Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Inspirational

4.0  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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सामान्य व्यवहार

सामान्य व्यवहार

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सुल्तानपुर में चंचल और निश्छल नाम की दो सगी पतंगे बहनें थी। वो अपने मालिक करतारसिंह की दुकान में सदा ही सजी हुई रहती थी। करतारसिंह उन दोनों पतंगों को अपनी लक्की पतंगे मानता था वो उन्हें कभी नहीं बेचता था। दोनों अपने नाम के अनुसार ही गुणों वाली थी। चंचल बहुत ही चंचल और उतावले स्वभाव की थी। इसके उलट निश्छल साफ मन और सामान्य व्यवहार की थी। एक दिन की बात है, करतारसिंह कहीं बाहर गये हुए थे। वो दुकान अपनी पत्नी के भरोसे छोड़कर गये थे। करतारसिंह के पड़ोस में रोने-धोने की आवाज सुनकर उनकी पत्नी पड़ोसी धर्म निभाने गई, पीछे से दुकान पर अपने 10 वर्षीय लड़के हरप्रीत को बिठाकर गई। हरप्रीत को नहीं पता था की चंचल और निश्छल नाम की पतंगे बेचनी नहीं है। दुर्भाग्य से जोरावरसिंह नाम का एक 18 वर्षीय लड़का उन दोनों पतंगों को खरीदकर अपने घर ले गया। लोहड़ी का त्योहार परसों आनेवाला था। वह इसके लिये दोनों पतंगों को खरीदकर ले गया था। इधर करतारसिंह चंचल और निश्छल नाम की अपनी लक्की पतंगे बिक जाने से पत्नी और बच्चे पर बहुत कुपित हुए। आखिरकार भाग्य का खेल समझकर वो भी चुप हो गये। आख़िरकार लोहड़ी का त्योहार भी आ गया।

सुल्तानपुर में लोहड़ी के दिन पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता होती थी। प्रथम रहनेवाले को एक लाख रुपये इनाम के मिलते थे। जोरावरसिंह अपनी पतंगे चंचल और निश्छल को लेकर निर्धारित स्थल पर आ गया था। चंचल पतंग के चंचल स्वभाव से सबसे पहले जोरावरसिंह ने उसे उड़ाना शुरू किया परन्तु कुछ ऊंचाई पर जाकर कुछ हवा पाकर ही चंचल पतंग मदमस्त होने लगी थी। वो अपने को सबसे ऊपर समझने लगी। परन्तु अनावश्यक चंचल स्वभाव के कारण कुछ देर में ही वो गुलाटियां खाने लगीं और कुछ देर में दूसरे लोगों के पेच लगाने से वो अपने को संभाल न सकी। अंत में जख्मी होकर ज़मीन पर गिरने लगी। चंचल पतंग जोरावरसिंह के पास में ही गिर गई। कुछ पल के लिये जोरावरसिंह हताश हुआ पर अगले ही पल उसकी आँखों में चमक आ गई। वो अपनी दूसरी पतंग निश्छल को लेकर फिर से पतंग उड़ाने लगा। निश्छल पतंग धीरे-धीरे आसमान में उड़ने लगी। अपने सामान्य व्यवहार की वजह से वो गगन में बहुत दूर तक स्थिर होने लगी। अन्य पतंगों के अनावश्यक चंचल स्वभाव की वजह से उससे बहुत दूर होने लगी। करीब एक घण्टे बाद जब प्रतियोगिता समाप्त हुई तो निश्छल पतंग ने पहला स्थान प्राप्त किया। कुछ देर बाद जोरावरसिंह को प्रथम घोषित किया। जब जोरावरसिंह इनाम का एक लाख रुपये मंच से प्राप्त करने गया तो वो अपनी विजेता पतंग निश्छल को मैदान में ही छोड़ गया। निश्छल पतंग के पास ही घायल अवस्था में पड़ी चंचल पतंग, निश्छल पतंग को कहती है, जीत की बधाई हो बहना। निश्छल पतंग कहती है, धन्यवाद बहिन। चंचल पतंग कहती है, हम दोनों एकसाथ पले बढ़े, ताकत में भी समान है, पर आज प्रतियोगिता में, मैं हार गई और तुम जीत गई ऐसा क्यों?

निश्छल पतंग कहती है, हम दोनों रंग-रूप और ताकत में भले समान है परन्तु गुणों में अलग-अलग है। तुम बहुत चंचल स्वभाव की हो, थोड़ी सी हल्दी से पीली हो जाती हो, थोड़ा सा आराम मिलने पर अपने लक्ष्य से भटक जाती हो। जबकि मेरे साथ ऐसा नहीं है। में अपने सामान्य व्यवहार की वजह से विजय हुई हूँ। क्षणिक हवा का आराम देख में लापरवाह नहीं हुई, अपने लक्ष्य से नहीं भटकी। निरन्तर अपना कर्म करती गई। थोड़ी सी ऊंचाई पर जाकर गर्व नहीं किया और अंत अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। चंचल पतंग कहती है, धन्यवाद बहना आगे रही जिंदगी तो में भी सामान्य व्यवहार रखूंगी। ऐसे ही जो व्यक्ति सामान्य व्यवहार रखते है। वो अपने लक्ष्य को निश्चय ही प्राप्त करते है। जो व्यक्ति चंचल मन के होते है, क्षणिक सफलता को इतराते है, वो कभी हिमालय की ऊंचाई प्राप्त नही कर पाते है।


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