साझीदार day-14
साझीदार day-14
वीर और वीरांगनाओं की धरती राजस्थान की बेटी नमिता की शादी बुद्धिजीवियों और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख स्थल बंगाल के बेटे विश्वजीत से हो रही थी। लहँगा-ओढ़नी में नमिता बहुत ही प्यारी लग रही थी, वहीं शेरवानी पहने विश्वजीत भी खूब जँच रहा था। नमिता के माता -पिता की इच्छा का मान रखते हुए, शादी नमिता के रीति रिवाज़ों के अनुसार दिन में हो रही थी। रिसेप्शन रात को रखा गया था। रिसेप्शन के लिए नमिता ने बनारसी साड़ी बंगाली स्टाइल से पहनी थी। हाथों में शाखा-चूड़ी पहने नमिता बहुत अच्छी लग रही थी। रिसेप्शन के बाद नमिता की विदाई हो गयी थी।
"अंतर्जातीय विवाह की एक खूबसूरती यह भी है कि, आपको एक दूसरे समुदाय के रीति-रिवाज़, खान -पान मतलब एक पूरी नयी सभ्यता और संस्कृति को जानने का मौका मिलता है। " ऐसा सोचकर ही स्त्री-पुरुष समानता और अपने आत्मसम्मान को महत्व देने वाली नमिता ने अपने नए परिवार में पहला कदम रखा। शादी में जिस तरीके से विश्वजीत के मम्मी -पापा और दूसरे रिश्तेदारों ने नमिता के घरवालों के रीति-रिवाजों को माना और उनके अनुसार शादी की रस्में की तथा सभी प्रबंधों की तारीफ की, उससे नमिता बहुत ही खुश थी। नहीं तो लड़के वाले कोई न कोई नुस्ख ही निकालते रहते हैं।
पति विश्वजीत के साथ नमिता ससुराल की सभी रस्मों का आनंद ले रही थी। रस्मों के जरिये परिवार के सदस्यों के साथ सहज होने का प्रयास कर रही थी। रस्में शायद बनायीं भी इसलिए जाती है ताकि, उनके जरिये दूल्हा और दुल्हन दोनों अपने भावी परिवारों को अच्छे से जान सकें।
आज ही नमिता की बोउ भात और भात कपोर की रस्म भी थी। उत्तर भारत में बहू की पहली रसोई, कड़छी छुआई जैसी ही बंगाल में बोउ भात की रस्म होती है।
नमिता की सास और अन्य रिश्तेदारों ने पूरा खाना तैयार कर लिया था। नमिता शाकाहारी थी, इसीलिए मछली आदि नहीं पकाई गयी थी। रस्म के तौर पर नमिता को बस खाना परोसने के लिए कहा गया। नमिता खाना बनाना जानती थी, लेकिन इतने सारे लोगों के लिए नहीं बना सकती थी। हमेशा से पढ़ने -लिखने में, फिर ऑफिस के कामकाज में व्यस्त रहने के कारण घर के कामकाज का नमिता को भी उतना ही अभ्यास था, जितना विश्वजीत को।
नमिता के लिए भात कपोर की एक अलग रस्म थी, उसने पहले इसके बारे में कभी नहीं सुना था। उसने विश्वजीत से कई बार पूछा भी कि, "भात का अर्थ तो चावल है और कपोर कपड़ा तो यार क्या चावल कपड़े पर सुखाने होंगे या कपड़े से चावल साफ़ करने होंगे।"
लेकिन अपनी अधिकांश पढ़ाई घर से बाहर रहकर करने वाले विश्वजीत को भी रस्म के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था। विश्वजीत ने इतना ही कहा कि, "देखो, क्या रस्म है। थोड़ी देर में तो पता चल ही जाएगा। "
थोड़ी देर में नमिता की सास एक थाल में लाल रंग की सुन्दर सी साड़ी रखकर लायी। नमिता को पता चला कि यह जामदानी साड़ी नमी के लिए है और विश्वजीत यह साड़ी उसे गिफ्ट करेगा। नमिता यह सोचकर अभिभूत थी कि, "शादी के बाद पति से पहला तोहफा वह भी सबके सामने मिलेगा। नमिता के अपने घर में पापा अगर कभी सिर्फ मम्मी के लिए कुछ लेकर आ जाते थे तो, दादी और बुआ बवाल मचा देते थे। इसलिए हमेशा घर में पहले दादी और बुआ के लिए कुछ आता था और फिर जाके कहीं मम्मी का नंबर आता था।"
नमिता की सास ने वह थाल विश्वजीत को पकड़ाते हुए कहा कि, "तुम यह थाल नमिता को दो और ऐसा कहो कि आज से उसके खाने और कपड़े की जिम्मेदारी तुम उठाओगे। वह अपने पत्नी के कर्तव्यों को पूरा करेगी। "
नमिता को यह शब्द अपने कान में पिघले शीशे से महसूस हुए। यह रस्म तो स्त्रियों को पुरुष की साथी के रूप में नहीं बल्कि दासी के रूप में देखती है। नमिता तो एक आत्मनिर्भर लड़की थी जो अपनी ही नहीं बल्कि विश्वजीत के खाने और कपड़े की जिम्मेदारी भी निभा सकती थी। यह तो समानता नहीं बल्कि अधीनता की बात थी। रोटी और कपड़े के बदले स्त्री को अंतहीन कर्तव्यों का पालन बिना कुछ कहे निष्ठा के साथ करना है, इस रस्म का तो सीधा सा मतलब यही था।
विश्वजीत के इन शब्दों ने नमिता को अपने विचारों की दुनिया से बाहर निकाला, "नमिता, आज से हम दोनों एक दूसरे को अपने सपने पूरा करने में सहयोग करेंगे। मैं तुमसे वादा करता हूँ कि हमेशा तुम्हारे विचारों, तुम्हारी स्वतंत्रता, तुम्हारे व्यक्तित्व का सम्मान करूंगा। हम दोनों इस रिश्ते को ईमानदारी, वफादारी, सम्मान और प्यार के साथ निभाएंगे। "
नमिता, विश्वजीत के शब्दों और एक अपमानपूर्ण, स्त्री विरोधी परंपरा को नया रूप देने से अत्यंत अभिभूत थी। नमिता ने भी विश्वजीत की बात को स्वीकृति देते हुए कहा, "हाँ विश्वजीत, बिलकुल, हम सही मायने में साझीदार बनेंगे। "
विश्वजीत ने हक्के -बक्के खड़े अन्य रिश्तेदारों और अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा, "समय और परिस्थिति के अनुसार परम्पराओं में परिवर्तन आवश्यक है। पुरानी परंपरा को नयी सोच का जामा पहनाना जरूरी है, नहीं तो परम्परा अपनी प्रासंगिकता खो देगी। "
"हमने ऐसा क्यों नहीं सोचा ? तुमने एकदम सही कहा बेटा।" नमिता की सास ने कहा।