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डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'

Comedy

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डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'

Comedy

हम किसी से कम नहीं

हम किसी से कम नहीं

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गीता ने मुंडेर पर रखे दोनों कटोरों पर नजर डाली और फिर पुनः उनमें पानी भरकर रसोई से कुछ रोटियों के टुकड़े, भीगी दाल के दाने बिखेरकर उत्साहित सी हो बरामदे में पड़ी कुर्सी पर ही बैठ गई।

कबूतरों का समूह भी त्वरित गति से गुटरगूं करता हुआ आ पहुंचा।

उधर कलरव करती हुई मैना और कौए भी कांव कांव करते हुए खानेपीने आ गए थे।

प्रफुल्लित सी होकर वीडियो बनाते हुए वह देव से बोली-

देव !चलो । आज मिट्टी की बड़ीबड़ी दो तीन परांतें खरीद लाते हैं।

ज्यादा दाना पानी रखूंगी कल से। अब पाखी भी ज्यादा आते हैं ना जी !

हु ऊं ऊं। देखते हैं। अखबार पर आंखें गड़ाए गड़ाए ही देव बोले।

बारबार पानी भरना पड़ता है इन छोटे छोटे कटोरों में।

ठीक है भई। सुन तो लिया है। ले आएंगे, पर सोच लो अगर वो मोटे वाले बंदर आ गए तो सब बर्बाद कर देंगे। मैं ला देता हूं। तुम्हारी सोच अच्छी है। कद्र करता हूँ तुम्हारे प्रकृतिप्रेम की।सकारात्मक सोचती हो।बढ़िया बात है।

तभी अचानक काॅलोनी में ठेली पर माटी के भांडे ही बिकने आ गए और आनन फानन में ही ढेर सारे बर्तन खरीदकर गीता आश्वस्त हो गई थी। शाम को धड़ाम धड़ाम की कर्कश आवाजों ने ड्राइंग रूम में बैठे अतिथियों सहित देव और गीता को भी बाहर निकलने हेतु विवश कर दिया था।

लो देख लो तुम्हारे बजरंग बली जी ने तोड़ डालीं तीनों बड़ी माटी की परांतें। अब पिला लो इन्हें जल, खिला लो फल।

अरे चलो । कोई बात नहीं। क्या करूँ फिर मैं ?

ये ठहरे नादान जीव जंतु पाखी सब। हम तो समझदार हैं जी !

जय हनुमंत। वीर बलवान

सारा जग ले तेरा नाम।

हाथ जोड़े जैसे ही गीता ने तुलसी में जल देने का उपक्रम किया, त्यों ही उसके हाथ में पकड़ी पूजा की थाल पर झपट्टा मार सारे लड्डू मुट्ठियों में दबाए उसकी चुनरी छीनकर पड़ोसी की छत की मुंडेर पर भोग खाते हुए वही बंदर खीं खीं करके गीता को मानो चुनौती दे रहा था।

"हम किसी से कम नहीं"

'जय बजरंग बली' वाक्य दुहराते हुए गीता आंगन में काठ की पुरानी परांत में पानी भरकर कपीश को पीने का संकेत करते हुए जान पड़ रही थी।

इसी को कहते हैं जी 'आ बैल मुझे मार 'पति देव ताली बजाते हुए कह रहे थे।


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