प्रेंम पथिक
प्रेंम पथिक
प्रेम की एक उम्र हैं।
दिल नहीं मानता,
भला, जिसने रस चखा।
वह दीवाना सा हो गया,
न चाह ,न चिन्ता कोई है।
बस एक नशा सा आया है,
और खो गए मदहोशियों में।
कोई क्या समझें ?
समझें तो क्या हो?
जो राही है इस प्रेम पथ के,
वह कभी रुका नहीं करते।
राहें आसां नहीं फिर भी,
फिर भी गिर गिर के चलेंगे।

