वृद्ध मन की पीर
वृद्ध मन की पीर
_____________________________________________________________________________________आह.....आ""ह....ई ईईई..... मैं मऱ गई।"
दर्द से बिलबिलाते हुए नियती सिंह जोर से चिल्लाई।
"क्या बात है दीदी?"
प्रियम्वदा ने किचिन से निकलकर अपनीं वहिंन नियतीसिंह को देखा ,जो अब तक रूम में अपनें विस्तर पर लेटी हुई दर्द से चिल्ला रही थी, जब कि वह और चन्द्रप्रभा जल्दी से फ्रेश होकर कॉलेज चलनें की तैयारी में लगी हुई थी, चूँकि आज का नाश्ता और खाना प्रियम्वदा को बनाना था ।
इसलिय प्रियम्वदा कॉलेज जाने के लिए सुवह का नाश्ता तीनों के लिए बनारही थी,।
प्रिया लगता है कि," मैं आज कॉलिज नहीं जा पाऊँगी।"
"दीदी आप मुहल्ला क्लिनिक से दवा ले लीजियेगा ?"
"क्या हुआ नियती दीदी आपको ?"
वॉशरूम से चन्द्रप्रभा निकल कर नियतीसिंह के नजदीक आ कर बोली।
छोटी दीदी बड़ी दीदी को वहुत तेज दर्द होरहा है।
प्रियम्वदा नें चिंतित स्वर में चन्द्रप्रभा को बताया।
चलों दीदी हम आपको दवा दिलवाने मुहल्ला क्लिनिक ले चलें।
नहीं वहिंन तुम दोनों चिंतित ना हो, मैं आज कॉलिज नहीं जाऊँगी, तुम दोनों कॉलिज मिस ना करो।
लेकिन दीदी हम आपकों यहाँ अकेला छोड़कर कैसें जासकतें हैं।
दोनों एक साथ बोलीं।
तुम दोनों कॉलिज जाओ, मैं थोड़ी देर में दवा लेनें चली जाऊँगी।
और फिर वह दोनों कॉलिज चली गई।
नियती सिंह कमरे पर ही रह गई थी, प्रियंवदा अनमने मन से अपनी रूम पार्टनर चन्द्रप्रभा के साथ कॉलिज चली गई पर उसका मन वहाँ कॉलिज में नहीं लगा, वह तीन पीरियड्स अटेंड कर वापिस अपनें रूम पर अकेली चली आई, अभी वह आगे बढ़कर डोरबैल बजाना ही चाहती थी कि उसकी नज़र अचानक दरवाजे पर गई ,पर यह क्या ? दरवाज़ा तो पहिले से ही अदखुला था, अतः प्रियम्वदा यह सोचकर कि दीदी की तबीयत ठीक नहीं है, शायद दरवाज़ा खुला रह गया हो।
अभी वह यह सोचकर अंदर कमरे की ओर बड़ी तभी अचानक उसे अपनें कमरें से नियति सिंह की तेज आवाज सुनाई दी, जो किसी से कह रही थी।
" नवल मैं तुम्हारे बच्चें की माँ बनने बाली हूँ, अगर तुमने मुझ से शादी नहीं कि तो मैं अपने पापा को मुहँ दिखानें लायक नहीं रहूंगी "।
रिलैक्स नियति डार्लिंग रिलैक्स।
अंदर से किसी पुरुष की भारी आवाज सुनाई दी।
प्रियंवदा अचानक दरवाजे पर उत्सुकताबस उनकी वार्ता सुन ने को ठिठक गई ।
तुम्हारे रिलैक्स कहनें मात्र से , मैं रिलैक्स नहीं होजाऊँगी नवल।
यह आवाज़ नियति सिंह की थी।
देखो नियति यह सब तो हम जैसे नवजवानों में चलता ही रहता है, इसमें घबढानें की कोई नई बात नहीं है , हम कल होम क्लीनिक चलेंगें और तुम्हें वहाँ से दवा भी दिलबा कर इस समस्या से छुटकारा दिलबा देंगे।
फिर वही मर्दाना स्वर उसे सुनाई दिया।
मैं रोज रोज वहानें बना कर अपनी छोटी वहिन और अपनी सहेली को धोखा नहीं दे सकती।
यह नियतीसिंह की पतली आवाज थी।
अरे यार तुम से कौन कहता है? कि तुम उन को धोखा दो ।फिर वही किसी लड़के की मोटी मर्दानी आबाज प्रियंवदा के कानों में गूँजी।
पहिले मुझसे शादी कर लो, उसके बाद यह सब ठीक रहेगा।
