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H.K. Joshi Joshi

Romance Classics Inspirational

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H.K. Joshi Joshi

Romance Classics Inspirational

वृद्ध मन की पीर (भाग-1)

वृद्ध मन की पीर (भाग-1)

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(मन की शङ्का)

 अजी सुनतें हो जी।

लक्ष्मी देवी जो मास्टर साहब की धर्मपत्नी थीं नें अपनें पति रमाकांत को वाहर जातें हुए टोका।

हाँ बोलों लक्ष्मी क्या कहना चांहती हो।

जी बात यह है कि, देखों अव जमाना वहुत बदल चुका है।

लक्ष्मी भविष्य की बात की भूमिका बनाती हुई बोली।

लक्ष्मी जल्दी कहो ,मुझें सुंदरआश्रम पर जाना है।

मास्टरसाहब शीघ्रता में बोलें।

देखों जी वहाँ जाना भी जरूरी है, तो घर की समस्याओं पर भी विचारकरना भी जरूरी है।

लक्ष्मी देबी कुछ रुष्ट होती हुई बोलीं।

अच्छा भाई हम लोग आज आश्रम से वापिस लौट आने पर बात करें ?

 अपनें पति के आश्वाशन पर लक्ष्मी देबी मौन हो गईं, और रमाकांत अपनी साइकिल से आश्रम की ओर चलेगये।

और जब रमाकांत जी आश्रम से सत्संग सुनकर बापिस आए तो उनकी पत्नी नें उन्हें एक बार पुनः वही राग अलापा।

अजी सुनतें हो जी, अब हमारी दोनों बेटियां शादी योग्य होचुकीं हैं जी।

तुम भी लक्ष्मी पुरानी दुनियाँ में रहती हो, अरे भई ,आज हमारी सरकार नें लड़कियों की शादी की उम्र 21वर्ष कर दी है, और तुम हो कि अभी से दोनों के लिए चिंतित हो।

रमाकांत अपनी पत्नी को समझातें हुए बोलें।

पर आज का जमाना आपको नहीं पता है जी कि कितना बदल चुका है,देखों जी, शशिप्रभा तो इक्कीस की बीत गई है,और अब वह घर पर ही अपनी नौकरी की तैयारी कर रही है, क्यों ना हम दोनों की शादी एक साथ कर दें।

नही, लक्ष्मी यह उचित नहीं, अभी हमारी चन्द्रा पढरही है,और छोटी भी है,।

तो फिर शशि की शादी के लिए कोई सुयोग्य वर ढूंढिए जी।

हाँ तुम कहती हो तो कोशिश कर ता हूँ, बरना मेरीं इच्छा है कि हमारीं शशि किसी नौकरी पर लगजाये तो शादी करूँ।

देखों जी लड़कियाँ हमेशा पराई अमानत होतीं हैं, अतः हमारा फर्ज़ है कि हम जिसकी अमानत उसको भलीभाँति सौंप दें, आगें उनकी मर्जी वह चांहें तो नौकरी कराएं अथवा नहीं।

लक्ष्मी तुम भी अजीब हो ,भाई कमसे कम यह तो सोचों आज हमारी सरकार महिलाओं का स्तर ऊँचा उठानें और उसे स्वयँ अपनें पैरों पर आत्मनिर्भर बनाने की वहुत कोशिशें कर रही है।

 देखोंजी यह सब सरकार जानें, पर मैं तो बस इतना चांहतीं हूँ की हमारीं समाज में पूरी तरह इज्जत बनी रहें।

ठीक है मैं कल अपने एक मित्र से शशि के रिश्ते के मामलें में मिलनें जाऊंगा।

ठीक है जी, पर अपनी छोटी चन्द्रा को भी अब घर बुला लो।

 वो क्यों भई ?

रमाकांत अपनी पत्नी को रुष्ट होकर देखतें बोलें।

देखों जी कुछ भी सही, पर यह समझलों कि वाहर लड़की अकेली रहें मुझें अच्छा नहीं लगता।

लक्ष्मी जी तुम कौन से जमाने में जी रही हो , आज इंसान चाँद की पूरी ख़बर लेचुका है, लड़कियाँ खुद हरेक क्षेत्र में आगे बढचढकर भाग लें रहीं हैं, और तुम हो कि बस वही एक राग अलापती हो, अरे भाई उन्हें भी अपनीं मर्जी से खुलकर श्वांश लेनें दो।

रमाकांत नें अपनी पत्नी को समझाया।

देखों जी , स्त्री कभी स्वतंत्र नहीं रह सकती है।

क्यों नहीं रह सकती ?

इसलिए कि वह इस सँसार में अवला, और आश्रिता है पुरुषों की।

अरे भई मैं इसी लिए तो अपनीं दोनों पुत्रियों को पढा लिखाकर योग्य बनाना चाँहता हूँ।

और शारीरिक दृष्टि से ?

लक्ष्मी नें अपनें पति की ओर व्यंग से देखा।

शारिरिक और मानसिक रूप से पुष्ट और सटीक निर्णय लेने में सक्षम।

ठीक है पर उसके जन्मजात गुणों और शारीरिक विषमता को क्या बदल पाओगे।

ठीक है लक्ष्मी पर वह आत्मनिर्भर तो बन सकती है।

हाँ पर उसकी छुद्र हृदय दुर्बलता ही तो उसकी कोमलता की भावनाएँ ही तो उसे पतन की राह में ले जाती है।

लक्ष्मी नें नया वास्तविक तर्क दिया।

वह कैसे ?

रमाकांत नें आश्चर्य से पूँछा।

एसे कि कोई नवयुवती किसी पुरुष के प्रेंम जाल में आसानी से उस पर विश्वास कर अक्सर फंस कर अपना जीवन तवाह कर लेती है।

लेकिन...... लेकिन..... सभी पुरुष ......धोखेबाज तो .....नहीं हैं..... लक्ष्मी।

रमाकांत अपनी पत्नी के तर्कपूर्ण प्रश्नों में उलझ चुकें थे।

हाँ यह आपका उत्तर संतोषप्रद है, और हमारीं संस्कृति की ओर सङ्केत भी करता है।

लक्ष्मी ने सहजता से बोला।

मैं समझा नहीं ,इसमें हमारीं संस्कृति और सनातनी परम्परा की बात कहाँ और कैसे आगई।

रमाकांत विचारपूर्ण मुद्रा में बोलें।

देखों जी, हमारें पूर्वजों नें चार आश्रम बनाएं ,और उनका पालन करनें का कड़ाई से आदेश भी दिया, ताकि हमारें समाज में असन्तुलन और व्यभिचार ना हो, हम सभी आत्मसैयम, गृहस्थधर्म, और वानप्रस्थ का पालनकरतें हुए 

अपना लौकिक और पारलौकिक जीवन सफल बना सकें।

वह सब तो ठीक है पर देबी, लक्ष्मी मैं तो अपनीं बेटियों को इस लाइक बनाना चाँहता हूँ कि वह कभी सङ्कट में घबड़ाएं नहीं,बल्कि उसका सामना पूरी तरह करसकें।

मैं भी तो यही चांहती हूँ,कि वह अपनें पति के साथ कन्धे से कंधा मिलाकर जीवन के पथ पर स्वाभिमान से चल सकें।

मास्टरसाहब निरुत्तर होकर रह गए, अब लक्ष्मी की बात मान नें के अलावा उन्हें कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखाई दिया अतः वह निश्चय कर चुके थे............

क्रमशः


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