा जारी रहा। ऐसा करते-करते में बड़ी स्कूल आ गया। वहां पर भी मेरी शैतानियां बदस्तूर जारी रही। कक्षा 9 में हम स्टूल पर बैठते थे। मैं अपने पास बैठने वाले सहपाठी की बैठते वक्त स्टूल खींच लिया करता था। ऐसे में मेरे सहपाठी गिर जाते और मुझे बड़ा आंनद आता था। एकबार ऐसा करने से मेरे एक सहपाठी की कमर चड़क गई थी।
उसने प्रिंसिपल जी को मेरी शिकायत कर दी। उन्होंने मुझे बहुत डांटा और पिटाई भी की। फिर भी मैं नही सुधरा। इस प्रकार में कक्षा 10 में आ गया। पर मेरी शैतानियों में कोई कमी न आई वो दिनप्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। मेरे माता-पिता और गुरुजन मेरे लिये बहुत चिंतित थे। इधर मेरी हरकतों में कोई सुधार नही हो रहा था। एकदिन तो मैंने हद ही कर दी थी। हुआ यूं मेरे सहपाठी मोनू के एकदिन बहुत तेज सिरदर्द था। मैंने उससे मज़ाक करने की सोची।मैंने मेरे बैग में रखी एक्सपायरी डेट की सिरदर्द की गोली उसे दे दी। उसने बिना रैपर देखे वो गोली ले ली और वो रैपर उसके बैग में गिर गया।मगर 15 मिनट बाद मेरी मज़ाक मोनू पर बहुत भारी पड़ी,उसकी जान पर बन आई। वो चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ा औऱ बेहोश हो गया। कक्षाध्यापक कर्ण जी, प्रिंसिपल सर उसे लेकर अस्पताल पहुंचे। मुझे मोनू के घर पर सूचना देने के लिये भेज दिया।कुछ घण्टे में मोनू को होश आया। वह अस्पताल में 10 दिन भर्ती रहा।इस घटना में किसी को मेरी करतूत का पता नही चला। मुझे थोड़ा दुःख तो हुआ पर मेरी आदतों में कोई सुधार नही हुआ।कुछ दिन बाद जब मोनू की तबियत सही हुई तो उसने अपने बैग में पड़ा मेरी दी हुई गोली का रैपर देखा तो उसके होश उड़ गये। उस दिन के बाद वह मुझसे बदला लेने की सोचने लगा परन्तु मुझे उसने इस चीज का अहसास नही होने दिया। वक्त निकलता गया।हम कक्षा 11 में आ गये। मोनू अभी भी मेरा दोस्त बना हुआ था।वह मेरे पास ही बैठता था। एक दिन मेरा जोर से पेटदर्द कर रहा था। मोनू ने पूछा तो मैंने बता दिया यार आज मेरी तबियत सही नही है, मेरा पेट बहुत दर्द कर रहा है। मोनू अपनी योजना अनुसार पहले ही तैयार था
उसने कहा मित्र मेरे पास मेरे बैग में उसकी गोली है, तू उसे ले तेरा पेट जल्दी ठीक हो जायेगा। मोनू ने मेरे साथ वही किया जो मैंने उसके साथ किया। उसने एक्सपायरी डेट वाली गोली मुझे दी। मैंने वो गोली ले ली और उसका रैपर मेरे बैग में गिर गया। कुछ देर बाद मेरा जी मचलाने लगा।पर मुझे उल्टी नही हो रही थी। जैसे-जैसे वक्त निकलता जा रहा था। मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। स्कूल खत्म होते-होते में चक्कर खाकर गिर पड़ा। प्रिंसिपल सर और कक्षाध्यापक मुझे लेकर अस्पताल पहुंचे और मोनू को मेरे घर पर सूचना देने के लिये भेज दिया। मुझे ठीक होने मैं 4 दिन लगे। मैं जब स्कूल जाने के लिये बैग जमाने लगा तो मुझे मोनू की दी हुई गोली का रैपर मिला। मैं समझ गया था, ये करतूत मोनू की है, पर मैं उसे कुछ नही कह सकता था क्योंकि उसने जैसे को तैसा उत्तर दिया था। अगले दिन मैने मोनू से रोते हुए माफी मांगी। उसने मुझे माफ़ कर दिया। फिर मैं दिन में हनुमानजी के मंदिर गया। उस समय मेरे अलावा मंदिर में कोई नही था। अब मेरा मन आत्मग्लानि से भर गया था। मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही थी। मैंने बहुत बुरे काम किये थे वो सब रह-रहकर मुझे याद आ रहे थे। मैं बालाजी के सामने रो रहा था। रोते-रोते ही बालाजी की मेरे आत्मा में आवाज़ आई, बेटा तुझे तेरी गलतियों का अहसास हो गया, तेरे आंसूओं के साथ तेरे पाप भी बह गये है। पर बेटा तुझे प्रायश्चित तो फिर भी करना पड़ेगा। तू आज के बाद ऐसा कोई काम मत करना जिससे किसी का दिल दुखे। तुझे पछतावा है यह काफी नही होगा मुन्ना तुझे अपने सुधार के लिये कठोर कर्म करने पड़ेंगे। आज से तू सच्चाई के पथ पर चलेगा और एक नेक इंसान बनेगा।
वो दिन है,आज का दिन फिर कभी मैंने कोई गलत कार्य नही किया है।
मेरा तो यही कहना है।
ईमानदारी ही सच्चा गहना है।
किसी को गलती का अहसास,
यदि मन से हो जाता है।
वह आदमी फिर से,
गंगा सा पावन हो जाता है।
वही दुनिया में सच्चा पछतावा है।
जिसमें आदमी की आत्मा धूल जाती है।
अपने गलती के अहसास से,
आदमी की रूह पावन हो जाती है।