रक्त पिपासु वैम्पायर लव (भाग-12)
रक्त पिपासु वैम्पायर लव (भाग-12)
_ खट.... खट ....खट.... खट...।
वाहर से किसी नें पुलिस इंस्पेक्टर घोषाल के कमरे का गेट ज़ोर ज़ोर से खटखटाया।
कौंन है इतनीं रात में गेट पर ?।
जी साहब जी, मैं हूँ एक गरीब परिवार की लड़की।
वाहर से किसी लड़की की कोमल कण्ठ से निकली मधुर आवाज़ इंस्पेक्टर घोषाल के कानों में पड़ी,और अगलें पल वह विद्युत गति से पलँग से जम्प लगाता हुआ अतिशीघ्र दरवाजे को खोलकर वाहर निकल आया।
उसनें देखा, उसकें सामनें एक गौरवर्णीय युवती खड़ीं हुई थी, उसकी चोली नुमा ब्लाउज अधिकांशतः जगह जगह से फटकर चीथड़ा में बदल चुका था, जिसके कारण उसके दोनों भारी भारी स्तन झाँकतें हुए हर किसी को निमंत्रण दे रहे हों।अगलें पल घोषाल उसके कोमल आकर्षण से भरे अंगों को झाँकनें लगा। कुछ पलों तक इंसपेक्टर घोषाल की दृष्टि उन नाजुक उन्मत्त सुमेरुओं पर अटक कर रह गई, जब उस अज्ञात लड़की को इंसपेक्टर घोषाल की नज़रों का पता चला तो वह अपनें उन बड़े बड़े पर्वताकार अंगों को अपनें हाथों से ढाँपने का असफ़ल प्रयास रत होगई पर वह उन्हें छिपानें में असफ़ल रही।
ए लड़की दिखनें दे अभी पूरी तरह, मैं अभी इन्क्वायरी कर रहा हूँ, मुझें भलीभाँति समझने तो दे कि पूरी कहांनी क्या और कहाँ से शुरु हुई और कहाँ पर जाकर ख़त्म हुई अथवा नहीं हुई है।
इंस्पेक्टर घोषाल उसकें बड़े बड़े स्तनों और नाभि मण्डल को घूरता हुआ उसके नाभि के नीचें के माँशल अंगों को दृष्टिपात करता हुआ कड़कदार पुलिसिया आवाज़ में दहाड़ा।
ज्ज्ज्ज्ज्जी सस्सस्साहब कुक्कक कुछ गुण्डे........।
वह कँपकँपाती हुई हिम्मत जुटाकर बोली।
हाँ हाँ आगें बोल....मैं सुन भी रहा हूँ और देख भी रहा हूँ।
इंस्पेक्टर घोषाल उसके उमड़ते उफ़नते बेसुममार उद्दाम यौवन को घूरता हुआ बोला।
साहब मुझें अंदर आने दो, बो... बो ...गुण्डे मुझें यहाँ आगयें तो फिर से मुझें यहाँ से जबर्दस्ती पकड़कर ना ले जाएँ।
तुम इस बात से निश्चिन्त रहो, अब तुम पुलिस की सुरक्षा में हो....., हाँ, तो साले गुंडों की यह मज़ाल ! जो तुम्हें यहाँ से उठा लेजाएँ, अब तुम यहाँ आराम से मेरे साथ इस विस्तर पर पूरी रात बिता सकती हो, ।
इंस्पेक्टर घोषाल अपनें बैड की ओर इशारा करता हुआ बोला।
पर साहब आप एक ओर हटेंगें तो ही मैं अंदर आ सकती हूँ।
हाँ हाँ लो हट गया।
इंस्पेक्टर घोषाल फुर्ती से हटा और वह सुन्दरी फुर्ती से उसके कमरें में दाख़िल हो पुनः दरवाज़ा बन्द कर चुकी थी। इंस्पेक्टर घोषाल अपनें वाररूम से दो पैग व्हिस्की के बनाकर ले आया और एक पैग बढ़ाता हुआ उसके हाथ में देता हुआ बोला।
लो पियो जानेमन इसे पीतें ही तुम्हारा सारा डर निकल जायेगा और अब निडर होकर अभी अपनें साथ घटी घटना का पूरी तरह सिलसिले बार ज़िक्र करो।
इंस्पेक्टर घोषाल दरवाजे से एक ओर हटता हुआ उस नाज़ नींन के नाज़ुक अंगों को घूरता हुआ बोला।
सस्सस्साहब मुझें रास्तें में कुछ गुंडों नें मेरे साथ मारपीट की, वह मेरी इज्ज़त लूट नें की कोशिश कर रहे थे कि मैं उन्हें झाँसा देकर भाग आई हूँ, साहब जी मुझे डर है कि वह मुझें पुनः यहाँ से पकड़कर ना लेजाएँ।
अच्छा, तो हमारा डर उन गुंडों को नहीं है, यही कहना चाहतीं हो क्यों ठीक है ना।
ननन नहीं साहब ये बात नहीं।
फिर क्या बात है ?
साहब बो वहुत हैं.....और आप अकेलें।
चल पहिलें यह डर दूरकरनें की दवा पी और मुझें आगें की बात सुनाती भी जा।
साहब सुना है कि इसे पीकर नशा होजाता है।
वह एमदम भोले पन से बोली।
अरे नशा नहीं बल्कि इन्शान के अंदर हौशला नया पैदा होजाता है, तुम्हें मेंरी बात पर अभी विश्वाश नहीं है, लो पियों और अपना तजुर्बा बताओ।
घोषाल नें सामनें रखा पैग उठाकर उस सुन्दरी के हसीं होंठों से लगाया, और वह लड़की किसी पियक्कड़ की भाँति होंठों से लगतें ही गटगट करती हुई पी चुकी थी, और अब किसी प्यासी की तरह पुनः उस जाम को देखनें लगी जो इंस्पेक्टर घोषाल नें अपनें लिए बनाया था।
साहब जी एक और चाँहिये।
हाँ हाँ ये तो है लेलो और मज़े लो।
घोषाल उसकी ओर वह पैग बढ़ाता हुआ बोला।
इसतरह पैग बनतें गए और गले के नीचें उतर ते गए, अंत में वह सुन्दरी घोषाल से बोली साहब आपनें हमारी वहुत सुरक्षा की है, बताओ मैं आपकी क्या सेवा करूँ।
कुछ नहीं यार अब तू अपने इस फ़टे हुए परिधान को उतारने के बाद मेरे पास आजाओ।
जी साहब जैसी आपकी मर्जी।
कहती हुई वह सुन्दरी अपनें ऊपरी वस्त्र को उतारकर एकदम अपना ऊपरी वक्ष को निर्वस्त्र कर चुकी थी।
उसके हा हा कारी स्तनों नें इंसपेक्टर घोषाल के अंदर वासना की एक अनोखी प्यास जगा दी और फिर दोनों वासना के सागर में डूवनें उतराने लगे, इंस्पेक्टर घोषाल उसके साथ अभी सहवास की मुद्रा में लेटा हुआ था अपनीं दोनों आँखें बंद किए तभी उसकी गर्दन की नस में चुभन हुई वह हल्की पीड़ा को सहता हुआ उस सुन्दरी के तन से खेलता रहा और इसी स्थिति में उसके प्राण पखेरू उड गये, वह सुन्दरी उस से अलग होकर अपनें वस्त्रों को पलक झपकते ही बदल चुकी थी।.............शेषांश आगे।