यह आवाज़ नियति सिंह की थी।
अच्छा अब थोड़ा प्यार करनें भी दो,आज मौका मिला है, अकेली भी हो वरना होटल का खतरा तो तुम समझती हो।
अंदर से किसी युवक की धीमी आवाज सुनाई दी।
नहीं , यह सब ठीक नहीं,।
नियतीसिंह नें उसे समझानें की कोशिश की।
देखों नियति लगता है, तुम्हें अब मुझसे प्यार नहीं रहा हैं।
फ़िर वही आवाज अन्दर से प्रियंवदा को सुनाई पड़ी।
ऐसी बात नहीं है नवल, आई लव यू।
नियतीसिंह की आवाज़ उसके कानों में पुनः गूँजी।
तो फिर अपने नज़दीक आने में क्यों आनाकानी करती हो।
उस युवक का तिक्त स्वर उभरा।
ओह सिट्स ,नवल तम्हें हर बक्त सैक्स ही सैक्स चाहिए।
हाँ हाँ हाँ सैक्स भी स्वास्थ्य को जरूरी है।
उस लड़के की आवाज़ पुनः सुनाई दी।
और फ़िर थोड़ी हीला हबाली के बाद दो युवा धाराओं के बीच वासनात्मक क्रीड़ा की स्पर्धा शुरू हो चुकी थी, दोनों की उत्तेजित काम क्रियाएं उस कमरे में सामाजिक मान मर्यादाओं को भस्म करतीं हुई , उसकी प्रबल लपटें प्रियंवदा को भी दग्ध करनें लगी।
प्रियंवदा उत्सुकता बस रूम की खुली खिड़की से देखनें को मजबूर होगई ,अंदर से दोनों की कामातुर कण्ठ से निकलने बाली सीत्कारों से प्रियम्वदा को अधिक वैचेनी होने लगी,।
स दिन पहली बार वह किसी स्त्री पुरूष की यौन क्रियाओं को किसी चल-चित्र की भाँति अपनीं आँखों से देख रही थी, नवल के पौंरुष अंग नें उसे बरवस अपनी ओर आकर्षित किया था,नवल की यौन क्रियाएं लगातार नियतीसिंह को चर्मसुख की ओर ले जा रही थीं।
लेकिन इन यौनक्रियाओं नें अब प्रियंवदा को विचलित कर रखा था।
अतः वह अपने उस छोटे से फ़्लैट से बेआवाज़ अतिशीघ्र निकलकर सामनें बनें गॉर्डन में एक बैंच पर आकर बैठ गई, उसकी स्वांश किसी लौहार की धौकनी के समान चल रही थी, बार बार मस्तिष्क में कमरें के अंदर का दृश्य कौंध रहा था,उसका गला प्यास से सूख चुका था, अतः वेबस प्रियंवदा नें गॉर्डन में जल की इच्छा से इधर उधर ताका तभी उसकी दृष्टि एक नव विवाहित युगल पर पड़ी जो दोनों एक झाड़ी की ओट में आलिंगनबद्ध होकर एक दूसरे के मधुर होंठों का रसपान करनें में संलग्न थे।
हे भगवान, यह सब यहाँ भी।
अचानक उसके मुहँ से निकला और वह वहाँ से अतिशीघ्र उठकर सरकारी सार्वजनिक पेय जल, नल के निकट पहुँची और नल की टोंटी खोल कर जल पीनें लगी।
जल पीनें के बाद उसे कुछ रिलैक्स महशूस हुआ। वह वहुत देर तक यूहीं निरुद्देश्य पार्क में इधर उधर भटकती रही, और जब वह लंबे समय तक निरुद्देश्य भटकनें के बाद जब वह अपनें कमरें पर पहुँची तो, वहाँ अब सब कुछ शाँत था, उसकी तीसरी रूम पार्टनर चन्द्रप्रभा भी कॉलिज से वापिस लौटकर वहाँ आ चुकी थी।
उसकी बड़ी वहन और चन्द्रपभा दोनों चाय पी रहीं थीं।
अरे ! प्रियंवदा तुम कॉलिज नहीं गईं आज।
जी ....जी ....दीदी.... वो... वो....।
प्रियंवदा की जुवान लड़खड़ा ने लगी थी।
यह ठीक नहीं है प्रिया।
नियतीसिंह की आवाज़ में आधिकारिक तल्ख़ी थी।
जी वो वो दीदी मेरी तवियत अचानक विगड़ गई थी .....अतः मैं तीन पीरियड्स अटेंड कर वापिस आगई।
लेकिन इतनीं देर से तुम कहाँ थीं?
