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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy Others

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Dr Jogender Singh(jogi)

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रँगीन जाल

रँगीन जाल

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आँगन के उस छोर पर सजी क्यारी में गेंदे के फूल महक रहे थे। जीवनी की टाँगो पर कुछ गाँठे निकल आयी। शुरू शुरू में दर्द नहीं होता था। पर गाँठे बड़ी हो कर फूटने लगी तो घाव दर्द करने लगे। घर की ख़स्ता हालत किसी से छुपी नहीं थी। 

ख़ुरपी लिये कान्ता क्यारी की गुड़ाई कर रही है, फूलों के बीच पसीने की बूँदों से सजा फूल सा चेहरा। बार बार माथे को पोंछ रही है, माथे पर लगी मिट्टी ने उस के रूप को और भी निखार दिया।

कान्ता पानी दे दे बेटा, जीवनी ने आवाज़ लगाई। 

कान्ता ने गिलास में पानी लिया, लो माँ ! जीवनी को सहारा दे कर उसका सिर ऊपर उठाया। पानी की एक लकीर होंठों के किनारे से बाहर गिर रही थी। जीवनी की क़िस्मत की तरह, गिलास ख़ाली हो गया। पुराने सिकुड़े तकिये को बड़े जतन से सिर के नीचे लगाया। ठीक हो जाओगी माँ ! दवा खाती रहो।

दर्द की लकीर जीवनी के होंठों को टेड़ा कर गयी। हाँ बेटा ठीक हो जाऊँगी। मंजीत जी आने वाले हैं, शायद कुछ मदद मिल जाये, जीवनी ने सोचते हुये गहरी साँस ली। शायद, न आयें ? कितना मरते थे मुझ पर ज़रूर आयेंगे। वो मुझे कभी भूल ही नहीं सकते, आयेंगे ज़रूर आयेंगे। जीवनी मानो ख़ुद को दिलासा दे रही है।

क्या सोच रही हो माँ ? अच्छा बताओ तुम मुझ से ज़्यादा सुन्दर थी, जवानी में। 

तू तो परी है। इतनी सुन्दर मैं कभी नहीं थी। जीवनी ने दर्द को दबाते हुए बोला।

रहने दो माँ। मैंने देखी है तुम्हारी एल्बम। कितनी सुन्दर दिखती थी तुम, अभी भी कितनी सुन्दर हो। 

आह। जीवनी के होंठों से दर्द फूट गया। घाव का दर्द, परायेपन का दर्द, अपनों को छूट जाने का दर्द। 

दर्द हो रहा है माँ ? 

नहीं बेटा। तू जा रोटी बना ले। 

किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो, आवाज़ दे देना। कान्ता रसोई में चली गयी।

एक छोटी मकड़ी ने सामने के कोने में जाला बना लिया। जीवनी घर को एकदम चमका कर रखती थी। अब क्या कर सकती हूँ ? कान्ता अकेली क्या / क्या करे ? तभी जाला हिला, एक छोटा सा कीड़ा जाले में फँस गया। मकड़ी दौड़ कर कीड़े के पास पहुँच गयी। थोड़ी देर में सारी हलचल ख़त्म हो गयी। कीड़ा मकड़ी का निवाला बन गया। परिस्थियों के जाले ने जीवनी को कीड़े की तरह जकड़ लिया। मेरी फड़फड़ाहट भी ख़त्म होने वाली है। जीवनी पर बेहोशी सी छाने लगी। कान्ता के बापू मकड़ा बन गए , एक बड़ा सा मकड़ा, जिसके भयानक जबड़े दूर से नज़र आ रहे थे। अपनी बड़ी / बड़ी आठ टाँगो से जीवनी के पास आ गये। जीवनी तड़पती रही, पर मकड़ा तो खून की आख़िरी बूँद तक चूस लेना चाहता था। जीवनी किसी तरह से उस जाले को तोड़ कर भागी। वो मकड़ा उसका पीछा कर रहा है। जीवनी छोटी सी कान्ता को गोद में लिए अनजान शहर में आ गयी। 

उसकी सुन्दर काया के लिए तमाम छोटे / बड़े मकड़ों ने भिन्न / भिन्न सुन्दर जाले बना दिए। पर जीवनी अब जालों पर चलना सीख चुकी थी। वो खुद को टुकड़ों में बेच कर, ज़िंदा थी। कान्ता को उसने इस सब से दूर रखा था, हॉस्टल में। फिर यह टाँग में गाँठे निकल आयी। सारे जाले, सारे मकड़े ग़ायब हो गए। जिन टाँगो के सब दीवाने थे, अब उन्हीं टाँगों को कोई भी मकड़ा नहीं देखना चाहता था। 

माँ। मंजीत अंकल आए हैं। कान्ता ने आवाज़ दी। 

क्या हाल हो गया जीवनी ? मुझे कल ही पता चला।

कान्ता बेटा। जा चाय बना ला। जीवनी ने धीरे से बोला।

कान्ता के जाने के बाद, जीवनी ने मंजीत को बताया कैंसर है, फैल गया है। एक आप ही हो, जो अब भी आए हैं मिलने। जीवनी का गला रुंध गया।

तुम्हारा इलाज अच्छे अस्पताल में करायेंगे, चिंता मत करो। मंजीत ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।

मैं नहीं बचूँगी अब। न अब जीने की इच्छा है, न शरीर में दम। बस कान्ता की चिन्ता है, आप उसका ख़याल रखोगे ना ? 

 कान्ता की चिन्ता तुम मत करो। मंजीत के चेहरे पर चालाकी वाली मुस्कुराहट आ गयी।

जीवनी पर बेहोशी छाने लगी, मंजीत का चालाक लोमड़ी की तरह मुस्कुराना उसने देख लिया था। नीम बेहोशी में जीवनी को मंजीत एक जाल बुनता दिखा, एक मकड़े का जाल, और कान्ता कीड़ा बन उस जाल में फड़फड़ा रही है, उलझती जा रही है। जीवनी को चारों तरफ़ अलग / अलग साइज़ के जाले दिखाई पड़ रहे थे। उन जालों पर बैठे मकड़े अलग / अलग रूप धर कान्ताओं और जीवनियों का खून चूस रहे थे। अलग / अलग रंग के शरीफ़ मकड़े। रंगीन जालों का बाज़ार लगाए मकड़े। परोपकारी, जनसेवक मकड़े, खून चूसकर मुस्कुराते मकड़े।


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