Mridula Mishra

Tragedy

5.0  

Mridula Mishra

Tragedy

साथी

साथी

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अपने अंदर की ज्वाला मुखी को रिद्धी ने अंततः निकाल ही दिया शादी को कोई पैंतालीस साल हो रहे थे क्या यह उम्र थी शक करने की ? तीन बच्चों की मां थी और छः बच्चों की दादी ,नानी फिर भी पति का यह सवाल शादी से ही पीछा करता आ रहा था और आज तो दिनेश ने हद ही पार कर दी, दिनेश के कुछ मित्र आये हुए थे सब आपसी गपशप में मग्न थे तभी दिनेश ने कहा "मित्रों ! उम्र के इस पड़ाव पर भी मेरी बीbr का आशिक है। यह अब तक उसी से प्रेम करती है। बस आज वह भी फट पड़ी सहने कि भी एक हद होती है। हां स्वीकारती हूं कि वह मेरा साथी था पाँच साल की उम्र से तेरह साल की उम्र तक वह मेरा परम प्रिय साथी था।

हम दोनों खूब मार -पीट करते थे एक-दूसरे के साथ खूब गुथमगुथा होते थे लोगों द्वारा हटाये जाते थे पर आधा घंटा बीता नहीं कि फिर हम दोस्त बन जाते थे लेकिन अचानक पंद्रहवें‌ साल से वह बिल्कुल बदल सा गया गुम सा रहने लगा। किसी को कुछ बताता भी नहीं था।

मैंने भी हर तरह से जानने की कोशिश कि पर वह तो जैसे कसम खाये बैठा था एक बार मैंने अपनी कसम देकर उससे पूछा, मुझे सब बताओ उसने रोते हुए कहा रिद्धू (मुझे प्यार से रिद्धू ही बोलता था)न जाने मुझे क्या हो रहा है ऐसा लगता है कि मेरे अंदर किसी लड़की का प्रेत प्रवेश कर गया है मुझे लड़के बहुत अच्छे लगने लगे हैं तुम मुझे एक दोस्त लगती हो पर मुझे लगता है कोई लड़का मुझे खूब प्यार करता किसी लड़के को देखकर मैं रोमांचित हो जाता हूं जबकि खुद लड़का हूं तुम्ही बताओ अपनी तकलीफ़ किससे कहूं ? किसी भी तरह शांति नहीं मिलती।

मैं हंसने लगी और कहा तुम शादी किसी लड़के से कर लेना लेकिन उसकी तरफ देखा तो सन्न रह गयी शायद उसे मेरे हंसने की उम्मीद नहीं थी वह काफी गुस्से में था बहुत हाथ -पैर जोड़कर मैंने उसे मनाया।

गर्मी की छुट्टियां हो गयी थी वह भी अपने गांव गया था और मैं भी छुट्टियां समाप्त होने पर हम गांव से आ गये पता चला उसकी शादी हो गई थी और उन लोगों ने अपना मकान भी बदल लिया था। हमारा मिलना-जुलना भी कम हो गया था बोर्ड की परीक्षाएं सर पर थीं। परीक्षा ख़त्म होने के बाद मैं उसके मकान पर पहुंची वह कहीं बाहर गया था। मैं उसकी बीबी से बात करने लगी तभी मेरा चचेरा भाई जो मेरे साथ गया था चिल्लाने लगा दीदी बचाओ, दीदी बचाओ। सब उधर दौड़ पड़े जो देखा वह अवाक करने के लिए काफी था दिनेश मेरे भाई को दबोचे हुए उसे प्यार कर रहा था। मैंने दौड़कर अपने भाई को उसके चंगुल से निकाला और पागल कहीं का कहते हुए घर आ गयी 

उसी शाम दिनेश ने आत्महत्या करली अपनी नई नवेली बीवी का भी ख्याल उसे नहीं आया।

और इनके दोस्तों की तरफ मुखातिब होकर बोली उसके जान देने का कारण था उसका समलिंगी होना था।

करीब पंद्रह दिनों के बाद उसकी पत्नी ने एक बंद लिफाफा मुझे दिया और कहा कि--उनकी अंतिम चिट्ठी है बिस्तर के नीचे मिली इसपर आपका नाम है तो देने चली आयी। मैंने चिट्ठी ले ली और एकांत में जाकर पढ़ा उसमें लिखा था --रिद्धू तुमने मुझसे कहा था कि किसी लड़के से शादी कर लो बिल्कुल सही कहा था अपनी इस बिमारी को मैंने गांव में पकड़ा था जब अपने ममेरे भाई पर मोहित हो गया था और फिर मेरी शादी हो गई मैंने मां को कहा भी मां मेरी शादी रोहित भैया से करा दो सब हंसने लगे बाबूजी को लगता था कि तुम मुझे बर्बाद कर दोगी इसी डर से उन्होंने मेरी शादी कर दी पत्नी को भी यह बात पता चल गयी वह खूब रोई लेकिन क्या कर सकती थी तुमने मुझे पागल कहा क्योंकि मेरी हरकत ही ऐसी थी मेरे मां-बाप और खानदान की बदनामी होगी यही सोचकर मर जाना बेहतर समझा।

एक काम सोंपे जा रहा हूं मेरे मां-बाप को मेरी हकीकत बयां कर देना और रुचि मेरी पत्नी की शादी अच्छे घर में करा देनासब उसे ही मेरी मौत का कारण मानते हैं जबकि वह बिल्कुल निर्दोष हैमेरा इतना काम करोगी ना रिद्धू ?

और बस उसकी अंतिम इच्छा मैंने पूरी कीऔर तभी से इनके कोप का शिकार हूंअब आप सब ही बतायें कोई गलती की मैंने ?

अब सब पतिदेव को धिक्कारने लगे। पति को पता ही नहीं चला कि चंद्रमुखी ज्वालामुखी भी बन सकती है और वह अलग हो गयी थी शक के नियमित दंश से।


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