नियतीसिंह ने प्रियंवदा से पुनः पूँछा।
जी दीदी मैं ...मैं...पार्क में बैठी थी।
किसके साथ थीं वहाँ ?
जी जी ककककक किसी के साथ नहीं।
आने दो डैडी को, तुम्हारी आवारागर्दी की शिकायत उनसे मैं अब जरूर करूँगी।
नियतीसिंह कड़क आवाज़ में बोली।
रहनें दे नियतीसिंह ,अभी यह कमअक्ल है, आगे से ऐसी पुनरावर्ति नहीं करेगी।
काफ़ी देर से चुप बैठी चन्द्रप्रभा ने दोनों में बात बढ़ती देख कर हस्तक्षेप किया।
दीदी आप जैसा सोच रही हो,बैसा कुछ भी नहीं।
प्रियंवदा धीमें और बिरोधपूर्ण स्वर में बोली।
मैं कैसा ? सोच रहीं हूँ, तेरे बारे में ।
नियतीसिंह गुस्सा से विफ़र उठी।
शाँत हो जाओ नियति, आपस में झगड़ना अच्छा नहीं।
चन्द्रप्रभा ने हस्तक्षेप कर दोनों को बड़ी मुश्किल से शाँत किया।
और उस दिंन से प्रियंवदा नें अपनी दीदी से बात करना कम कर दिया था, वह चाहतें हुए भी अपनी अंदर की सच्चाई को अपनी पड़ौसी दीदी चन्द्रप्रभा को नहीं समझा पाई।और उस दिन से उसने अपनी बड़ी वहिन को नजर अंदाज करना शुरू कर दिया था ,पर इस से नियती सिंह को खुलकर खेलनें का अवसर मिल चुका था।नियती सिंह अब लगभग अब प्रियम्वदा की अवेहलना कर नें लगी थी,और प्रियंवदा ने भी अपनी दीदी की हर बात को नज़र अंदाज़ करना सीख लिया था।
पानी सिर से ऊपर चढ़ चुका था,एक दिन नियती सिंह नें अपनी वहिंन प्रियम्वदा और अपनी रुमपार्टनर चन्द्रपभा को अपनी कोर्टमेरिज के बारे में बताया।
प्रियंवदा को सुनकर वहुत अजीव लगा। और उसकी पड़ौसी दीदी ने भी उसकी वहिन को सलाह दी कि वह इसबात को अपनें मातापिता को जरूर बताएं,पर नियती सिंह उस समय उस लड़कें के प्रेंमजाल में पूरी तरह फंसकर वहुत आगे निकल चुकी थी, अतः उसने यह आवश्यक नही समझा और वह उस फ्लैट को छोड़कर सदां के लिये उस लड़के नवल के साथ रहनें जा चुकी थी,।
कहतें हैं नेकी नौ कोस और बदी हज़ार कोस तक फैल जाती है।
आखिर वही सब हुआ, उसके देखतें देखतें उसके पिताजी, और माताजी नें प्रियंवदा को अकेला छोड़ कर इस दुनियाँ से अलविदा कर गये।
प्रियंवदा नें एक ठण्डी लंबी श्वांश ली और डायनिंग टेबल पर ठण्डे खाने को पड़े देखा,मन एक अजीबोगरीब परिस्थितियों में घिर चुका था, वह अपनी ही हबेली में पता नहीं किस बात की अपने को सजा दे रही थी।
वह क्या करे ?, अकेली हबेली उसे काटखाने को दौड़ती, वह कभी रोती, तो कभी अपने हाल पर हँसती, पूरी कोठी में बस एक ही नौकरानी बची थी जो उसकी ही हम उम्र थी,बाकी सभी नौकर उसे छोड़कर धीरे धीरे जा चुके थे, पिता की करोड़ों की सम्पत्ति की एक मात्र वारिस अकेली प्रियंवदा ही शेष थी,उसके पिता राजभान सिंह ने आत्महत्या करने से पहिले एक वसीयतनामा लिखा था.......शेषांश आगें।
प्रिय पाठकों मेंरे प्रश्नों का जबाब दें।
01 क्या अब प्रियम्वदा अपनी पुष्तैनी हबेली से वाहर निकल पाएगी ?
02 क्या वह आत्महत्या कर लेगी ?
03 क्या वह समाज की मुख्य धारा से पुनः जुड़ पाएगी।
