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डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'

Children Stories

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डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'

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"माॅडर्न मां"

"माॅडर्न मां"

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जबसे पिताजी (ससुर जी) गुजरे हैं मां (सासु मां ) बड़ी अकेली,उदास और एकांतप्रिय सी होती जा रही थीं।

अचानक मेरी अविवाहित, बातून,चंचल और बिंदास सहेली सोनी छुट्टी लेकर यहाँ आ धमकी।

मां तो बहुत खुश रहने लगी थीं अब। मुझे भी कुछ राहत मिल जाती।

सुबह शाम नजदीकी पार्क में अपने साथ उन्हें घुमाती,गप्पें मारती और उनसे दुनिया जहान की,गांव,खेत,खलिहान की बातें करती।

-कितनी मस्त है ये...

एक हम हैं सुबह से शाम तक चकरघिन्नी बने फिरते हैं...व्यस्त ध्वस्त है जिंदगी।

मां की अजीबोगरीब फरमाइशें होने लगीं। कभी सोने की चैन,कभी भारी कंगन,कभी बजने वाली पायल तो कभी चमकीली भारी साड़ी पहनने की इच्छा जाहिर करती और पूरा होने तक पीछा नहीं छोड़तीं।

एक बार तो हद ही कर दी मां ने।

बोलीं-अरी मेरी माया!जरा सुनियो बेट्टा! वो पाजामे से चले हैं ना आजकल..दो तीन सिलवा दे..सब पहरे फिरे हैं पारक में ।

जेब भी लगवइये दोनों तरफ।

सहेली के जाने पर दिल बड़ा टूटा था मां का।

उसके जाने के बाद वे बोलीं-आदमी भी गुलाम बनाए रखे है लुगाई कू..

अपनी जिंदगी तो जी न पाती वा। चौधरी जी ने कभी दीवार पै सै भी न झांकन दिया हमें तोबेट्टा . ऐसा रौब था उनका...अरी रौब क्या आतंक ही समझो।

-आज तो मक्का की रोटी अर साग बनवा ले कामवाली पै.जी कर रिया है।

-पर मां! मना है आपको...इलाज चल रहा है ना आपका!

-कुछ न होवै।

तेरी सहेली कहे करै थी-मांजी!सब खाओ,जो जी करै...ज...अरी बड़ी बढ़िया छोरी है।

-छोरी...मैंने अचंभे से कहा

-ब्याह ना करा,तो छोरी हुई न?

-चलो ठीक है...बनवाती हूं।

- अरी आ जा..माया की मदर इन लाॅ...देर हो रई है प्रोग्राम भी तो है म्हारा।

-ढोलक ले आऊ?

-वो तो हैई जरूरी...

आनन फानन में मां बाॅय करके बैग में ढोलक रखे सहेलियों के साथ जाने किधर चल दी थीं।

-कैसे जाओगी मां?

-सहेली की गाड़ी हैगी...चिंता न करियो बेट्टा रात सू पहलै आ लूंगी।

बाॅय...बाॅय करते हुए उन्हें मैं विस्फारित नेत्रों से मैं देखे जा रही थी।

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