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H.K. Joshi Joshi

Romance Inspirational

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H.K. Joshi Joshi

Romance Inspirational

■वृद्ध मन की पीर■

■वृद्ध मन की पीर■

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  (सन्तति को मिले संस्कार)


मास्टर रमाकांत जी की कुल तीन सन्तान थीं जिसमें दोनों बड़ी बेटियाँ नेक विनम्र सुशील आचरण की थी।

 जो उन्हें अपने पिता और माताजी से विरासत में मिला था, इसी क्रम में उनकी तीसरी और अंतिम सन्तति के रूप में उनका उत्तराधिकारी पुत्र जिसका नाम चन्द्रमणि था।

चूँकि चन्द्रमणि सबसे छोटा होने के कारण परिवार की आँखों का तारा तो था ही, साथ ही अकेला पुत्र, वह भी तीनों सन्तानों में सबसे छोटा होने के साथ थोड़ा ज़िद्दी स्वभाव का था।

         चन्द्रमणि जिस वस्तु की मांग करता समय से पहिले उसकी माताजी और दोनों बड़ी बहिनें उसकी मांग पूरी यह सोचकर कर दिया करतीं थीं,कि "दोनों बहनों में एक ही तो भाई है, जो कि अभी नासमझ और छोटा ही है ",       इसलिए चन्द्रमणि कुछ नकचढ़ा और स्वाभाविक ज़िद्दी हो चुका था।

 पढ़ाई लिखाई में वह अपनी दोनों बहिनों की ही भाँति ही कुशाग्र बुद्धि था, दोनों बड़ी बहिनें ग्रेजुएशन करने के वाद एक वहिन सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा करने देहली चली गई थी और दूसरी वहिंन शशिप्रभा पुलिस विभाग की परीक्षा में बैठ ने के बाद क्रमागत तरक़्क़ी पाकर लखनऊ में ही एक थाने की एस.एच.ओ. के पद पर तैनात हो चुकी थी,।

         चूँकि चन्द्रमणिअपनी बड़ी बहन चन्द्रप्रभा के साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की फ़र्स्ट ईयर में प्रवेश ले चुका था, उसकी दूसरी वहिन शशिप्रभा लखनऊ के गोमतीनगर में तैनाती एस.एच.ओ. के पद पर वर्तमान में हो चुकी थी।

         शशिप्रभा बहुत ही परिश्रमी ईमानदार और इंटेलिजेंट ऑफिसर होने के साथ साथ देश पर अपनी जान न्योंछाबर करनें बालों में एक थी,

 उसके डर से बड़े बड़े अपराधी थरथर काँपने लगते थे। पिता के कहने पर भी शशिप्रभा ने अपनी शादी का सपना अभी तक नहीं देखा था। 

किन्तु किन्तु चन्द्रप्रभा उम्र में शशिप्रभा से दोवर्ष छोटी थी और उस से एक वर्ष छोटा चन्द्रमणि था, जो अभी चन्द्रप्रभा के ही कॉलिज में बी एस सी की फर्ष्ट ईयर का स्टूडेंट था,चन्द्रप्रभा अपनी पड़ोसी राज भानु सिंह की दोनों पुत्रियों के साथ,एक पेन्गेस्ट के रूप में रहकर डिप्लोमा कर रही थी,इसलिय उसकी शादी का प्रश्न अभी बनता ही नहीं था।

        अतः रिटायर होने के बाद मास्टर रमाकान्त जी अपने पैतृक गाँव प्रेंमगढ़ में अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ आ चुके थे।

 गाँव में उनके पित्रों की कुछेक बीघा ज़मीन थी जिस पर मास्टर जी मजदूरों से स्वयं अपनी देखरेख में खेतीबाड़ी का कार्य कराते थे। 

अतः रिटायरमेंट के बाद उनकी दैनिक दिन चर्या अब सीमित हो चुकी थी,किन्तु फिर भी,वह प्रति दिन अपने निर्धारित समय पर ही उठते और जलपान करने के बाद वह नियमित रूप से अपने पैतृक गाँव से दूर लगभग दो किलोमीटर साइकिल से चलकर निकट के गाँव के पास एक आश्रम पर जाते और पहिले की ही भाँति वह जो समय ऑन ड्यूटी अपने विद्यालय में व्यतीत करते थे, उसी तरह वह अब वहाँ आश्रम पर अपना समय सत्संग और हरि चर्चा में व्यतीत करते,।

    वहाँ आश्रम पर उच्चकोटि के संत स्वामी श्री सुंदर दास जी महाराज और उनके परम शिष्य श्री किसोरदास जी महाराज निवास करते थे, ।

आश्रम पर दूर दूर तक के लोग उन श्रेष्ठ महात्माओं के अमृत वचनों का रसपान करने अक्सर लोग आया करते थे।     अतः मास्टर रमाकान्त जी भी क्रमानुसार नियम से वहाँ जाते और आश्रम पर जो भी सेवा कार्य उनसे बन पाता वह वहाँ पर स्वेच्छा से किया करते थे।

 अतः दिनभर वहाँ सत्संग सुन ने के बाद वह सायं काल पुनः अपने घर साइकिल से पहुँच जाते थे, वस यही उनकी दिनभर की अब दिनचर्या बन चुकी थी।

