मुर्दा मर गया
मुर्दा मर गया


काशीपुर मे मीठालाल नाम का एक सेठ रहता था। सेठ के परिवार में वह अकेला ही था, हाँ पास के गांव का एक नोकर जरूर सेठ की दुकान पर काम करता था। वह नोकर प्रतिदिन सुबह दस बजे आता था तथा वह रात को 8 बजे चला जाता था। सेठ अपने नाम के बिल्कुल उलट था। वह बड़ा ही कडुआ बोलता था। वह गरीब आदमियों का बहुत शोषण किया करता था। वह गरीबो के साथ बहुत बेईमानी करता था। दुकान पर कोई सामान लेने आता तो उसे वो कम सामग्री तोल देता। सामग्रियों में मिलावट करके देता।
कोई उसका विरोध भी नहींं करता था क्योंकि गांव में एकमात्र समृद्ध और पैसे वाला आदमी वो ही था। बाकी सब जैसे-तैसे अपना गुजर बसर कर रहे थे। सेठ गरीबों को ब्याज़ के जाल में ऐसा उलझाता की वो आदमी मर जाता तो भी उसके घरवाले उस ब्याज को चुका नहीं पाते थे। ऐसे ही गांव का बुरा समय निकल रहा था। एकबार गांव में एक माने हुए सन्त आये। गरीब किसान उनके पास गये।
उन्होंने मीठालाल सेठ के अत्याचारों के बारे में सन्त को बताया। सन्त ने कहा ठीक है, में उसे समझाने का प्रयास करूंगा। एकदिन गांव में मोहन नाम के किसान की मृत्यु हो जाती है। उसके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही होती है, की अचानक वहां सेठ मीठालाल अपनी पोथी लेकर आ जाता है। वो बोलता है, मोहन का बेटा कौन है। मोहन का बेटा गोपाल बाहर निकल कर आता है।
हाँ बोलिये सेठ जी में मोहन जी का बेटा हूं। सेठ मीठालाल बोलता है, तुम्हारे पिताजी के सूद सहित दस हज़ार रुपये बाकी है, वो तुम्हे दो रुपये सैकड़े के हिसाब से चुकाने है। मोहन के सब रिश्तेदार व गांववालों को सेठ पर बड़ा गुस्सा आता है, अंतिम संस्कार के वक्त भी इस सेठ को कोई दया नहीं आई है, कितना ये नीच है, इसे भगवान ने इंसान कैसे बना दिया। पर सब मन मे ही बोलकर रह जाते है, कोई कुछ बोल नहीं पाता है।
क्योंकि सब ही सेठ के उधार के पैसों से दबे हुए है। इसी क्षण सन्त का उधर से गुजरना हुआ। वो सेठ की बाते सुन लेते है। उन्हें वहां के माहौल को देखकर सेठ पर बड़ा गुस्सा आता है। वो बोलते है, तुम्हे शर्म नहीं आती है, एक जानवर के मरने पर भी लोग अफ़सोस करते है। यहां तो एक इंसान ही मृत्यु हुई है। यहां पर मृतक के परिवार के लोग बड़े दुःखी है, तुम उन्हें सांत्वना देने के बजाय, अपने बकाये पैसे की मांग करने आ गये, तुम तो राक्षस ही हो। सेठ मीठालाल अट्टहास करने लग जाता है। पैसा माँगता हूं, यूँही थोड़ छोड़ दूँगा।
ये नहीं देगा तो इसका बेटा देगा। वो नहीं देगा तो उसका बेटा देगा। वो भी नहीं देगा तो उसका बेटा देगा। पर पैसा जरूर देगा।
सन्त बोलते है नीच इंसान, इसका तो जिस्म ही मरा है। तेरी तो आत्मा ही मर चुकी है। ये मोहन तो एकबार ही मरा है, तू तो लाखों बार मर चुका है। तू एक चलता फिरता मुर्दा है। इसमें जान तो है, पर कोई प्रेम, दयाभाव नहीं है। तू सेठ समय रहते सुधर जा, एकदिन सब इंसान को मरना ही है। आदमी जैसा बोता है वैसा ही पाता है। आदमी का कर्म ही उसके साथ जाता है। तू दान-पुण्य कर, अच्छे परोपकार के काम कर, लोग तुझे तेरे मरने के बाद भी याद करेंगे। सन्त की बातों से सेठ के कानों पर जू तक नहींं रेंगती है।
इस घटना के बाद सब गाँववाले उसे पीछे से मुर्दासेठ कहने लग जाते है। एकदिन सेठ जब गांव से बाहर जाता है। तो सब गाँववाले तय करते है की यदि सेठ के कुछ हो जाता है तो कोई उसकी मदद नहीं करेगा। एकदिन सेठ रात के वक्त दुकान से अपने घर की ओर आ रहा होता है तो वो ठोकर खाकर गिर जाता है।
पास में ही एक नुकीला पत्थर होता है वो सेठ के पेट मे घुस जाता है। रात में उधर से बहुत सारे लोग निकलते है, पर कोई उसकी मदद नहीं करता है। सेठजी का नोकर बाहर के गाँव का होता है। वो सुबह दस बजे दुकान आता है। सेठजी के न मिलने पर उन्हें ढूंढने जाता है तो सेठजी बेहोशी की हालत में रास्ते मे मिलते है। वह उन्हें लेकर अस्पताल जाता है। पर ज़्यादा खून बहने से सेठ मीठालाल की मौत हो जाती है। सब गाँववाले बहुत खुश होते है। सब उत्सव मनाते है। सब गाँववाले एकस्वर में बोलते है, चलो अच्छा है, आज मुर्दा मर गया है।