अंजु लता सिंह

Abstract

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अंजु लता सिंह

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साड़ियां

साड़ियां

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रसोई में काम करती हुई सोना गुनगुनाते हुए खाना पकाने में जुटी हुई थी। तेज हवा के झोंके के साथ ही तीखी मिर्चों की धसक जैसे ही हमारे बैडरूम की खिड़की से अंदर आई, कि इन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया

यार!तुमसे कितनी दफा कहा है, कि मत डलवाया करो लाल मिर्चें सब्जियों में, किसी के कान पर जूं ही नहीं रेंगती।

कई बार समझाया है, सुनती नहीं है।

ढेर सारा खाना बनाती है, रोज बचता है, लेकर भी जाती है, मजे आ रहे हैं उसके तो। एक तुम हो कि बातें बनवा लो बस।

हे राम!क्यों सिर पे उठा रखा है सारा घर। बहू बेटे भी सुनते हैं। । बस भी करो।

पापा जी!मैंने ही मंगवाया था साबुत लाल मिर्च का पैकेट।

बहू हिना अचानक कमरे में आकर धीरे से बोली।

पर बेटा आप तो मिर्च बिल्कुल नहीं खाती हो।

अरे तो कुछ और भी तो काम आ सकती है ना।

तुम जरूर काटना मेरी बात।

ओफ्फो! अरे नजर उतारता है बेटा बहू की।

नए नए चोंचले। हुंह। । कहते हुए वर्मा जी ने बागवानी की ओर रूख किया।

 कल मैंने ढेर सारे पहनने लायक कपड़े, चादर, तकिये के गिलाफ, पैन, पेंसिलें, कापी, रजिस्टर वगैरह निकाले हैं। सोना दो चार तू अपने बेटे को दे देना, कुछ सूट, साड़ी रख लेना और बाकी पिछली गली के सब्जीवालों, ऑटो चालकों और प्रेस वाले के परिवारों में दे आना। कुछ बर्तन भी हैं वो भी।

आंटी!मैं तो साड़ी पहनती नहीं। सामने वाली पंडिताइन को सभी साड़ियां दे आऊं।वो सबसे मांगती भी रहती हैं। पुण्य मिलेगा हमें।

नही बिल्कुल नहीं।

ओहो देने दो न।

अरे आपको कुछ पता नहीं।

हुआ क्याआखिर?

पिछले दिनों मैंने देखा, कि दो साड़ियों के बदले स्टील की बड़ी टंकी लेने पर, बेचने वाले उस बेचारे गरीब आदमी से इस औरत ने खूब झगड़ा किया, झड़प की, तब जाकर सौदा हुआ, पहले तो वह भी तीन साड़ी लेने पर अड़ा रहा था। जैसे ही वह आगे बढ़ा, एक युवा भिखारिन अर्धनग्न सी, जगह जगह फटी हुई, गंदी, पैबंद लगी हुई धोती से बदन को भरसक ढकने का प्रयास करती हुई भीख का कटोरा लिये हुए चली आ रही थी।तपाक से उस बर्तन वाले ने गठरी से निकाल कर चमचमाती हुई वो दोनों नई साड़ियां उस बेबस भिखारिन को दे दी थीं। साड़ी भी वही थी, जो मैंने 

बेटे के ब्याह पर उपहार में दी थीं उसे।

और फिर ये तो रखी हुई साड़ियां हैं।जो खुद पहने प्यार और सम्मान से बस उसको ही देना चाहिये।  

आंटी मैं तो सब सूट आपके ही पहनती हूँ। सब अच्छे भी होते हैं।

आप बहुत अच्छी हो ।पिछली बार जब मैं सामने वाली आंटी के घर दीवाली की मिठाई देने गई थी, तो उनकी बेटी ने बोलातुम लिपिस्टिक लगाकर मत रहा करो। घरेलू सेविका हो। मुहल्ले में लोग देखेंगे तो बातें बनाएंगे।

आप तो मुझे महकदार साबुन, शैंपू, चूड़ी, बिंदी सब देती हो आंटी।

तो तू मेरी बेटी ही तो है।ऐसी बातों पर ध्यान मत दिया कर।

मुस्कुराती हुई सोना कपड़ों का गट्ठर लादे सीढ़ियां उतरने लगी।


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