       जिंदगी एक निर्धारित क्रम से नपी तुली अपनें हिसाब किताब से चल रही थी।

 ना कोई दुख ना कोई सुख का उनके जीवन में कोई विशेष महत्व था।

 बड़ी बेटी शशिप्रभा ने अपना विवाह ना करने की मन में निर्णय ले लिया था, किन्तु उसने कभी भी इस बारे में किसी से चर्चा नहीं की, और ना ही इस बारे में कभी उसने अपनी माँ को ही बताया और नहीं कभी अपने पिता को अपने अडिग फैसले के बारे में कुछ कहा था।

       किन्तु मास्टर साहब की पत्नी लक्ष्मी ने अपने पति से अपनी बड़ी बेटी के हाथ पीले करने हेतु किसी उचित वर की तलाश हेतु उन्हें समय समय पर अनुरोध करती रहतीं थी।, 

इसलिए मास्टर साहब ने अपने कुछ रिश्तेदारों से इस सिलसिले में ज़िक्र भी किया,और इसी उपक्रम में उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें एक लड़का जोकि फ़ौज में था, के बारे में शशिप्रभा के लिए उचित योग्य वर बताया,।

  वह लड़का थल सेना में कार्यरत था ।

उसका नाम था सूर्यकांत, अतः मास्टर साहब अपनी पत्नी लक्ष्मी से सलाह मशविरे के बाद सूर्यकांत के गाँव अपने उस रिश्तेदार के साथ जा पहुँचे, और वर पक्ष से बात कर अपनी पुत्री के विवाह की तारीख़ तय कर दी।

          और निर्धारित तिथि पर शशिप्रभा का विवाह फौजी सूर्यकांत से सम्पन्न कर दिया गया,।

       शशिप्रभा ना चाहते हुए भी अपने पिया के साथ दुल्हन बन चली गई, क्यों कि आज भी भारतीय समाज में लड़की को "दूसरे की अमानत" समझा जाता है।

साथ ही वह पिता के यहाँ धरोहर है जिसको पराए घर एक ना एक दिन जाना ही है,जहाँ उसकी नवजीवन की नई दुनिया में शुरुआत होती है, यह परम्परा सदियों से अविरल सनातनी चली आ रही है ।

अतः मास्टर साहब भी अपनी बड़ी बेटी के हाथ पीले कर के अपने एक बोझ से हल्का हो चुके थे।

अब मास्टर रमाकान्त अपनी पत्नी लक्ष्मी से यह चर्चा करते कि अब शेष दो सन्तानों में पहिले किसका विवाह किया जाए ?

 शशिप्रभा का या फिर चन्द्रमणि का,

तो अक्सर उनकी पत्नी लक्ष्मी उनसे कहतीं ।

पहिले लड़की की शादी करना ही ठीक है।

तो रमाकान्त जी प्यार से अपनी पत्नी को समझाते कि।

" नहीं पहिले चन्द्रमणि के लिये, सुंदर बहू ढूंढनी है, जिस से की तुम्हारा बोझ कुछ हल्का हो जाये "।

लक्ष्मी उनका विरोध करती और कहती ।

अब चन्द्रप्रभा की पढ़ाई पूरी हो चुकी है, अतः अब हमें उसकी शादी के बारे में सोचना है, क्यों कि अब जमाना तेजी से बदल रहा है, इसलिए हम भी ज़माने के साथ चलें तो बेहतर होगा।

इस तरह अक्सर दोनों पति-पत्नी में वार्ता होती रहती थी, समय तेजी से गुज़रता चला जा रहा था।

एक दिन गाँव देवसैना में एक घटना घटी जिसके कारण पूरे देवसैना वासियों का सिर लज्जा से झुक गया।

बस तभी से वहॉं के लोगों नें अपनीं अपनी बेटियों की पढ़ाई बीच में छुडवा कर उन्हें घर गृहस्थी में डालना शुरू कर दिया।

मास्टर रमाशंकर जी भी इस बात से परेशान तो थे, पर वह अच्छी तरह समझते थे कि उन्होंने अपनी बेटी चन्द्रप्रभा को अच्छे संस्कार दिय हैं, किन्तु फिर भी कभी ना कभी ऐसी पुनरावृति दोहराई जा सकती है।

जो कृत्य उनके पड़ोसी ठाकुर राजभानु सिंह की बड़ी पुत्री " नियति सिंह ने किया था "।

 जब कि रमाकान्त की पुत्री और उनके पड़ोसी राजभानु सिंह की पुत्री नियति सिंह ने भी दिल्ली यूनिवर्सिटी से आर्केटेक्ट का डिप्लोमा चन्द्रप्रभा के साथ ही रूम पार्टनर रहकर किया था।

 कहाबत है कि " एक मछली पूरे ताल को गंदा कर देती है",इसलिए मास्टर साहब की धर्मपत्नी लक्ष्मी ने जिद ठान ली कि अब वह अपनी पुत्री चन्द्रप्रभा के हाथ पीले कर ही दम लेंगीं।

रमाकान्त जी के बहुत समझाने पर भी लक्ष्मी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी, तो आख़िर में उन्हें अपनी पत्नी की हठ के आगे झुकना पड़ा, और फिर दौड़ धूप कर उन्होंने एक अपनी ही रिस्तेदारी में एक सुयोग्य लड़का देखकर चन्द्रप्रभा का रिश्ता तय कर दिया ............


शेषांक अनुछेद 03 में पढ़ें।


क्रमशः



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