मुखौटे

मुखौटे

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जीतू पेंटर की दुकान पर आज बड़ी गहमा-गहमी थी। हो भी क्यों ना आखिर। वही तो इस छोटे से कस्बे नंदगांव का सबसे नेकदिल ,पढ़ा- लिखा, व्यवहारकुशल और सुदर्शन युवा दुकानदार था, जिसने अपने अपाहिज बाबा के पास रहकर ही शहर जाकर बड़ी पढ़ाई पूरी की, वजीफा पाया और दो छोटी बहनों सहित माँ बाबा का इकलौता समझदार सपूत बनकर कस्बे में ही मुखौटे, बैनर, सजावटी झालरें जैसी चीजें बनाकर बेचने लगा। क्रिकेट का शौक था ही बचपन से सो कस्बे के खिलंदड़ बढ़िया खिलाड़ियों का क्लब भी बना डाला। तरह तरह की उपयोगी योजनाएं बनाना, फिर उन्हें क्रियान्वित करना कोई जीतू से जाकर सीखे।


अरे जीतू बबुआ! जे इतनी भीड़ काहे है तोहरी दुकान मा आज?

कल किरकिट मैच हुई रहब काका ! दोनों पार्टी तगड़ी रहब। 

ज़ोरदार मुकाबला हुई है। खिलाड़ियों को बूस्ट करना पड़ी तो जे सबरा सामान बहुत काम आवेगा। उसी की ख़ातिर हम 

बस जे नए डिजाइन के मुखौटे और बैनर बनाए रहे।

सबई बिक गए हाथों हाथ। ।

पड़ोस में ही रोज़ मोमोज का ठेला लगाने वाले छन्नू काका से जीतू बोला। 

आ रे तब तो कल कोई ना मिलिहै पारक के पास हमका। जे सब तो मैच देखन मा लग जइहैं।

घर की ओर अपना ठेला खींचता हुआ बुद्धिराम कुछ उदासीन होकर बोला। 

अरे काका! कल सबेरे हम सब खिलाड़ियों का सहर ले जाएंगे। मुखौटा पहन के उधर काफी लोग, बच्चा, लेडीज प्रदर्शन करेंगे तो हमरा देश के खिलाड़ी उत्साहित होके जबरदस्त खेलब। हमरी जीत हुइ है तो पइसा मिलब सबका।

और जो हार गए तो?

तो नाही।

खिलता तिरंगी कमल, पीला, संतरी ,सफेद सा उगता तिरंगी सूरज, तिरंगी उड़ती तितली, झंडेनुमा साफा और सरताज बनी पगड़ियां सब जीतने का, आगे बढ़ने का और पुरस्कार पाने का इशारा करत हैं काका। कहते हैं ना। नर हो ना निराश करो मन को। जे सब जब हमाए बनाए राष्ट्र भक

के मुखौटे लगात हैं तो प्रशंसक भीड़ जमा कर लेता हैं। खिलाड़ी के पाँव में बिजली दौड़ जात है।

काका ने जीतू के सिर पर हाथ रखकर देश की टीम को विजय पाने का असीस दिया और काउंटर पर सजी तिरंगी पगड़ी अपने सिर पर फिट करके

बोले-"जय हिन्द"।

               


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