इमरजेंसी
इमरजेंसी
शीनू ने रोज की तरह आज फिर राहुल का पर्स खोलकर देखाउसकी और बच्चों की फोटो,सांई बाबा की ओरिजनल फोटो,आई कार्ड,लाइसेंस, हनुमान चालीसा सब अपनी अपनी जगह ठुंसे हुए थे,पर जो ढूंढ रही थी चाहिये था वही नदारद था । उससे रहा नहीं गया। आखिरकार उसने पूछ ही लिया
सुनो जी ! तंख्वाह तो मिल गई होगी ?
हुअं। हाँ परसों ही मिल गई थी इस बार। दिवाली पर एक्स्ट्रा भी मिला है।
तो फिर ?महीने के सामान का खर्चा देना भूल गए मुझे ?
तुम लिस्ट बना लो। कल मंगाते हैं सब। इत्मीनान से। अब क्रैडिटकार्ड से ऑनलाइन ही मंगाया करेंगे। पेपर में काफी विज्ञापन आए हैं। बचत होती है सो अलग। रविवार भी है कल।
'ऐसा जवाब तो कभी सुना नहीं पति के मुंह से'
कैसे बचाऊंगी अब पैसे,चोरी से कभी कभार एकाध नोट बचा लेना और खर्चे में गिनवा देना उसकी आदत सी बन चुकी थी।
वह बेचैन होकर रसोई में ही स्टूल पर धम्म से बैठकर सोचने लगी।
ये क्रेडिटकार्ड का चलन,नोटबंदी,ऑनलाइन शॉपिंग,पे टी एम जैसे चोंचले तो हम घरेलू औरतों के लिये बस बेकार ही हैं। हुंह।
अरे ! हम महिलाएं बचाकर रखती हैं रूपए पैसे,तो इमरजेंसी में काम ही आते हैं न।
शीनू ! गांव चलना होगा आज ही। अभी। ओह !क्या करूँ ?मां सीढ़ियों से गिर गईं हैं। पैरों में सूजन बहुत है। वैसे सब ठीक है। फ्रैक्चर तो नहीं है।
चलो ! किसी फिजियोथैरेपिस्ट को कंसल्ट करेंगे। रोज घर आकर थैरेपी करेगी ,तभी ठीक होंगी मां।
यहीं ले आएंगे जी उन्हें।
नहीं यार !वो दिल्ली के पोल्यूशन से घबराते हैं, तैयार नहीं हैं आने को।
पूछा है मैंने।
मेरी जेब में तो दो ही नोट हैं बड़े। खुले तो हैं ही नहीं। वहाँ गांव में भी तो देने होंगे।
लो ! ये सौ, पचास, बीस और दस के नोट कुल मिलाकर पच्चीस हजार रूपये हैं। आप चिंता मत करो। मैंने बचाकर रखे थे इमरजेंसी के लिये।
थैंक्स शीनू ! तुमने वक्त पर साथ दिया।
अब कल से मैं ए टी एम से कुछ रकम निकालकर तुम्हें खर्चे के लिये देता रहूंगा।
शीनू ने मुस्कुराकर सिर हिलाया और अपनी जीत पर फूली नहीं समाई।