Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

रोशनी फिर आ गई

रोशनी फिर आ गई

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मेरा नाम कालू है। मैं आज तुम्हे मेरे जीवन में रोशनी फिर से कैसे आई की उसकी कहानी सुनाता हूं। मैं बचपन में बड़ा होशियार तेरा संस्कारी लड़का था, मेरे माता-पिता गरीब किसान थे। मैं मेरे ग़ांव मैं कक्षा 8 तक पढ़ने और अच्छे स्वभाव के मामले पहले नम्बर पर था। सभी ग़ांववाले मुझे बहुत प्यार करते थे। मैं कक्षा 9 मैं पढ़ने के लिये पास के कस्बे मानगढ़ आ गया। मानगढ़ मेरे ग़ांव से 9 किमी दूर था। मैंने वहां पढ़ने के हिसाब से कमरा किराया ले लिया था। शुरू के कुछ महीनों तक मेरी पढ़ाई ठीक चलती रही। परन्तु कुछ महीनों मैं ही मुझे मानगढ़ की हवा लग गई, मैं बुरी संगत मैं पड़ जाता हूं।

सोनू, मोनू, टोनू मेरे प्रिय दोस्त थे, मेरा ज्यादा समय उन्ही के साथ बीतता था। वे पढ़ने मैं तो कमजोर थे, पर इनके माता-पिता बहुत अमीर थे। वो मुझे महंगी-महंगी होटलों मैं साथ ले जाते थे, उनके साथ रहकर मैं भी खुद को बड़ा अमीर समझने लगा था। उनकी सँगति से, मैं अपनी पढ़ाई से दूर होने लगा था।

अंततः नोबत यहाँ तक आ जाती है मैं कक्षा 9 मैं एक विषय में पूरक आ जाता हूं। मैं बड़ा दुःखी होता हूं। उसी स्कूल मैं मेरा ग़ांव के ही एक अध्यापक रजत जी शर्मा भी पढ़ाते है। वो मेरे पापा और मुझे अच्छी तरह से जानते है। जब मैं रुंआसा होकर अपना रिज़ल्ट देख रहा होता हूं, वो उस समय मुझे अपने पास बुलाते है और बोलते है कालू बेटा ये क्या परिणाम है तेरा, तू हमारे ग़ांव की शान था, परन्तु यहां तुझे बुरी संगत ने बिगाड़ दिया है।

अब भी समय है, कालू सुधर जा। तू आवारा लोफर दोस्तो की संगत छोड़ दे, वो तो बहुत पैसे वाले है। वो नहीं भी पढ़ेंगे तो भी उनका भविष्य अच्छा है। तेरा क्या होगा, तू एक गरीब किसान परिवार से है। बुरी संगति से मैं बदतमीजी भी सीख जाता हूं, मैं उन्हें कहता हूं, सर आप अपना काम करे। वो मेरे दोस्त है, आपके नहीं। यदि मैं सही हूं तो उन्हें भी सही करके रहूंगा। मैंने उन्हें सच्चे मन से दोस्त माना है तो अंत तक साथ निभाउंगा।

सर फिर भी मेरे बातों पर गुस्सा नहीं होते है। वो समझ जाते है, इस कालू पर दोस्ती का अंधा चश्मा चढ़ा हुआ है। वो कहते है, कोई बात नहीं बेटा, जैसी तेरी मर्जी। परन्तु मेरी एकबात तो मान ये आम की थैली अपने घर पर ले जा और इसे मुझे परसो वापिस ऐसे ही लौटा देना। उस थैली मैं 10 आम होते है उनमैं एक आम सड़ा हुआ होता है। परसो के दिन में रजत सर को आम की थैली देता है। सर कहते है, इसे खोलकर बता कालू आम पहले जैसे है या नहीं। में कहता हूं, नहीं सर ये पहले जैसे तो नहीं है। ये सारे आम तो सड़ गये है जबकि पहले एक ही आम सड़ा हुआ था।

सर कहते है अब तो समझ गया, मैं तुझे क्या बताना चाह रहा हूं। मैं कहता हूं, नहीं सर मैं आपका मतलब नहीं समझा। सर कहते है, बेटा कालू इन 9 अच्छे आमों मैं एक खराब आम से ये सब भी ख़राब हो गये है, ये सब सँगति का असर है। अब तू अकेला अच्छा आम है, बाकी तेरी सँगति के सब खराब आम है। तू उनको क्या अच्छा बनायेगा, वो तुझे बुरा बना देंगे और उन्होंने ऐसा ही किया। कहाँ तू पूरे ग़ांव का एक होनहार बालक था। और कहां तू अब कक्षा 9 मैं ही पूरक आ गया। अब तेरी जिंदगी तेरे हाथ में है, चाहे तू इसे सँवार या बिगाड़ तेरी मर्जी। मैं सर की बाते सुनकर रो पड़ा। उनके चरणों में गिर पड़ा। सर आपका कोटि-कोटि धन्यवाद जो मुझे आपमें बर्बाद होने से बचा लिया। गलत सँगति से, मेरी आँखों पर पर्दा पड़ गया था, मेरे भीतर की रोशनी खो गई थी। सर आपको जितना प्रणाम करो उतना कम है आपने मेरी खोई हुई रोशनी वापिस लौटा दी है। इस प्रकार मेरी भीतर की रोशनी फिऱ से आ जाती है।


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